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बनारस जिसे वाराणसी और काशी के नाम से भी जानते हैं, जो पतित-पावनी माँ गंगा के तट पर बसा विश्व के प्राचीनतम एवं पवित्र नगरों में से एक है। लोगों की मान्यता है कि यहाँ मरने पर मोक्ष मिलता है लेकिन बनारस मरना नही, जीना सिखाता है। इसका इतिहास पौराणिक काल से जुड़ा हुआ है। स्कंद पुराण, पद्म पुराण, मत्स्य पुराण, महाभारत, रामायण के साथ-साथ प्राचीनतम ऋग्वेद में भी बनारस शहर इसका उल्लेख है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इसका विस्तार गंगा नदी के दो संगमों – वरूणा नदी और असी नदी के बीच बताया जाता है जिनके बीच की दूरी लगभग 2.5 मील है। 

मशहूर शायर नजीर बनारसी लिखते हैं –

"लेके अपनी गोद में, गंगा ने पाला है मुझे
नाम है मेरा नजीर और मेरी नगरी बेनजीर”

बनारस में विभिन्न कुटीर उद्योग हैं:

  • बनारसी रेशमी साड़ी उद्योग
  • कपड़ा उद्योग
  • कालीन उद्योग
  • हस्तशिल्प
  • लकड़ी व मिट्टी के खिलौने व सजावटी सामान

बनारस शहर क्यों विश्व भर में प्रसिद्ध हैं?

यूँ ही नहीं हमारा बनारस विश्व प्रसिद्ध हैं!

  • बनारसी मगही पान विश्व प्रसिद्ध है। इसकी खासियत यह है कि इसे चबाना नही पड़ता। मुहँ में डालते ही पूरे मुहँ में घुल जाता है।
  • बनारस के मशहूर लंगड़ा आम के लोग दीवाने हैं।
  • बनारसी रेशम साड़ियाँ अपनी महीनता एवं मुलायमपन के लिए विख्यात हैं जिसका आज भी वैवाहिक कार्यक्रमों व सभी पारंपरिक उत्सवों में अपने सामर्थ्य अनुसार पहनी जाती हैं।बनारसी साड़ियाँ सुहाग का प्रतीक मानी जाती हैं।
  • बनारस, महर्षि अगस्त्य, संत कबीर, संत रैदास, रानी लक्ष्मीबाई, लाल बहादुर शास्त्री (पूर्व प्रधानमंत्री) , मुंशी प्रेमचंद, महाकवि जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र , उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, पंडित रविशंकर, गिरिजा देवी, किशन महाराज, बिरजू महाराज, छन्नूलाल मिश्र आदि विभूतियो की जन्मभूमि है।
  • गोस्वामी तुलसीदास ने हिंदू धर्म का पवित्र ग्रंथ रामचरितमानस और विनय पत्रिका की रचना यही की। गौतम बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद अपना प्रथम उपदेश यही सारनाथ में दिया था।
  • विश्वभर में विख्यात काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू)। ये सिर्फ एक शिक्षण संस्थान ही नही, बल्कि बनारस की शान है, विरासत है, अभिमान है। मुख्य परिसर 1360 एकड़ भूमि में स्थित है जिसकी भूमि काशी नरेश ने दान की थी। 75 छात्रावासों के साथ यह एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है जिसमें लगभग 35000 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। यहाँ की सेंट्रल लाइब्रेरी अब एशिया की सबसे बड़ी साइबर लाइब्रेरी बन गई है। यहाँ के चिकित्सा विज्ञान संस्थान से संबद्ध सर सुंदरलाल चिकित्सा लय में रोजाना लगभग 5000 मरीज बहिरंग सेवा (ओपीडी) का लाभ हासिल करने आते हैं। अब तो ट्रामा सेंटर भी खुल चुका है।
  • यहाँ के स्थानीय निवासी मुख्यतः काशि का भोजपुरी भाषा बोलते हैं जो हिंदी की ही एक बोली है।
  • वाराणसी के प्रमुख मंदिर - यहाँ हर गली में मंदिर है।

वाराणसी का सबसे महत्वपूर्ण मंदिर भगवान शिव को समर्पित 'काशी विश्वनाथ मंदिर' है जो चौक के पास ज्ञान वापी क्षेत्र में अनादि काल से स्थित है और देश के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है । साथ ही प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट 'काशी विश्वनाथ कॉरिडोर' भी अदभुत दिखाई पड़ता है 5.3 लाख वर्गफीट में तैयार हुए भव्य कॉरिडोर में छोटी-बड़ी 23 इमारतें और 27 मंदिर हैं। इसी से आप इसकी भव्यता का अंदाजा लगा सकते हैं।

  • 'बिड़ला मंदिर' या 'नया विश्वनाथ मंदिर' जो कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय परिसर में स्थित है जो श्वेत संगमरमर से बना है और देश का सबसे ऊँचा मंदिर है।
  • 'काल भैरव मंदिर', 'माँ अन्नपूर्णा मंदिर'।
  • 'तुलसी मानस मंदिर' जो सफेद संगमरमर से बना है तथा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को समर्पित है। इसकी संपूर्ण दीवार पर रामचरितमानस लिखी गई है और रामायण के प्रसिद्ध चित्रण को नक्काशी द्वारा अंकित किया गया है। दूसरी मंजिल पर स्वचालित श्रीराम एवं श्रीकृष्ण लीला होती है।
  • 'संकटमोचन मंदिर' श्रीराम के अनन्य भक्त श्रीहनुमान को समर्पित है जिसकी स्थापना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी।
  • 'दुर्गा मंदिर' शक्ति की देवी माँ दुर्गा का भव्य मंदिर है जो लाल पत्थरों से बना है। यहाँ माता स्वयंभू (अपने आप) प्रकट हुई थी इसीलिए यहाँ प्रतिमा के स्थान पर देवी माँ के मुखौटे और चरण पादुकाओं का पूजन होता है।
  • 'बटुकभैरव मंदिर' महादेव का बालरूप है जो कमच्छा में स्थित है।
  • 'भारत माता मंदिर' काशी विद्यापीठ परिसर में स्थित है जहाँ संगमरमर से भारत माता का मानचित्र बनाया गया है।

माँ गंगा - 

माँ गंगा से पहचान है बनारस की। बनारस को गंगा के किनारे बसना था या गंगा को बनारस के किनारे बहना था, ये कोई नहीं जानता। पूरे देश में बनारस ही ऐसा शहर है जहाँ गंगा उत्तरवाहिनी है यानि दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है। गंगा की हर बूँद में बनारस बसा है। गंगा सब धर्मों और कौमों की माँ है। तट के 5 घाट - अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट, पंचगंगा घाट और आदि केशव घाट पौराणिक महत्व के हैं। सभी 84 घाट पक्के बने हुए हैं। अधिकांश घाट स्नान और पूजा समारोह घाट हैं जबकि दो घाटों -मणिकार्णिका और हरिश्चंद्र को श्मशान स्थलों के रूप में उपयोग किया जाता है। मणिकर्णिका की विशेषता यह है कि घाट पर चिता (शव) की अग्नि लगातार जलती रहती है, कभी बुझने नहीं पाती। अस्सी घाट की शाम की गँगा आरती बहुत विख्यात है तथा युवाओं में सबसे ज्यादा मशहूर भी है।

सारनाथ - 

वाराणसी से केवल 10 किलोमीटर दूर सारनाथ एक प्रसिद्ध बौद्ध स्थल है जहाँ भगवान बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश दिया था जिसे 'धर्मचक्र प्रवर्तन ' का नाम दिया जाता है। 'चौखंडी स्तूप' को बौद्ध धर्म और संस्कृति के सबसे दिव्य और महत्वपूर्ण स्मारकों में एक माना गया है। स्तूप ठीक उस जगह है जहाँ भगवान बुद्ध की मुलाकात अपने पांच शिष्यों से हुई थी। 'अशोक स्तंभ' सम्राट अशोक द्वारा 50 मीटर लंबा पत्थरों से निर्मित भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है जिसके शीर्ष पर चार शेर हैं और स्तंभ का चक्र हमारे तिरंगे का चक्र है।

रामनगर किला - 

किला वाराणसी से 14 किलोमीटर दूर गंगा के पूर्वी तट पर तुलसी घाट के सामने स्थित है जहाँ सड़क मार्ग के अलावा गंगा के किसी भी घाट से नौका द्वारा पहुँच जा सकता है। किला सन् 1750 में चुनार के बलुआ पत्थर से मुगल शैली में बना है और तब से ही काशी नरेश का आधिकारिक और स्थायी निवास रहा है। दुर्ग में छोटे-बड़े 1010 कमरे हैं और सात आंगन हैं। संग्रहालय के अंदर 19वीं सदी की विंटेज कारें, चांदी, हाथीदांत और लकड़ी की शाही पालकियाँ, ढाल, तलवारों और पुरानी बंदूकों का शस्त्रागार, प्राचीन घड़ियाँ, हाथीदांत के नक्का शीदार सामान रखे गये हैं। यहाँ खगोलीय (ज्योतिष/पंचांग घड़ी ) भी मौजूद है जो आधुनिक समय, दिन तथा तारीखों को तो बताती है साथ ही यह भारतीय ज्योतिष शास्त्र पर आधारित गणनाओं को भी व्यक्त करती है। इसमें नक्षत्रों , ग्रहों, राशियों, सूर्योदय, सूर्यास्त, चंद्रोदय, चंद्रास्त के साथ घड़ी , घंटा, पल तथा क्षण जैसे समय मानकों का भी पता चलता है। इसके अलावा रामनगर की रामलीला भी बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ की रामलीला देखने के लिए बनारस के कोने-कोने से लोग आते हैं।

बनारस की गलियाँ - 

बनारस वस्तुतः गलियों के शहर के नाम से जाना जाता है। यहाँ छोटी-बड़ी , पतली-संकरी सैकड़ों गलियाँ हैं जिसमे घूमते-घूमते आप कहाँ निकलेंगे कोई हर नहीं जानता । इन गलियों में सभी जाति , धर्म, संप्रदाय, बोली के लोग आपसी भाईचारे से मिलजुल कर रहते हैं, बड़े से बड़े खाटी बनारसी से भी अगर पूछा जाए कि आप बनारस की सभी गलियों के बारे में जानते हैं तो वह भी नहीं बता पाएंगे।

बनारस के प्रमुख मेले- बनारस के पांच मेले ऐसे हैं जिनमें लाखों की भीड़ जुटती है -

(1) चेतगंज की नक्कटैया का मेला

यह मेला विजयादशमी के बाद आयोजित होता है। मेले का आधार लक्ष्मण द्वारा शूपर्णखा की नाक काटकर बुरी व आसुरी शक्तियों का अंत करना है। इसमें रामचरितमानस की घटनाओं के क्रमवार प्रदर्शन के साथ-साथ तमाम तरह की सामाजिक बुराइयों और समकालीन समस्याओं जैसे बाल विवाह, सती प्रथा, नशाखोरी, भ्रष्टाचार, प्रदूषण, लूटपाट आदि की झाँकी निकाली जाती है।

(2) रथयात्रा मेला 

इस मेले में रथयात्रा नामक चौराहे पर लकड़ी के 14 पहिए वाले, 20 फीट चौड़े और 18 फीट लंबे विशाल रथ पर भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के काष्ठ के विग्रहों का दर्शन -पूजन किया जाता है जो 3 दिन तक चलता है। जग्गनाथ पुरी के बाद बनारस में ही रथयात्रा का इतना विशाल मेला आयोजित होता है। मान्यता है कि इन 3 दिनों में भगवान के विशाल रथ का पहिया अगर बारिश से भीग जाए तो वर्ष पर्यंत धन- धान्य की कमी नहीं रहती।

(3) नाटी इमली का भरत मिलाप

14 वर्ष के वनवास और रावण वध के बाद भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पक विमान पर सवार होकर मैदान पर पहुँचते हैं। हनुमान द्वारा सूचना पाकर भरत और शत्रुघ्न नंगे पाव दौड़ते हुए वहाँ पहुँच कर साष्टांग दंडवत करते हैं। राम-लक्ष्मण दौड़कर उनके पास पहुँचते हैं और चारों भाई आपस में गले मिलते हैं जिसे भारत मिलाप के नाम से जाना जाता है।

(4) नाग नथैया मेला

माँ गँगा के तुलसी घाट पर यह मेला आयोजित होता है। इस दिन काशी में उत्तर वाहिनी गंगा यमुना में बदल जाती है। यमुना तट पर बालकृष्ण सखाओं के साथ गेंद खेलते हैं। खेलते-खेलते गेंद यमुना में चली जाती है। तब श्रीकृष्ण कदंब की डाल से यमुना रूपी गंगा में छलांग लगाते हैं और प्रदूषण के प्रतीक कालिया नाग का मान मर्दन कर प्रकृति के संरक्षण का संदेश देते हुए फन पर खड़े होकर बंसी बजाते हुए प्रकट होते हैं और संपूर्ण गंगा तट किशन कंहैया लाल की जय और हर-हर महादेव के उद्घोष से गूँज उठता है।

(5) देव-दीपावली

हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन सायं काल में बनारस के सभी घाटों को मिट्टी के दीयों से सजाया जाता है और विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। लगभग 3 किलोमीटर में फैले

गंगा के अर्ध चंद्राकार घाटों पर जगमग करते लाखों- करोड़ों दीप गंगा की निर्मल धारा में इठलाते-बहते जाते हैं। ये दीए बुझ ना जाये इसके लिए लोग लगातार इनमें तेल डालते रहते हैं। लोग गंगा किनारे पैदल और गंगा की धार में किराए की नावों में बैठकर परंपरा और आधुनिकता के इस अद्भुभुत संगम का अवलोकन करके अपने को धन्य मानते हैं।

मैं यहाँ ये कहना चाहता हूं कि यदि आप जल्दी में हों और एक दिन में बनारस घूमना चाहते हों तो बनारस घूमने मत आना। पहले तो एक दिन में आप बनारस नहीं देख सकते। अगर देख भी लें तो घूम नहीं सकते। घूम भी लें तो समझ नहीं सकते और बनारस को समझना पड़ता है। जिसने बनारस को समझ लिया फिर वो सीधे प्रधानमंत्री तक बन सकता है। के ल पढ़-सुनकर बनारस को नहीं समझा जा सकता, उसे देखना पड़ता है, समझना पड़ता है।

ये वो शहर है जहाँ बिस्मिल्लाह खां भोले बाबा के दरबार में शहनाई बजाते थे तो प्रेमचंद बच्चों को ईदगाह की कहानी सुनाते थे।

इसीलिए यह कहाँ जाता है कि...

बनारस न रुकता है, न थमता है, न सोता है, न अलसाता है।
बस चलता रहता है। यहाँ कभी रात नहीं होती।
जहाँ राख भी रख दो तो पारस हो जाता है।
यं ही नहीं कोई शहर बनारस हो जाता है
बनारस अपने बारे में कहता है -
जिस ने भी छुआ वो स्वर्ण हुआ,
सब कहें मुझे मैं पारस हूँ।
मेरा जन्म महाश्मसान मगर,
मैं जिंदा शहर बनारस हूँ।

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