साधक यदि प्रेम शून्य होकर ध्यान का प्रयास करता है तो वह उतनी गहराई में नही उतर पाता। सुबह नहा धो कर आसन पर विराजकर हम ईश्वर का ध्यान करने लगते हैं। मन मे प्रेम के भाव नही उठ रहे तो मन ध्यान में ठहरे या न ठहरे पर गहराई का अनुभव नही होगा। अन्य भावों की अपेक्षा प्रेम सबसे तीव्र भाव है। इसकी तीव्रता ही डुबोने का कार्य करती है। हम हर अनुभव से कुछ देर में आगे बढ़ जाते हैं पर प्रेम पर ठहरते हैं। मनोहार करना, लाड़ लड़ाना या विह्वल होकर रोना, प्रार्थना करना यह सब भाव हमें प्रेमास्पद में ऐसा बाँध देते हैं कि फिर ध्यान लगाना नही पड़ता स्वतः लग जाता है। ठाकुर जी मेरे पास है। मेरे सामने है। मैं उनसे प्रेम करता हूँ। वह मुझसे प्रेम करते है। उन्हें मुझपर बहुत प्यार आ रहा है। वे मुझसे लाड़ करते हैं मैं उनसे लाड़ करता हूँ और यही सब करते मन द्रवित हो जाये।
यदि विचार शून्य हो कर ध्यान द्वारा समाधि लगाने की बात करें तो समाधि की अवस्था अच्छी है पर कच्ची है। यदि भावमय समाधि लगे तब बात पक्की है। हम उस समाधि में ठाकुर जी के सँग हों। उनके स्पर्श से हमारी समाधि लगे। हम उस सुख में खो गए, हमारे रोम रोम में प्रेमोन्माद की लहरें दौड़ गई, हमे शरीर का भान न रहा तब ही वास्तविक समाधि है। साधक को केवल प्रेम तक सीमित रहना चाहिए। ठाकुर जी को सदा प्रेम देने का प्रयास करे। अपने सामने बिठा लाड़ लड़ाए, भावमय सेवा करे या उनके अपने प्रति प्रेम से निहारने का अनुभव करे, उनके लाड़ लड़ाने का अनुभव करे। ठाकुर जी को बाकी सब बातों से बढ़कर महत्व देना ही प्रेम है। यह प्रेम इतना तीव्र है कि फिर न विकार तंग करेंगे न विचार और साधना निर्बाध होगी।
भगवान की प्राप्ति तीव्र इच्छा शक्ति के द्वारा होती है।इच्छा शक्ति का अर्थ है एक विचार पर पूर्ण रूप से केंद्रित होना।अब जिसकी इच्छा शक्ति अधिक है और वह अपनी इच्छा पर पूर्ण रूप से केंद्रित रहता है। सब ओर से मन को सीमित कर डूबने का प्रयास करता है तो उसे सफलता मिल ही जाती है।चाहे भक्ति हो या संसार ,ये बात दोनो के लिए है।
जो भगवान के भक्त होते हैं वे केंद्रित होकर भगवान को निकाल लेते हैं ।सब कुछ एक विचार में डूबने से मिलता है।एक विचार को सोचने में अपनी पूरी शक्ति लगा दो। पहले पहले कम उपाय मिलेंगे पर धीरे धीरे अधिक।सफलता मिल ही जायेगी।ईश्वर को प्राप्त करना है तो ध्यान लगाओ।किसी समस्या का हल ढूंढना है तो चलो उपाय पर ध्यान लगाओ।शक्ति अर्जित करनी है तो बैठ कर ध्यान लगाओ,खुद को समझाओ,मंथन करो।सब कुछ ध्यान से संभव है।एक विचार पर अपने को पूरा केंद्रित करना।ध्यान तुम्हें भगवद प्राप्ति कराता नहीं अपितु भगवान बना देता है।