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बात ये नहीं है कि हम पऱ किसी वस्तु का प्रभाव है या नहीं बात ये है कि वह कार्य प्रभावित करने वाला है या नहीं। मन की वास्तविक स्थिति पहचानना मानव के बस मे नहीं है। विभिन्न बातो मे कभी वह स्वयं को अधिक तो कभी कम आँकेगा। अपने सत्य से वह परे रहता है। सही जीवन यह बताता है कि मानव को चुनना चाहिये कि अमुक कार्य विष है या अमृत और समय रहते उसे चुनना है अमृत को। साधक को:
व्यर्थ इच्छा मन को अपनी स्थिति से निम्न की ओर ले जाने लगती है। मानव मन कभी स्थिर नहीं होता यह बस चलता है सही या गलत की ओर। अधिक समय गलत की ओर चलने से यह भक्ति खो भी सकता है। प्राप्ति को अप्राप्ति मे परिवर्तित क़र सकता है।उन्नत जीवन तो मौन मे बीतता है,एकान्त मे बीतता है। हर समय ईश्वर की प्रतीक्षा मे,स्मृति मे बीतता है। यह लिखते हुए मै स्वयं से प्रश्न क़र रहा हूँ क्या मेरा जीवन ऐसा है। सच कहूँ तो मै अपनी व्यथा ही व्यक्त क़र रहा हूँ। संसार बहुत प्यासा है और यदि आपसे उनकी प्यास बुझती है तो वे आपको सुखा देंगे। आपके भीतर का प्रेम और रस चूस लेंगे। कभी ही कोई ऐसा होता है जो स्वयं से अधिक आपका विचार करता है और जो आपका विचार करता है,आपके सुखके लिए उद्यत होता है उसे स्वतः सब आपसे मिल ही जाता है। आपके मौन और एकान्त को ज़ब भ्रष्ट किया जाता है तब बाकी दोष भी आपको स्वतः घेर लेते है तो सीख लीजिये स्वयं को बचाना, बचाना हर ओर से सभी छिपे हुए शत्रुओं से, भीतर और बाहर के।
राम।