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बात यदि कागज़, कलम, सही- गलत की हो और मैं अपने अध्यापकों का वर्णन न करूँ तो ये नाइंसाफी होगी
और एक अध्यापक और गुरु में क्या अंतर है ?
चलिए देखते हैं -
गुरु शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है। पारमार्थिक और सांसारिक ज्ञान देने वाले व्यक्ति को गुरु कहा जाता है।
माता-पिता के बाद गुरु ही होता है, जो हमें बिना किसी भेदभाव और निस्वार्थ भाव से हमारे जीवन को सकारात्मकता की ओर ले जाने में हमारी मदद करते हैं और हमें नकारात्मकता से दूर रखते हैं।
हमारे जीवन में गुरु के महत्व को धर्म ग्रंथों में विस्तार से संस्कृत भाषा में समझाया गया है। अन्य भाषाओं में भी हमें वर्णन दिखाई देता है।
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
भावार्थ:
उस महान गुरु को अभिवादन, जिसने उस अवस्था का साक्षात्कार करना संभव किया जो पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है, सभी जीवित और मृत्यु (मृत) में।
शिक्षक दिवस हो या गुरु पूर्णिमा, इस श्लोक को शायद ही किसी ने लिखा-पढ़ा, या इस पर सोच-विचार किया।
इस श्लोक को अंकित कर महत्व देना अति आवश्यक है। गुरु केवल वे नहीं जो हमें स्कूल - कॉलेज में पढ़ाएं, हर एक व्यक्ति जिससे हम मिलते हैं वह हमें कुछ नया सिखाने की क्षमता रखता है (कुछ अच्छा या बुरा ये हम पर निर्भर करता है )
मेरे जीवन में ऐसे शिक्षकों की कमी नहीं रही, शायद इसलिए आज में इतना सब लिखने में सक्षम हूँ।
जिन शिक्षकों ने विद्यालय में पढ़ाया वे भी पढ़ा कर चले गए
अपने नए रास्ते खोजने
सिखा गए अच्छी आदतें और चरित्र का महत्व...
श्लोक की यदि बात करें, इसका भावार्थ अधूरा है -
यह क्या सिखाना चाहता है, हमारी सोच पर निर्भर करता है।
मेरे लिए -
यह चेतना की बात करता है, और उस गुरु को न केवल धन्यवाद कहने परन्तु आशिर्वाद लेने के लिए प्रेरित करता है जिसने मुझे इस चेतना को विस्तृत करने का मूलमंत्र दिया।
ऐसा ही कुछ मराठी में भी लिखा गया है, जिसमें वे आदियोगी (आदिगुरु ) का शुक्रिया अदा करते हैं।
आदियोगीने मानवतेला योगशास्त्राचं विज्ञान प्रदान करून दिलं – जे स्वपरीवर्तनाचे अनमोल साधन आहे. आणि हे कुठल्याही जोर-जबरदस्तीशिवाय हजारो वर्षे टिकून आहे ते केवळ त्याच्या विलक्षण प्रभावीपणामुळे.
यदि कबीरदास जी के शब्दों में व्यक्त करें तो -
गुरु गोविंद दोउ खड़े ,काके लागूं पांय ।
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय ।
गुरु और गोविंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरु को अथवा गोविंद को?
ऐसी स्थिति में गुरु के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थी के लिए जितना महत्व उसके माता-पिता का नहीं होता उतना उसके लिए 'गुरु' का होता है।
महाभारत के द्रोणाचार्य-अर्जुन, निजामुद्दीन औलिया-अमीर खुसरो और चाणक्य और अशोक जैसे गुरु शिष्य संबंध के बारे में हम सभी जानते हैं।
कहा जाता है गुरु ऐसी कुंजी है जिसके द्वारा मनुष्य जीवन रूपी पथ का असल राही बन पाता है ।
गुरु और शिष्य का संबंध होता ही अतुल्य है ।
अंत में मैं अपने विचार एक दोहे के माध्यम से व्यक्त करना चाहूंगा।
गुरू पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।।
गुरु और पारस के अंतर को सभी ज्ञानी पुरुष जानते हैं।
पारस मणि के विषय जग विख्यात हैं कि उसके स्पर्श से लोहा सोने का बन जाता है किन्तु गुरू भी इतने महान हैं कि अपने गुण ज्ञान में ढालकर शिष्य को अपने जैसा ही महान बना लेते हैं।
मैं आज जो कुछ भी हूँ इसके पीछे अनेक लोगों का हाथ एवं कुछ महान व्यक्तियों का आशीर्वाद है। मैं वो अध्येता थी जिससे परीक्षा में अनुच्छेद नहीं लिखा जाता था - और आज ये किताब।
सादर नमन।