Image by chatgpt.com

मानव जीवन में भाषा का स्थान सर्वोपरि है। शिशु के जन्म के साथ ही उसे सबसे पहले विरासत के रूप में भाषा प्राप्त होती है। समाज, संस्कृति, शिक्षा, संपत्ति और कर्तव्य जैसी चीज़ें बाद में आती हैं, जो भाषा के माध्यम से धीरे-धीरे उसके जीवन का हिस्सा बनती हैं। पृथ्वी में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ प्राणी इसलिए भी कहा जाता है, क्योंकि उसके पास अन्य प्राणियों की तुलना में विशिष्ट भाषा है। विशिष्ट भाषा होने के कारण मनुष्य ने तीव्र गति से अपने ज्ञान, विज्ञान, कौशल, शिक्षा, चेतना और बौद्धिकता का विकास किया है। यह भाषा की ही देन है कि उसने मनुष्य के जीवन को इतना सरल बना दिया है, नहीं तो मनुष्य आज इतनी ऊँचाइयों पर नहीं होता। भाषा के कारण ही इतने आविष्कार, वैज्ञानिक खोज-अनुसंधान, सूचना का निर्बाध प्रवाह, संचार के आधुनिक साधन, उद्योग-धंधे, व्यावसायिक संरचनाएँ, विश्वविद्यालय, पुस्तकालय आदि का निर्माण संभव हो पाया है। वस्तु विनिमय और क्रय-विक्रय का सटीक हिसाब-किताब, विविध संस्कृतियों और सभ्यताओं का प्रचार-प्रसार, इतिहास के मूल्यवान दस्तावेज़ों तथा विभिन्न कालखंडों के विशाल साहित्य का संरक्षण करना संभव हुआ है। भाषा का अस्तित्व केवल भाव सम्प्रेषण तक ही सीमित नहीं है, अपितु आज के भूमंडलीकरण, वैज्ञानिक और सूचना क्रांति के समय में राष्ट्रीय अस्मिता से भी है।

हिंदी: भारत की राष्ट्रीय पहचान

भारत भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषाई विविधता का एक अनुपम देश है। यहाँ 121 आधिकारिक भाषाएँ और 1600 से अधिक बोलियाँ बोली जाती हैं। संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को सम्मिलित किया गया है जिनमें से एक हिंदी भी है। 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को भारतीय संविधान द्वारा राजभाषा का दर्जा दिया गया तथा अनुच्छेद 343 से लेकर 351 तक राजभाषा के उपबंधों की चर्चा की गई है। राजभाषा हिंदी कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक पूरे भारत को आपस में जोड़ती है। हिंदी अपने वर्तमान स्वरूप में संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश से विकसित होते हुए आई है। हिंदी पाँच उपभाषाओं और 18 बोलियों का समूह है। हिंदी भारत की केवल एक भाषा भर नहीं है, बल्कि यह भारत की राष्ट्रीय अस्मिता भी है। यह देश की अघोषित राष्ट्रभाषा होते हुए पूरे देश की सम्पर्क भाषा है। देश की राष्ट्रीय एकता और अखंडता का प्रतीक है। हिंदी ही विश्व में भारत की वैशिष्ट्य परम्परा, ज्ञान, आयुर्विज्ञान, योग, पुरातन संस्कृति, सभ्यता, ऐतिहासिक सम्पदा, इतिहास, अलौकिक कलाएँ, वास्तुकला, रीति-रिवाज, समृद्ध संस्कृति, विराट साहित्य और वैश्विक चेत को स्थापित करती है। हिंदी के माध्यम से ही विश्व भारत से जुड़ता है और भारत के बारे में अपनी समझ रखता है। इस तरह हिंदी देश के भीतर और बाहर बृहद सम्पर्क भाषा का काम करती है।

हिंदी का वैश्विक परिदृश्य

भाषावैज्ञानिकों के मतानुसार विश्व में 6000 से अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं। वर्ल्ड लैंग्वेज डेटाबेस के 22वें संस्करण एथ्नोलॉग के अनुसार विश्व में 20 सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में 6 भारतीय भाषाएँ हैं, जिनमें हिंदी तीसरे पायदान पर है। एथ्नोलॉग में बताया गया है कि विश्व में 61.5 करोड़ लोग हिंदी भाषा का प्रयोग करते हैं। अपनी मज़बूत संख्याबल के आधार पर हिंदी एक वैश्विक भाषा का रूप अंगीकार करती है। बाज़ारवाद और भूमंडलीकरण के दौर में भारत एक मज़बूत आर्थिक शक्ति के रूप में जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है, उससे विश्व का ध्यान भारत की शिक्षा, साहित्य, संस्कृति, सामाजिक संरचना और लोक कलाओं को जानने के लिए उत्सुक है। वैश्विक स्तर पर हिंदी की स्वीकार्यता और लोकप्रियता बढ़ रही है। प्रायः सभी महाद्वीपों में हिंदी भाषी समुदाय निवास करते हैं। हिंदी प्रवासी भारतीयों की बाहुल्यता वाले देश मुख्य रूप से फिजी, मॉरिशस, सुरीनाम, ट्रिनिडाड, टोबैगो, गुयाना, कंबोडिया, दक्षिण अफ्रीका तथा हॉलैंड आदि देशों की प्रमुख भाषा है, तो वहीं अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, सऊदी अरब, इंग्लैंड, फ्रांस तथा खाड़ी देशों में भी हिंदी भाषी बहुतायत मात्रा में मिल जाते हैं।

भारत के पड़ोसी देश जैसे- पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्याँमार, श्रीलंका और मालदीव आदि में भी हिंदी अधिसंख्यक रूप में प्रयुक्त होती है। हिंदी पड़ोसी देशों के बीच जनसंचार का माध्यम तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों तथा आर्थिक विनिमय की संवाहक का काम भी करती है। भारतीय संस्कृति से प्रभावित दक्षिण-पूर्व एशियाई देश जैसे इंडोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड, चीन, मंगोलिया, कंबोडिया, कोरिया तथा जापान आदि देशों में भी हिंदी का अध्ययन और अध्यापन होता है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूरोप के कई देशों में हिंदी को विश्व की आधुनिक भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है। संयुक्त अरब अमीरात, दुबई, अफगानिस्तान, कतर, मिस्र, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान आदि खाड़ी देशों में श्रमिकों की भाषा हिंदी ही है। इस तरह हिंदी के समग्र अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि विश्व के लगभग 73 देशों में हिंदी अपना स्थान बना चुकी है।

तकनीकी क्षेत्र में हिंदी की उपस्थिति

हिंदी ने उस भ्रम को तोड़ दिया है कि वह विज्ञान और आधुनिक तकनीक की भाषा नहीं बन सकती। आज कंप्यूटर के अनुप्रयोग तथा सूचना एवं संचार क्रांति के कारण हिंदी का महत्व और भी अधिक हो गया है। बहुत सारे सॉफ्टवेयर और कंप्यूटर प्रोग्राम हिंदी में उपलब्ध हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व के सरकारी कागजातों का हिंदी में दस्तावेज़ीकरण किया जा रहा है। गूगल सर्च इंजन पर हिंदी आधारभूत भाषा के रूप में प्रयुक्त की जा रही है। कंप्यूटर, मोबाइल, लैपटॉप में हिंदी की-बोर्ड उपलब्ध होने से जनसामान्य के लिए काम करना सहज हो गया है। गूगल ट्रांसलिट्रेशन के माध्यम से विश्व की अन्य भाषाओं में निहित ज्ञान और जानकारी प्राप्त करने में सुविधा हुई है। इंटरनेट उपभोक्ताओं के लिए कई सुंदर और आकर्षक हिंदी फ़ॉन्ट, एप, कन्वर्टर, टाइपिंग टूल्स आदि उपलब्ध हैं।

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, क्लाउड कंप्यूटिंग, डेटा एनालिसिस जैसे अति संवेदनशील और तकनीकी क्षेत्र में भी हिंदी पदार्पण कर चुकी है। माइक्रोसॉफ्ट और विंडोज में हिंदी की प्रभावकारिता को देखा जा सकता है। वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियाँ ही उन्नत राष्ट्र का मेरुदंड होती हैं। आज वही देश आगे हैं जिसने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में नए-नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। आने वाले समय में उन्हीं भाषाओं का अस्तित्व बचा रहेगा जो कौशल, रोजगार और बाज़ार उपलब्ध करा सकती हैं। ग्राफिक्स और एनीमेशन का क्षेत्र हो, वीडियो गेम्स हो, न्यूज़ चैनल हो, सोशल नेटवर्किंग हो, ओसीआर, ईमेल और ब्लॉगिंग हो; हर क्षेत्र में हिंदी अपनी पैठ बना चुकी है। हिंदी कंप्यूटर और तकनीकी केन्द्रित होती जा रही है, जिससे यह सूचना प्रवाह की प्रमुख भाषा बन चुकी है। हिंदी को तकनीकी भाषा के रूप में प्रचार-प्रसार करने से वैश्विक स्तर पर हिंदी की मान्यता में अभिवृद्धि हुई है। आज हिंदी विश्व के नवीनतम विषयों पर जानकारी और सूचनाओं को संग्रहित करने की क्षमता रखती है।

साहित्य और सिनेमा की भाषा

हिंदी में वैश्विक स्तर के साहित्य सृजन ने हिंदी को वैश्विक चेतना की संवाहक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। साहित्य समाज का दर्पण होता है, इसलिए कहा जाता है कि किसी भी देश के सामाजिक, सांस्कृतिक, पुरातात्विक, ऐतिहासिक, सामरिक, आर्थिक, भौगोलिक एवं राजनैतिक पक्षों को समग्र में समझना हो, तो उस देश के साहित्य के पन्ने पलटिए। भिन्न भाषा, संस्कृति और भूगोल में रहने वाले लोगों की वैचारिकता, बौद्धिकता, शैक्षिक और वैज्ञानिक सोच, दार्शनिक एवं आध्यात्मिक चेत, राष्ट्रबोध, विश्वबोध, मानवीय संबंधों को समझने में भी साहित्य सर्वसुलभ माध्यम माना जाता है। हिंदी में साहित्य सृजन की परंपरा लगभग आठवीं सदी में शुरू हुई, जिसमें विभिन्न विधाओं में साहित्य लिखा गया। हिंदी साहित्य में निहित गहरी संवेदनशीलता, कल्पनाशीलता, सृजनशीलता और मिथकीय चरित्रों ने सदैव विश्व के पाठकों को आकर्षित और लालायित किया है। भारत विश्व में ज्ञान, विज्ञान, कला, उद्यम, धार्मिक और सांस्कृतिक आचरण, राजा-महाराजाओं, युद्ध कौशल, कूटनीति, राजनीति, दर्शन, मिथक और गौरवशाली अतीत के लिए जाना जाता है। भारत की यह विरासत और संपदाएँ हिंदी साहित्य में प्रतिबिंबित होती आई हैं। विभिन्न भाषाओं में अनुवाद के माध्यम से विश्व भर में हिंदी साहित्य पहुँच रहा है और यह क्रम लगातार जारी है। पुरानी पीढ़ी के साहित्यकारों की अपनी धाक तो रही ही है, समकालीन हिंदी साहित्य ने भी कई विश्वप्रसिद्ध उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। हिंदी सिनेमा उद्योग ने भी सांस्कृतिक रूप से हिंदी के वर्चस्व को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया है। भारत के पड़ोसी देशों और खाड़ी देशों में हिंदी सिनेमा और हिंदी गीत लोकप्रिय हैं। भाषाई रूप से हिंदी ने विश्व को एक परिवार के रूप में जोड़ने का काम किया है।

यूनेस्को में हिंदी

भारत अपनी समृद्ध वास्तुकला, लोक कला और सांस्कृतिक विरासत के लिए विश्वविख्यात है, जहाँ हिंदी भाषा इन सभी तत्वों को जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में उभरती है। हिंदी न केवल भारत की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का माध्यम है, बल्कि वैज्ञानिकों, पुरातत्वविदों और विद्वानों के लिए भारतीय ज्ञान, विज्ञान और वास्तुकला के अध्ययन में एक आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible Cultural Heritage) की सूची में भारत की 15 सांस्कृतिक विरासतें सम्मिलित हैं, जिनमें प्रमुख रूप से रामलीला, कुम्भ मेला, दुर्गा पूजा, वैदिक मंत्र आदि हिंदी भाषा और हिंदी बोलने वाले क्षेत्रों से गहराई से जुड़ी हुई हैं, तथा वे हिंदी की सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतिनिधित्व करती हैं। यूनेस्को के कार्यों में हिंदी भाषा को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, जहाँ बहुत सारे दस्तावेज़, रिपोर्ट और सांस्कृतिक कार्यक्रम हिंदी में उपलब्ध कराए जाते हैं, ताकि भारत की बड़ी आबादी तक पहुँच बन सके। उदाहरण स्वरूप, यूनेस्को ने भारत के विश्व धरोहर स्थलों के हिंदी विवरण अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करने की सहमति दी है, जिससे हिंदी भाषी लोगों को अपनी विरासत के बारे में आसानी से जानकारी मिल सके। इसके अलावा, यूनेस्को ग्लोबल रिपोर्ट के कार्यकारी सारांश को हिंदी में अनुवादित किया गया है और विश्व हिंदी दिवस को यूनेस्को मुख्यालय में मनाया जाता है, जहाँ हिंदी साहित्य और सांस्कृतिक महत्व पर चर्चाएँ होती हैं। यह सब दर्शाता है कि हिंदी न केवल भारत की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग है, बल्कि वैश्विक स्तर पर यूनेस्को जैसे संगठनों के माध्यम से इसे बढ़ावा दिया जा रहा है, जो हिंदी को वैश्विक संवाद का माध्यम बनाने में योगदान देता है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा और बहुभाषावाद

हिंदी की वैश्विक उपयोगिता और बढ़ते प्रभुत्व क्षेत्र को रेखांकित करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भारत की ओर से प्रस्तावित बहुभाषावाद के प्रस्ताव को स्वीकृत कर लिया है। अब संयुक्त राष्ट्र ने अपनी भाषाओं में हिंदी को भी सम्मिलित कर लिया है। भारत द्वारा 1946 में प्रस्तावित पत्र में कहा गया था कि संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों को तब तक प्राप्त नहीं किया जा सकता जब तक कि विश्व के लोगों तक इसकी जानकारी नहीं हो जाती। विश्व के जनसमुदाय तक पहुँचने के लिए बहुभाषावाद एक सर्वोत्तम माध्यम है। जब अनेक भाषाओं के माध्यम से सूचनाओं, उद्देश्यों एवं योजनाओं को संप्रेषित किया जाएगा, तब वास्तव में ही उसकी पहुँच और धमक बृहत् और व्यापक होगी। इस बात को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने पहली बार महसूस किया कि संयुक्त राष्ट्र के कामकाज में हिंदी एवं अन्य भाषाओं को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए। वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र में 193 देश सम्मिलित हैं और अभी तक 6 भाषाओं को आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है। शुरू में अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और चीनी भाषा को ही आधिकारिक भाषा के रूप में सम्मिलित किया गया था, क्योंकि यह महाशक्ति देशों की भाषाएँ थीं। बाद में अरबी और स्पेनिश को भी आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया। यहाँ ध्यान दिया जाना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र के कामकाज में ही हिंदी को प्रयुक्त किया जा रहा है, किन्तु यह संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा नहीं है। फिर भी, भारत के लिए यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। भारत और विश्व के सभी हिंदी प्रेमियों के लिए यह बड़े गर्व की बात है। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र सचिवालय की कामकाजी भाषाओं में केवल अंग्रेजी और फ्रेंच ही प्रयुक्त की जाती रही हैं, किन्तु अब हिंदी को भी सम्मिलित करने से संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट पर हिंदी में भी सूचनाओं को संग्रहित किया जाएगा।

हिंदी के वैश्विक यात्रा का शुभारम्भ सन् 1975 में नागपुर, भारत में आयोजित प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन से हुआ था। हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के उद्देश्य से 2008 में मॉरिशस में विश्व हिंदी सचिवालय खोला गया था। किसी भाषा को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देने के लिए कोई विशेष मापदंड नहीं बनाया गया, किन्तु इसकी एक प्रक्रिया है जिसके तहत किसी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया जाता है। किसी भाषा को संयुक्त राष्ट्र में आधिकारिक भाषा के रूप में सम्मिलित किए जाने की प्रक्रिया में संयुक्त राष्ट्र महासभा में साधारण बहुमत द्वारा संकल्प को स्वीकार करना और संयुक्त राष्ट्र की कुल सदस्यता के दो तिहाई बहुमत द्वारा उसे अन्तिम रूप से पारित करना होता है। भारत लंबे समय से हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने की मुहिम में प्रयासरत है। अपनी मज़बूत संख्याबल के आधार पर भारत हिंदी को एक वैश्विक भाषा बनाने के लिए आंदोलनरत है।

वैश्विक बाज़ार में हिंदी

वैश्विक परिदृश्य में भारत का जितना महत्व है उतना ही भारतीय भाषाओं का भी है। जनसंख्या के हिसाब से भारत विश्व के दूसरे स्थान पर आता है, तो जाहिर सी बात है कि भारत में उत्पादों की खपत अन्य देशों की तुलना में बहुत ज्यादा है। भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इस लिहाज से देखें तो वैश्विक परिदृश्य में हिंदी की उपयोगिता बढ़ी है और यह आगे और भी बढ़ेगी। फ्रेंच वैज्ञानिक जाफ लाफ्का ने मनुष्य के मस्तिष्क और भाषा के अन्तर्संबंधों पर 20 वर्ष तक शोध किया और वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि मनुष्य की संवेदनशीलता, कल्पनाशीलता और रचनात्मकता उसकी मातृभाषा में कोडिंग होती है। विश्व के सभी भाषाविदों का मत है कि व्यक्ति अपनी भाषा में ही मौलिक चिंतन कर पाता है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी भाषा में ही सोचता है, विचार करता है और नवीन कल्पनाएँ करता है। यहाँ तक कि हम सपने भी अपनी भाषा में देख रहे होते हैं। यदि हम किसी दूसरी भाषा में संवाद करते हैं या विचार करते हैं, तो वह सभी कार्य अनुवाद के स्तर पर हो रहा होता है और हमारा मस्तिष्क बहुत तेजी से उसका अनुवाद कर रहा होता है।

मनुष्य और मातृभाषा के बीच के इन्हीं अन्तर्संबंधों को देखते हुए बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ और ब्रांड अपने उत्पादों को हिंदी में प्रचार-प्रसार करने लगी हैं। भारत में 43.63% जनसंख्या हिंदी को मातृभाषा के रूप में प्रयुक्त करती है, तो शेष द्वितीय एवं तृतीय भाषा के रूप में प्रयुक्त करती है। इतने बड़े बाज़ार को कोई भी विदेशी कंपनियाँ अनदेखा कर ही नहीं सकतीं। भारत आर्थिक और राजनैतिक रूप में एक मज़बूत देश है, तो वहीं शिक्षा, विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में भी निरंतर आगे बढ़ रहा है। इधर कुछ वर्षों से लोगों की जीवनशैली और महत्वाकांक्षाओं में बहुत परिवर्तन आया है जिससे तरह-तरह की चीज़ों की माँग बढ़ी है। यदि उत्पादक उपभोक्ताओं की भाषा में अपने उत्पादों को बेचने लगे तो उसकी पहुँच बड़ी जनसंख्या तक पहुँचती है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए भी विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी को विशेष महत्व के साथ पढ़ाया जाता है। विश्व के 150 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्ययन और अध्यापन हो रहा है। यह भी विश्व में हिंदी की उपयोगिता को इंगित करता

विश्व को भारत की देन

भारत विश्व के लिए केवल एक बाज़ार भर नहीं है। भारत उपभोक्ताओं का उत्पादक भर भी नहीं है। भारत ने विश्व को बहुत कुछ दिया है। भारतीय दर्शन और अध्यात्म से विश्व परिचित है। आज की भागती-दौड़ती जीवन में मनुष्य मानसिक शांति चाहता है। मनुष्य सांसारिक कर्मों से मुक्त होकर आध्यात्मिक शांति चाहता है। भारतीय आयुर्विज्ञान और योग इसके बहुत अच्छे उदाहरण हैं। भारत की ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक और प्राकृतिक संपदाएँ भी विश्व को अपनी ओर खींचती हैं। भारत विश्व में पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। भारत के विभिन्न प्रांतों के लोगों से जुड़ने के लिए पर्यटकों को हिंदी की शरण में जाना ही पड़ता है और इसके लिए वे अपने साथ सामान्य हिंदी वार्तालाप सिखाने वाली छोटी-छोटी पॉकेट बुक्स को साथ में रखते हैं।

भारतीय लोक कलाएँ, वास्तुकला, परंपराएँ, नृत्य, संगीत और साहित्य से जुड़ने के लिए भी लोग हिंदी सीख रहे हैं। हिंदी का प्रभुत्व क्षेत्र काफी बड़ा होने के कारण लोकप्रियता पाने के लिए भी लोग हिंदी से जुड़ना चाहते हैं। आए दिन विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, रियलिटी शो, टेलीविजन कार्यक्रमों में हम कई विदेशी कलाकारों को देखते हैं। हिंदी सिनेमा जगत और गीत-संगीत भी विश्व की प्रतिभाओं को सम्मान देता है। हिंदी उन्हें सम्मान भी देती है और पहचान भी देती है। भारत के पड़ोसी देशों में हो या यूरोपीय देशों में हो या फिर खाड़ी देशों में, हिंदी के बदौलत विश्व के किसी भी कोने में आसानी से घूमना-फिरना कर सकते हैं। यहाँ तक कि खाड़ी देशों में यह रोजगार की प्रमुख भाषा के रूप में प्रयुक्त की जाती है।

निष्कर्ष - हिंदी का स्वर्णिम भविष्य

हिंदी केवल जनसामान्य की जीवनशैली तक सीमित नहीं है; यह आर्थिक, राजनैतिक, कूटनीतिक और सामरिक क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करने, मित्रवत व्यवहार को बढ़ावा देने और शांतिपूर्ण वातावरण स्थापित करने के लिए विदेशी दूतावासों और सरकारी कार्यालयों में हिंदी का उपयोग बढ़ रहा है। विश्व पर्यटन को बढ़ावा देने में हिंदी एक प्रमुख भाषा के रूप में उभरी है। यूरोपीय देशों में पर्यटकीय व्यवसाय के विस्तार के लिए भारतीय और हिंदी भाषी पर्यटकों को आकर्षित करने हेतु हिंदी साइनबोर्ड, सूचना पट्ट और हिंदी सेवा केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं। होटल, रेस्तरां और पर्यटक पैकेजों में हिंदी द्विभाषी कर्मचारियों की नियुक्ति हो रही है। मनोरंजन, खेल-कूद, मीडिया, हॉस्पिटैलिटी के क्षेत्रों में भी हिंदी की माँग बढ़ रही है। भारत में तकनीकी जागरूकता बढ़ने के साथ ही विभिन्न सॉफ्टवेयरों का हिंदीकरण भी कर दिया गया है। आज हर तरह का सॉफ्टवेयर हिंदी में उपलब्ध है। इन सभी पहलुओं से यह ज्ञात होता है कि आने वाले समय में हिंदी का प्रभुत्व रहेगा और यह हिंदी के लिए स्वर्णिम अवसर है।

.    .    .

Discus