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एक तरफ जहाँ पत्रकारिता का यह असंगठित क्षेत्र आपके लिए जीवन की कई राहें प्रदान करता है, तो वही दूसरी ओर इस क्षेत्र में अपने आप को उजागर करना और समाज के लिए एक जीती-जागती मिसाल बनना उतना ही चुनौतिपूर्ण होता है I

अभी भी न जाने क्यों, कल की सी बात मालूम होती है कि अभी तो कॉलेज आए थे, यार-दोस्तों का एक गुट बनना शुरू हुआ था और यह 3 साल बड़े मुक्तसर से निकले I

सच कहूँ तो, ज़िंदगी के इस पहलू ने न जाने कितनी बार हमें अपने आप से लड़ने पर मजबूर किया, अपनी अंतरात्मा पर सवाल उठाने के लिए हम उतारू हो गए, यहाँ तक कि हमें अपनी काबिलियत पर तक शक़ होने लग गया I

स्नातक का अंतिम चरण शुरू हुआ जनवरी के महीने में, जब गाज़ियाबाद की गलियाँ और कूचे भीषण सर्द हवाओं की चपेट में आए हुए थे I इस कड़ाके की ठंड से जूझना अभी जारी ही था कि एकदम से हमारे कंधों पर आ गया प्रैक्टिकल कामों का पोथा; कॉलेज में तरह-तरह की आलोचनाएँ शुरू हुई कि प्रोजेक्ट के काम के लिए डाक्यूमेंट्री बनाने हेतु हमें शायद गंगा मैया की पावन नगरी बनारस में जाने का सौभाग्य प्राप्त हो, यहाँ तक कि तारीखें भी तय हो चुकी थी लेकिन जीवन में एक ऐसा वक़्त आता है जब हम सिर्फ एक ही चीज़ को पाने की होड़ में लाख जतन नहीं कर पाते I

सभी चीज़ों को मद्देनज़र रखते हुए ही इस ट्रिप पर जाया जा सकता था लेकिन बदकिस्मती से आर्थिक तनाव इस रोमांचक यात्रा पर खलल डाल रहा था; इसके पीछे वजह यह थी कि कॉलेज ने महीने के आखिर में हमारी इस ट्रिप को आयोजित करना मुनासिब समझा I एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में हम अक्सर लोगों को महीने के आखिर में पैसों की आवाजाही बड़े सावधानी से करते हुए देखते हैं और यही हो रहा था हम सभी के परिवारों में I लाख मिन्नतों के बाद भी न तो तारीख आगे बढ़ पाई और न ही यह आकर्षक ट्रिप वर्ना मेरी क्लास के लोग तो कितने सारे प्लान बना चुके थे; वहाँ की गंगा आरती के दर्शन, एक स्वादिष्ट मीठा व्यंजन मलैयों का स्वाद उठाना, मणिकर्णिका घाट पर अघोरियों से मुलाक़ात और भी न जाने कितना कुछ I

हम सभी के लिए एक फैसला लेना बहुत ही मुश्किल साबित हो रहा था क्योंकि अपने घरवालों को गृहस्थी की चिंता में डालकर उनसे इस तरह पैसे लेकर हम नहीं जा सकते थे I मैं इस स्थिति को अब धीरे धीरे भाँपने लग गया था कि आने वाले समय में हम सबका मानसिक तनाव चरम सीमा पर पहुँचने वाला है I

जहाँ कॉलेज की फैकल्टी हमारे ऊपर मौजूद मानसिक तनाव को यह कहकर हमारे लिए फायदेमंद सोच रही थीं कि भविष्य में यह अनुभव हमारे लिए लाभदायक होगा, वही हमारे लिए एक-एक दिन काटना नामुमकिन सा प्रतीत होता था I खैर, इस ग्रुप प्रोजेक्ट के एवज़ में यही तय हुआ कि हम सभी को अपनी-अपनी डाक्यूमेंट्री खुद ही बनानी पड़ेगी I यहाँ हमारी स्थिति बयाँ करने के लिए कुछ और लफ़्ज़ों का प्रयोग करना अतिश्योक्ति नहीं होगा; यह बात भी जान लेना ज़रूरी है कि सिर्फ डाक्यूमेंट्री, टीवी इंटरव्यू, न्यूज़ पैकेज की पूर्ति होने पर ही हम अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त नहीं हो रहे बल्कि एक और चुनौती हमारा बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी जो कि है रिसर्च का काम I

यह सब मूवी बनाना, कैमरा संभालना मेरे बस की बात नहीं थी I मेरी हालत पर गौर किया जाए तो जब कॉलेज में मेरे यार-दोस्त किसी कैमरा या मार्केट में कोई नए ट्राईपौड के बारे में चर्चा कर रहे होते, मैं सिर्फ उनकी बातों में हामी भरने के अलावा और कुछ नहीं कर पाता I वक़्त की सुइयाँ कटार बनकर चीर रही थी क्योंकि मुझे प्रोजेक्ट के लिए कोई ढंग का विषय नहीं मिल पा रहा था I समय के साथ-साथ मेरी उम्मीदें भी ख़त्म हो रही थी I यहाँ तक कि इस टेंशन के चलते तो एक बार मेरी आँखें भी भर आईं पर दोस्तों और परिवार का साथ हमेशा मुझे नसीब हुआ I

एक उम्मीद की किरण जागी जब फैकल्टी ने एक सजेशन दिया; जाने-माने मूर्तिकार, पद्म भूषण से सम्मानित डॉ. राम सुतार की जीवन-गाथा I हमें इस बात का भी संशय था कि कहीं वो अपने स्टूडियो में फ़िल्माने से इनकार न कर दें लेकिन भगवान की दया से वो बड़े ‘डाउन टू अर्थ’ किस्म के व्यक्ति मालूम हुए जिन्हें अपनी कला का कोई घमंड नहीं, 99 वर्ष के इस उम्रदराज़ मूर्तिकार का जज़्बा और कल एवं संस्कृति की तरफ उनका झुकाव मेरी डाक्यूमेंट्री को हिट बनाने के लिए पर्याप्त था I न्यूज़ पैकेज और टीवी इंटरव्यू का शूट भी हम समय पर पूरा करने में कामयाब हुए; इन सारे सेग्मेंट्स की एडिटिंग करना अपने आप में एक बहुत बड़ा काम था I जहाँ शूट हमने महज़ एक दिन में निपटा लिया, वही एडिटिंग को दो या तीन हफ़्ते तो लग ही गए I इन दो से तीन हफ़्तों में मेरे कई सहपाठियों की तबियत भी ख़राब हुई, कुछ लोग कई रात नहीं सो पाए लेकिन हमारे हाथ बंधे हुए थे I हमें किसी भी कीमत पर काम जमा करना था I दिनचर्या इतनी बुरी तरह से प्रभावित हो चुकी थी कि मानसिक तनाव आना तो लाज़मी ही था I खैर, अपनी नींद-चैन को त्याग कर हम सभी अप्रैल माह के पहले हफ़्ते तक यह प्रैक्टिकल काम करने में सफल हुए I

अगली मंज़िल थी रिसर्च I रिसर्च के लिए अभी पापड़ बेलना बाकी था I कॉलेज से सख्त हिदायत थी कि 15 अप्रैल तक हमें सारा काम पूरा करके जमा करना होगा जिसके तुरंत बाद हमें इंटर्नशिप के लिए भेज दिया जाएगा I वक्त की संजीदगी को मद्देनज़र रखते हुए फैकल्टी ने एक राहत यह दी कि रिसर्च का काम हम सहपाठी एक-एक ग्रुप बनाकर साथ में कर सकते हैं I सर्वे का विषय था – लोक सभा चुनाव; चुनाव प्रणाली, सामाजिक विकास, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के ऊपर लोगों की राय लेने का ज़िम्मा हमें दिया गया I

क्लास 2-2 स्टूडेंट्स के समूहों में विभाजित की गई I सर्वे करने के लिए चार जगहें चुनी गई - वैशाली मेट्रो स्टेशन, नोएडा सेक्टर-62, शिप्रा मौल और काला पत्थर I जब हम किसी पब्लिक प्लेस पर होते हैं तो कभी-कभी कुछ लोगों को पैम्फलेट बाँटते हुए देखते हैं लेकिन हम उनकी मजबूरी को समझना भी ज़रूरी नहीं समझते I इस सर्वे के बाद सही मायनों में उन लोगों के लिए इज्ज़त जाग गई; मैं यह बिल्कुल नहीं कहूँगा कि इस आखिरी सेमेस्टर हम केवल काम के बोझ तले दबते चले गए लेकिन इसके साथ ही हमें कुछ ऐसी चीज़ें भी सीखने को मिली जो एक बंद कमरे में बिठाकर कभी सिखाई नहीं जाती और जा सकती I

फिलहाल तो मेरी क्लास में सभी अपना काम देखकर अचंभित हैं और अपने आप पर यकीन नहीं कर पा रहे कि हम सभी मानसिक तनाव के चलते भी इतना काम कर पाने में सफल हुए और इस चुनौती पर जीत हासिल की I आखिर में मैं बस यही कहना चाहूँगा कि भले ही आत्मनिर्भर होना आज के समय की माँग है लेकिन अगर प्रियजनों का साथ मुसलसल हमारे ऊपर बना रहे, तब भी मानसिक तनाव पर जीत हासिल की जा सकती है I

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