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भीड़ की ये जिंदगी से
हम दूर बैठे दिल लगी से
पा लिया है खुद को इन फिजाओं में
अब रह गई न कोई तिश्नगी है
उड़ते हम परिंदों जैसे
सपनों का सफर बस चार दिन हो जैसे
खाबों और ख्यालों में तो डूबा रहूं
अफसूरदगी में लिख दूं बात दिल की जैसे -
"हवाएं चली बद दिली की, सांसे लेता रहा
जिंदा रहने के लिए मैं बातें लिखता रहा
तेरे खामियों पे पर्दे डाल, में भी सहता रहा
और जामो से तो मेरा कमरा काफी महका रहा"
कल मैं रहूं या ना रहूं, मेरी शायरी सलामत है,
यादें वादियों में फेक आया, पर मेरी डायरी बरामत है।
हम छोड़ आए उन यादों को वादियों में
हम छोड़ आए उन वादों को वादियों में
महक उठी थी तेरी खुशबू, सांसे भी हम छोड़ आए वादियों में
हम छोड़ आए उन यादों को वादियों में
अब इंतजार तेरा मुझको खाता नहीं है
तेरा शहर तेरी जगह अब रुलाता नहीं है
ज़ख्म मेने लिखा अब तक बांटा नहीं है
आखिरश ये फूल अब मुरझाता नहीं है
किस्सा है पुराना उसे जाना था जब
वो पढ़ती थी किताबें, मुझे गाना था बस
"आज जाने की ना ज़िद करो" गाना था बस?
उसे जाने की थी ज़िद, मुझे निभाना था बस
शायद अच्छी थी मेरी यारी बस
बेफिसूल, बेकरारी बस
"ख्वाबों में तुम मिलना" इंतजरी बस
और रह गई गुमान मेरी जारी बस
सफर खत्म अब लौट कर हम घर चलें
वो कमरा वही खिड़की और किताबों में अब हम चलें
जुस्तजू हुई खत्म, अब तो बेफिक्र चलें
यादों की इमारत थी, टूटी तो बिखर चलें
गुजरता एक गुमान हूं मैं
पहाड़ों की आवाज हूं मैं
बादलों के पार हूं मैं
पीले आसमानों में
हम छोड़ आए उन यादों को वादियों में
हम छोड़ आए उन वादों को वादियों में
महक उठी थी तेरी खुशबू, सांसे भी हम छोड़ आए वादियों में
हम छोड़ आए उन यादों को वादियों में

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