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भारत में शादियों का शुभ मुहूर्त शुरू हो चुका है, कनफेडरेशन आफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 12 नवंबर से 16 दिसंबर के दौरान हमारे देश में लगभग 48 लाख शादियां होने वाली है, इनमें से करीब साढे चार लाख शादियां सिर्फ देश की राजधानी में होगी। विवाह हमारे देश में एक महत्वपूर्ण संस्कार है जो हमारी संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों से गहराई से जुड़ा है। पिछले कुछ वर्षों में विवाह को लेकर लोगों का और समाज का रुख और विचार बदलते हुए नजर आते हैं यह बदलाव अपने साथ अच्छाई और बुराई दोनों लेकर आया है।
विवाह को लेकर एक बड़ा बदलाव जो देखने को मिल रहा है विशेष कर युवा पीढ़ी में वह है देर से शादी करना। अब वह दिन गए जब शादियां छोटी उम्र में हो जाती थी, आज का युवा सबसे पहले अपने करियर, शिक्षा और व्यक्तिगत ग्रोथ पर पहले ध्यान दे रहा है और यह बदलाव शहरी और अर्ध शहरी दोनों इलाकों में देखने को मिलता है।
दूसरा महत्वपूर्ण बदलाव जो अर्ध शहरी और ग्रामीण विस्तारों में रहने वाली लड़कियों में देखने को मिल रहा है वह है बड़े शहरों में रहने वाले परिवारों में शादी करना, क्योंकि बड़े शहरों में करियर में आगे बढ़ने के मौके अधिक होते हैं तथा गांव और छोटे शहरों की तुलना में जिंदगी अधिक सुगम प्रतीत होती है। इसका एक अनिच्छनीय परिणाम यह है कि गांव में रहने वाले लड़के फिर भले ही उनका परिवार आर्थिक रूप से सक्षम हो उन्हें अच्छे रिश्ते नहीं मिलते। इस वजह से उन्हें शहरों में अपना घर खरीदना पड़ता है अथवा कामकाज की तलाश में गांव से शहर में स्थानांतरण करना पड़ता है, शहर में अपना घर होना विवाह के लिए अच्छे रिश्तों को आकर्षित करने में सहायक बनता है।
वैवाहिक संस्था में स्त्रियों की भूमिका में भी बड़ा बदलाव आया है वर्तमान समय की सुशिक्षित और नौकरी पेशा स्त्रियां घरेलू कामों में उलझ कर नहीं रहना चाहती वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र और अपने परिवार को सुदृढ़ बनाने की दिशा में काम करती है। उनका मानना है कि विवाह में पति और पत्नी की भागीदारी समान है और दोनों को मिलकर इस संस्था को आगे बढ़ाना चाहिए।
विवाह को लेकर बदलते समीकरणों के बीच एक पहलू जो लगातार बना हुआ है वह है शादी के पीछे बढ़ते खर्च। अधिक से अधिक खर्च को लोग अपनी शान समझते हैं, विवाह के पीछे किए गए खर्च को सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़कर अपनी संपत्ति का प्रदर्शन करना कितना योग्य है यह एक विचार करने का विषय है।
पहले के समय में एक सही जीवनसाथी की तलाश में नजदीकी रिश्तेदार और परिवार के मित्र महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते थे किंतु वर्तमान समय में लोग इन झमेलों में पड़ना नहीं चाहते, शायद लोगों की सोच में आए इस परिवर्तन की वजह से ही ऑनलाइन मेट्रोमोनियल प्लेटफॉर्म्स तथा डेटिंग एप्स बढ़ते जा रहे हैं। भारतीय समाज में अंतरजातिय विवाह की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है, युवा पीढ़ी के लिए आपसी सुसंगतता और अनुकूलता जाति से ज्यादा मायने रखते हैं। एक परेशान करने वाला पहलू जो भारतीय समाज में बढ़ रहा है वह है तलाक की संख्या, लोग आर्थिक रूप से सक्षम हो रहे हैं और अपने अधिकारों के प्रति सजग हो रहे हैं, विशेष कर स्त्रियां, वर्तमान समय में लोग यह मानने लगे हैं कि उस विवाह बंधन का कोई अर्थ नहीं जो अनुकूल न हो और खुशी ना दे सके, सिर्फ समाज के डर से अनिच्छनीय विवाह के बंधन में बंधे रहना वर्तमान पीढ़ी को स्वीकार नहीं।
विवाह को लेकर बदलते समीकरण भूतकाल से काफी भिन्न है, युवा पीढ़ी उस दिशा में कदम बढ़ा रही है जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता, बराबरी और आपसी सम्मान को अधिक महत्व दिया जाएगा। आने वाले भविष्य में यह देखना रोचक रहेगा की विवाह जैसा महत्वपूर्ण संस्कार हमारे विविधताओं से भरे देश में क्या रूप और आकार धारण करता है।