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अब ना चाँदनी रात की आस है,
अब ना मेरे लिए तू ख़ास है,
चली गईं तू जैसे अमावस्या को,
चाँद छुप जाता है,
फिर ना लौटी तो हालत हो गया था,
जैसे किसी बच्चे का खिलौना कोई तोड़ देता है,
ये रिश्ता, ये प्यार, सब दिखावा बन गया था सायद तुम्हरे लिए,
ना जाने फिर क्यों ऐसा लगता था कि तुम मुझसे मिलने के लिए तरसती है,
तेरे साथ जो वक्त गुजारा था, अब ना वो ख़ास है,
तेरे साथ जो वादे किए थे, अब ना वो मुझे याद है,
हाँ, मैं फिर से मुस्कुराना चाहता हूँ,
खिल-खिला कर हंसना चाहता हूँ,
बच्चों की तरह लड़ना चाहता हूँ,
उन सारे जख्मों पर मलहम लगाना चाहता हूँ,
टूटे हुए वादों को पूरा करना चाहता हूँ,
मैं एक नई कहानी रचना चाहता हूँ,
खुद को फिर से एक नई ज़िंदगी देना चाहता हूँ,
मगर इस बार तुझसा या तुझसे नहीं,
सही हमसफ़र के साथ ज़िंदगी गुजारने का वादा करना चाहता हूँ,
सोचा तो ये भी था कि पहला प्यार भी तू होगी और आख़िरी भी तू होगी,
सोचा तो ये भी था कि सनम कहने की भी हक सिर्फ़ तेरी ही होगी,
खैर... जाने दो, सोचा हुआ बात कहाँ सच होती है,
और जनहित में जारी है, एकतरफा प्यार अक्सर अधूरी ही रह जाती है,
तेरे बिना दुनिया बेशक अंधेरे जैसी है,
मगर अंधेरा से बड़ा साथी कोई नहीं,
अब तू नहीं तो कोई और सही ।
ये दिल अब खिलौना नहीं है मेरा,
तेरे जैसे लोग से मिलना नहीं है अब दोबारा,
हाँ... बेशक उजाले दुनिया से अंधेरे का प्रतीक बन गया हूँ,
पहले मैं राम था और अब रावण बन गया हूँ।