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पता नहीं क्या हो गया है आजकल की पीढ़ी को ? लड़की देखने को खुद अकेले ही चले जायेंगे ! माँ-बाप ,परिवार ,रिश्तेदार दोस्त किसी की नहीं सुनते। पता नहीं ये ऐसा क्या देख लेंगे ? क्या समझ में आएगा इनको ?

मेहरबान अचारजी की ये बातें सुनकर भी अनसुना कर गया था वो। मन ही मन अपने फैसले को एक आधुनिक और परिपक़्व विचार मानते हुए दूसरे तरफ देखता रहा था। चौदह साल गुजर गए। उसने लड़की भी देख ली , शादी भी कर ली। शादी के तीसरे साल एक बच्ची भी हुई। लेकिन दूसरे बच्चे को लेकर पति पत्नी में सामंजस्य बैठ नहीं पा रहा था और इस उहापोह में काफी समय लग गया। दूसरे बच्चे की खुशखबरी जब मिली तब तक पहली बच्ची नौ साल की हो चुकी थी। इस बीच में उसने अपनी साली की शादी की जिम्मेदारी भी पूरी कर दी। ससुराल में घर की मरम्मत और कच्चे से पक्के मकान में परिवर्तन का काम भी कर दिया गया। साला नहीं था उसका। ससुराल के नाम पर दो सालियाँ और एक अधेड़ उम्र के ससुर, जिनका कोई व्यवसाय तो नहीं था लेकिन किसी तरह से अपने खर्चे के लिए पैसों की वयवस्था कर ही लेते थे। अपने ससुराल की आर्थिक और मानसिक मदद करने में वो सक्षम था। नौकरी प्राइवेट थी लेकिन माह की सेलरी छह अंकों में होने की वजह से वो अपने आप को सबसे अलग ही समझता था और फैसले लेने में किसी पर निर्भर रहना या सोच विचार करना उचित नहीं समझता था।

अपनी शादी के समय भी उसने किसी की नहीं सुनी। परिवार , दोस्त , रिश्तेदार सब लोग समझाते रहे लेकिन उसने वही किया जो उसे सही लगा। धीरे-धीरे उसके परिवार से दूरियां और ससुराल से नजदीकियां बढ़ती गयीं। त्योहार या छुट्टी में जब भी घर आना होता तो सीधे ससुराल में ही पहुँचता था। उसकी बीबी भी मायके में ज्यादा और ससुराल में सिर्फ एक दो दिन के लिए ही रूकती थी। लेकिन उसके लिए अपना ससुराल रहस्य्मयी ही लगता था। कभी भी घर के आंतरिक मामलों में उसका सीधा हस्तक्षेप नहीं था। ससुराल का कोई भी फैसला या बात उसकी बीबी के द्वारा ही पता चलती थीं।

कुछ सालों पहले एक उसकी एक साली का बीमारी की वजह से निधन हो गया था। काफी प्रयास किये थे उसने उसे बचाने के , लेकिन सब व्यर्थ। जिला अस्पताल से लेकर स्टेट की बड़ी से बड़ी अस्पताल तक में पैसे पानी की तरह बहाये लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। दूसरी साली की शादी में वो बहुत खुश था क्यूंकि एक बड़ी जिम्मेदारी वो पूरी कर रहा था। उसके लिए लड़का ढूढ़ने में उसका कोई हाथ नहीं था। लड़का उसकी बीबी और ससुर की पहचान का ही था , पास के ही एक गांव से। वो लोग उसे पहले से जानते थे। ससुराल में साला ना होने की वजह से उसकी साली और साढू शादी के बाद ससुराल में ही रहने लगे थे। इससे ससुर को भी सहारा मिल गया और घर भी खाली नहीं हुआ।

अपने दुसरे बच्चे के जन्म के दो महीने बाद वो घर जा रहा था। अधिक दिनों की छुट्टी न मिलने की वजह से कुछ दिन वर्क फ्रॉम होम के भी प्लान था। बीबी की जिद की वजह से इस बार फिर वो अपने घर ना जाकर अपने ससुराल चला गया था। उसकी बड़ी बच्ची भी बहुत खुश थी कि अपनी मौसी और नानू को अपनी दो महीने की छोटी बहन से मिलवाएगी। लेकिन इस बार ससुराल में माहौल कुछ अलग था। पहले वो घर का इकलौता दामाद था और ससुराल जाते ही उसे अपने खास होने की फीलिंग आती थी। इस बार घर के अंदर के कमरे में उसके साढ़ू का कब्ज़ा था और उसे बरामदे से ही संतोष करना पड़ा। हालांकि दो और कमरों का निर्माण वो खुद करवा रहा था, लेकिन अभी फिनिशिंग पूरी नहीं थी , उसका डेरा उन्हीं में एक में हो गया। दुसरे निर्माणाधीन कमरे में निर्माण सामग्री और औज़ार रखे हुए थे , उस कमरे को स्टोर रूम की तरह भी मान सकते हैं।

इस बार उसने कुछ अलग चीजें नोटिस की। नाश्ता उसे रोज बाहर से ही आ जाता था , कभी समोसे , कभी कचौड़ी , कभी मंगौड़ी। नहाने के समय उसके ससुर उसे नदी पर चलने की सलाह देते। उसकी बच्ची भी नदी के लिए काफी एक्साइटेड रहती इसलिए वो नहाने के लिए नदी पर चले जाते। खाने के समय भी उसे कुछ अजीब सा अहसास होता , लेकिन वो सोचता जाने दो , कुछ दिनों के लिए ही तो यहाँ आये हैं। अपने कमरे में बैठकर वर्क फ्रॉम होम में लगा रहता था। वैसे भी इंट्रोवर्ट टाइप का इंसान था वो। जब तक सामने वाला बात न करे वो अपनी तरफ से बात शुरू नहीं करता था। इसी वजह से ससुराल में एक दो लोगों के अलावा किसी से उसकी जान पहचान भी नहीं थी। इस वजह से उसका सारा समय उसी एक कमरे में गुजरता था। बीच बीच में दो तीन बार उसकी साली भी कह चुकी थी - दीदी जीजाजी को बोल दो , कुछ समय के लिए कूलर बंद भी कर दिया करें , बिजली का बिल बहुत ज्यादा हो जायेगा।

आज सिर्फ चौथा दिन ही था उसका ससुराल में , और वर्क फ्रॉम होम का आखिरी दिन। दोपहर का समय था और वो लैपटॉप पर अपने किसी काम में उलझा हुआ था। गर्मियों की दोपहर में गलियां अक्सर सुनसान हो जाती हैं , लोग घरों के अंदर ही रहना पसंद करते हैं। उसके ससुर भी घर के एक अंदर वाले कमरे में सो रहे थे। दूसरे कमरे में उसकी साली और साढ़ू सो रहे थे। तभी उसकी बीबी अपनी दोनों बच्चियों को लेकर वहां आयी और बातें करने लगी। बातों बातों में उसकी बीबी ने बताया कि आपको पता है कल शाम को क्या हुआ था ?

क्या हुआ था ? उसने अचरज भरी निगाहों से देखते हुए पूछा।

आप तो कानों में हेडफोन लगाकर अपने काम में लगे हुए थे , अंदर वाले कमरे में बहुत लड़ाई हुई।

क्या ?? उसने अपने लेपटॉप को साइड में खिसकाते हुए कहा।

हाँ और वो मुझे मारने को दौड़ा

कौन ? साढू ?

हाँ वो ही,

उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

हाँ बोल रहा था , निकल जाओ इस घर से ,मैं ही अब इस घर का वारिस और मालिक हूँ।

अच्छा !!!

हाँ और बहुत गलियां भी दे रहा था।

तुमने मुझे क्यों नहीं बताया तुरंत ? उसने गुस्से से लाल होते हुए कहा।

मैंने इस बच्ची से बोला था कि जाओ पापा को बाहर वाले कमरे से बुला लाओ , लेकिन ये डर के मारे काँप रही थी।

तो तुम आवाज लगा देती मुझे ,

आप तो कान में हेडफोन लगाए हुए थे ,वरना इतनी चीख चिल्लाहट में तो कोई भी खुद ही सुन लेता।

अच्छा ये बताओ लड़ाई शुरू किस वजह से हुई ?

पता नहीं क्यों , मैं अपनी सहेली के साथ बैठकर बात कर रही थी , वो अंदर आया और चिल्लाने लगा।

तुम्हारी सहेली के सामने ही ??

हाँ , वो तो बोल रही थी जीजाजी कैसे इंसान हैं , इतना सुनकर भी तुम्हारे साथ खड़े नहीं हुए।

इन बातों को सुन सुनकर उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँचता जा रहा था।

शांत रहने वालों को गुस्सा भी तेज होता है।

जब उसका गुस्सा अपनी अपर लिमिट के थ्रेशोल्ड को पार कर गया तो वो उठा और अंदर वाले दरवाजे पर हीरो के अंदाज में एक लात मारी। जिससे दरवाजा खुल गया , भड़ाक की जोरदार आवाज से सभी लोग उठ गए , इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाए उसने साढू को पकड़कर दो तमाचे रसीद कर दिए। इसके बाद हाथापाई में उसके कपडे भी फट गए। ससुर और बीबी ने बीच बचाव किया औरउसे बाहर के कमरे में ले आये । लेकिन अब तक साढू भी अपने फॉर्म में आ चुका था। लोकल होने की वजह से उसने फोन करके कुछ गुंडे मवाली टाइप लोगों को बुलाना शुरू कर दिया था , और खुद भी गालियां देते हुए जान से मारने की धमकी देने लगा था।

मामले को बढ़ता हुआ देख ससुर ने जल्दी घर से बाहर कहीं चले जाने की सलाह दी। अभी वर्क फ्रॉम होम चला रहा था और शिफ्ट ख़त्म होने में काफी समय बाकी था लेकिन गरमा गर्मी बढ़ते देख बिना सोचे समझे ये घर से बाहर निकलने लगा । तभी साढ़ू लोहे की रॉड लेकर मारने दौड़ा और ये बिना चप्पल के ही घर बाहर निकल गया। जून का महीना दोपहर का समय , पैरों में चप्पल नहीं , जेब में पैसे नहीं , पास में मोबाईल भी नहीं कि किसी को फोन कर सके। भागते भागते नदी के पास पहुँच गया। पुल के नीचे बने घाट की सीढ़ियों पर छाँव देखकर बैठ गया।

सामने ही नदी में कुछ लोग मछलियाँ पकड़ रहे थे। गर्मी के दिनों में मछलिया उथले पानी में नहीं मिलती, क्यूंकि वहां पानी काफी गरम हो जाता है । गरम पानी में जाने का मतलब ख़ुदकुशी करने जैसा है। पुल के पिलरों के पास छाँव भी थी और गहराई भी। दोपहर के समय उधर मछलियों का पूरा कुटुंब इकठा हो जाता है। मछुआरे उस जगह पर पानी में खलबली मचाते थे। मछलियाँ वहां से निकलकर उथले पानी की तरफ भागती थीं जहाँ पर उन्होंने पहले से ही जाल बिछा कर रखा होता है । अपने सुरक्षित स्थान और कुटुंब को छोड़कर दूसरे जगह आशियाना ढूढ़ने के चक्कर में मछलिया अलग थलग पड़ जाती हैं और फिर मछुआरे उनको ऐसी जगह पहुंचा देते हैं , जहाँ पर वो ख़ुदकुशी करने पर मजबूर हो जाएँ।

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