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ईसा से 2 हजार वर्ष पूर्व भी धनराशि के उधार देने-लेने की प्रथा प्रचलित थी, साथ ही अनेक स्थानों पर वस्तु-विनियम अर्थात वस्तु के बदले वस्तु लेन-देन के माध्यम से व्यापार को आगे बढ़ाया जाता था। कोटिल्य के अर्थशास्त्र ग्रंथ से भी इस बात का पता चलता है कि प्राचीन काल मे साहूकारी का नियम था, परंतु ब्याज की दर एवं वसूली करने का नियम आज के जैसा नहीं था। जन-सामान्य अपनी बचत की हुई राशि को इन साहूकारों या महाजनो के पास जमा रखते थे तथा उस जमा पर महाजन कुछ ब्याज भी देते थे। आवश्यकता पड़ने पर ये धनराशि उधार के रूप में भी दी जाती, जिसके लिए बड़ी मात्रा मे ब्याज भी वसूला जाता| इससे यह कहा जा सकता है कि आधुनिक बैंकिंग प्रणाली से पूर्व भी बैंकिंग कार्य होते थे।
बैंकों की शुरुआत कब हुई - भारत में बैंकिंग प्रणाली स्थापित करने का श्रेय अंग्रेजों को जाता है, भारत में बैंकिंग की शुरुआत ब्रिटिश राज मे हुई थी। 19वी शताब्दी के आरंभ में 3 बैंको की शुरुआत की गई, जो क्रमश: बैंक ऑफ बंगाल (1806 में), बैंक ऑफ बॉम्बे (1840) और बैंक ऑफ मद्रास (1843) थे| बाद मे इन तीनों बैंक का विलय इम्परियल बैंक ऑफ़ इंडिया में हो गया। पंजाब नैशनल बैंक 1895 में सबसे पहले शुरु किया जाने वाला भारतीय बैंक था|
क्या है पारंपरिक बैंकिंग– शाखाओं में ग्राहकों को प्रदान की जाने वाली बैंकिंग सुविधा को पारंपरिक बैंकिंग कहा जाता है, जिसमें लोगों की जमाएं भौतिक रूप से स्वीकार की जाती है तथा ऋण देने व् कटौती की सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है, बचत खाता खोले जाते हैं, सावधि खाते खोले जाते हैं परन्तु इसके लिए ग्राहकों को बैंक में अनिवार्य रूप से जाना पड़ता था, ग्राहकों का काफी समय लग जाता था हालाकि पारंपरिक बैंकिंग में ग्राहक अपने कार्य को आसानी से कर पाने मे सक्षम होते हैं।
आज का युग एक ऐसा युग जिसमें किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को बैंकिंग के बिना कल्पना करना असंभव सा है, तथा बैंक को प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था का रीड़ माना जाता है। यह बात सच है कि विकसित देश के साथ-साथ विकासशील एवं अविकसित देशों मे तीव्र गति से वाणिज्यक गतिविधियों मे वृद्धि के कारण बैंको में लेनदेन की संख्या मे भी काफी वृद्धि हुई है।
अतः बढ़ते हुए लेनदेन को त्वरित निपटारा एवं उसका सही तरीके से रख-रखाव करना पारंपरिक बैंकिंग के साथ करना बैंकों के लिए एक चुनौती बन गयी थी। इस चुनौती का सामना करने हेतु अन्य संस्थानो के साथ-साथ बैंक ने भी विभिन्न तकनीकों को अपनाना शुरू कर दिया । इस कड़ी मे सर्वप्रथम जोड़-घटाव हेतु कैलकुलेटर का प्रयोग, फिर अंतरण हेतु टी. टी. का प्रयोग तथा समय के साथ बैंकों में कंप्यूटर का प्रयोग करना बैंकिंग क्षेत्र के लिए वरदान साबित हुआ था।
विज्ञान एवं अन्वेषण में जिस प्रकार नए-नए आविष्कार हो रहे थे, जिससे प्रत्येक देश के निवासी लाभान्वित हो रहे थे वैसे ही बैंकिंग जगत मे भी बैंकिंग का नया रूप देखने को मिला तथा इंटरनेट की उपलब्धता ने तो बैंकिंग कार्य क्षेत्र को ही बदल डाला।
डिजिटल बैंकिंग क्या है- डिजिटल बैंकिंग को ऑनलाइन बैंकिंग या ई-बैंकिंग के रूप में भी जाना जाता है, जिसका आशय है कि वितीय सेवाए डिजिटल माध्यम से ग्राहकों को प्रदान करना, जैसे एटीएम मशीन से नकद की निकासी, इन्टरनेट या मोबाइल बैंकिंग के माध्यम से धन-राशि का हस्तांतरण आदि।
डिजिटल बैंकिंग द्वारा बैंकिंग सुविधाओं को कही भी एव कभी भी पाया जा सकता है, जिसके द्वारा कोई भी बिना शाखा में गए, बैंकिंग सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं| भारत मे डिजिटल बैंकिंग के सबसे महत्वपूर्ण फ़ायदों में से एक यह है कि यह दूरस्थ स्थानों में मौजूद लोगों को बैंकिंग सेवाओं को आसानी से पहुंचाना।
आज से 10-15 वर्ष पूर्व किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि दूर बैठे लोगों से बात करने के लिए विडियो कॉलिंग का प्रयोग करेंगे परंतु सूचना प्रौद्योगिकी ने इसे साकार कर बनाया। लोग दूर बैठे अपने रिश्तेदारों या फिर अपने मिलने वालों से आसानी से रूबरू हो पाते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी इतनी तेजी से विकसित हो रही है जिससे यह कहना मुश्किल हो गया है कि आने वाले वर्षो मे कौन सी नयी तकनीक का निजात हो जाएम, जो मानव कल्याणकारी सुविधाओं से पूर्ण हो।
ठीक इसी प्रकार आज से 10-15 वर्षों पूर्व किसी ने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि बैंकिंग सुविधा घर बैठे भी प्राप्त की जा सकती हैं। पहले लोग बैंकों मे लंबी कतारों मे खड़े होकर अपना काम कराया करते थे परंतु समय के साथ बैंकिंग के क्षेत्र में तथा बैंकिंग कार्यप्रणाली में भी काफी परिवर्तन हुए हैं। आज बैंकिंग का मतलब बैंकिंग संबंधी कार्य आसानी से, घर बैठे
तथा कम समय में करने से है। जिस प्रकार बैंकिंग कार्यप्रणाली मे परिवर्तन होते जा रहे हैं उससे तो आने वाले भविष्य की कल्पना करना संभव नहीं रह गया, बैंकिंग परिवर्तन ग्राहकों के दिन प्रति दिन के बदलते मांग के साथ बदलती जा रही है। आज के ग्राहक अपने समय को ज्यादा महत्व देते है इसीलिए डिजिटल बैंकिंग को ही अपना एक मात्र विकल्प मान रहे हैं।
डिजिटल बैंकिंग की शुरुआत – 1960 के दशक मे डिजिटल बैंकिंग की शुरुआत एटीएम और डेबिट कार्ड के आने से हुई थी। 1960 के दशक में, बैंक ऑफ़ अमेरिका ऐसा बैंक था जिसने विश्व की पहली एटीएम मशीन की स्थापना की थी, जिसकी सहायता से ग्राहक बिना बैंक खजांची के नकद को प्राप्त कर पाते थे।
फिर सिटी बैंक ने पहला ऑनलाइन बैंकिंग प्रणाली को निजात किया| जिसके द्वारा ग्राहक डायल-अप कनेक्शन के माध्यम से बैंकिंग की सामान्य सुविधाओं का लाभ उठा पाते थे| समय के साथ दुनिया में भी बहुत बदलाव हुए| ब्राडबैंड के साथ इंटरनेट के आने से, ऑनलाइन पोर्टल बने जिसके माध्यम से बैंकिंग सुविधाओं का ऑनलाइन माध्यम से लाभ किया जाने लगा तथा 1990 के दशक तक इंटरनेट व्यापक रूप से उपलब्ध हो गया और धीरे-धीरे ऑनलाइन बैंकिंग आदर्श बनने लगी। 2000 के दशक में ई-कॉमर्स सिस्टम तथा ब्राडबैंड सिस्टम में निरंतर सुधार के चलते डिजिटल बैंकिंग को बहुत बढ़ावा मिला।
आज की बैंकिंग सेवाएँ – 2000 से 2010 के दशक में स्मार्ट मोबाइल फोन की बढती उपलब्धता ने मोबाइल बैंकिंग को बढ़ावा दिया| बैंकों ने इस दौर में अनेक मोबाइल बैंकिंग एप्पस लांच किये, जिसकी सहायता से ग्राहक, बैंकिंग की सामान्य सुविधाओं का लाभ घर बैठे ही उठाने लगे और धीरे-धीरे मोबाइल बैंकिंग ने प्रसिद्धी हासिल कर ली|
2007 में, यूएसएसए फेडरल सेविंग बैंक ऐसा पहला बैंक बना जिसने मोबाइल एप्प के माध्यम से मोबाइल बैंकिंग की शुरुआत की पारंपरिक बैंकिंग से परे एक डिजिटल बैंकिंग के द्वार खुल गए।
भारत का पहला डिजिटल बैंक आईसीआईसीआई बैंक है जिसने मोबाइल फोन पर भारत का पहला डिजिटल बैंक शुरू किया था। 2010 के दशक के बाद डिजिटल बैंकिंग के क्षेत्र मे आयी क्रांति से बैंकिंग का डिजिटल रूपांतरण शरू हो गया । मोबाइल बैंकिंग ने “मोबाइल जेब मे तो बैंकिंग की दुनिया मुट्ठी मे” के कहावत को सच बनाया है । न केवल वेतन भोगी बल्कि लघु, छोटे व मध्यम व्यवसायी भी डिजिटल बैंकिंग को ही अपना बैंकिंग चैनल का विकल्प मानने लगे क्योंकि डिजिटल बैंकिंग के माध्यम से समय की बचत, नकद ट्रांसिट सुरक्षा सुविधा, ऋण लेना व आसानी से प्रयोग आदि की सुविधाओं ने इसके प्रयोग को बढ़ा दिया है।
बैंकों मे डिजिटल मोड से बैंकिंग करना वर्ष 2019-2020 के दौरान तेजी से बढ़ा जब दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही थी। कोविड-19 महामारी की अवधि एक ऐसी भयानक अवधि थी, जिसके दौरान अनेकों परिवार ने अपना बहुत कुछ खोया था, लोग खाये बिना मर रहे थे, उस स्थिति में महामारी को रोकने के लिए सरकार ने सामाजिक दूरी संबंधी नियम को लागू किया था, जिससे लोग बैंकों में जाने से डर रहे थे, चूंकि कोविड-19 के दौरान सामाजिक दूरी के नियमों के चलते बैंकों की शाखाओं का परिचालन ध्वस्त हो गया था तथा ग्राहकों को बैंकिंग कामकाज में आ रही समस्याओं का समाधान बैंकों को तुरंत करना था, ऐसी कठिन परिस्थिति में ऑनलाइन बैंकिंग एक वरदान के रूप में सामने आया, जिसके माध्यम से लोग दूरस्थ स्थानों पर फसे अपने रिश्तेदारों को जरुरत के वक्त पर पैसों को पहुचने में समर्थ हो पाए थे| साथ ही नकद निकासी हेतु एटीएम मशीन ने भी बहुत मदद की थी| इस अवधि के दौरान छोटे से छोटे व्यापारी, ऑटो चालक, सब्जी बेचने वाले भी डिजिटल माध्यम से पैसे लेते थे।
नकद रहित अर्थव्यवस्था के विचार मात्र ने बैंकिंग के स्वरूप को एक नया आयाम प्रदान किया है तथा बड़े पैमाने पर मुद्रा के स्थान पर प्लास्टिक कार्ड एवं मोबाइल बैंकिंग/इंटरनेट बैंकिंग ने ले लिया है। डिजिटल बैंकिंग ने एक ओर जहाँ इसके व्यवहार मे तेजी लाई वही दूसरी तरफ नकद को अपने साथ रखने की प्रथा को भी कम कर दिया है। डिजिटल बैंकिंग ने काले धन को रोकने मे भी बहुत सहायता की है।
ऐप-आधारित डिजिटल भुगतान प्रदाताओं, ई –वालेट एवं भुगतान बैंकों ने महामारी के दौरान अपने कारोबार का विस्तार किया।
भारतीय अर्थव्यवस्था ने कोविड -19 की अवधि में डिजिटल स्वीकार्यत में जबरदस्त वृद्धि देखी है। महामारी के समय भारत में रहने वाले लोगों की वास्तविक आवश्यकता डिजिटलीकरण थी जिसने डिजिटल बैंकिंग के साथ काम करने को
लोकप्रिय बनाया। वर्तमान युग में ग्राहक जब भी बैंकिंग के बारे में सोचते हैं, तो सबसे पहले उसके दिमाग में बैंकों द्वारा दी जाने वाली ऑनलाइन या डिजिटल बैंकिंग सेवाएं एवं इन्टरनेट बैंकिंग सेवाएं ही आती है|
यूपीआई धारकों की संख्या प्रदर्शित करती है कि लोगों एवं छोटे व्यापरियों ने यूपीआई को बढ़े स्तर पर अपनाया है|
आरबीआई द्वारा उपरोक्त दिये गए आंकड़ों से यह पता चलता है कि यूपीआई सुविधा का किस प्रकार चलन बढ़ा है तथा कोविड-19 के दौरान सामाजिक दूरी के नियमों के चलते जब शाखा का परिचालन ध्वस्त हो गया था तथा ग्राहकों को बैंकिंग कामकाज में आ रही समस्याओं का समाधान बैंकों को तुरंत करना था उस समय यूपीआई सुविधा एक बेहतर डिजिटल भुगतान माध्यम के रूप मे देखने को मिला। अत: भारत में बैंकिंग अर्थात डिजिटल बैंकिंग को नया अवसर प्रदान किया गया|
समय के साथ भारत में मोबाइल की उपयोगिता बढ़ी है तथा एक स्त्रोत से पता चलता है कि देश में 90 करोड़ लोगों के पास मोबाइल है परन्तु ऑनलाइन बैंकिंग का उपयोग सिर्फ 4 करोड़ लोग ही कर रहे अतः बैंकर्स के पास पर्याप्त अवसर है कि डिजिटल बैंकिंग को बढ़ावा दे सके
चूँकि, आने वाला कल पूरी तरह से सूचना प्रौद्योगिकी पर ही आधारित होगा अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि डिजिटल बैंकिंग ही बैंकिंग का अनिवार्य बिंदु होगा। डिजिटल बैंकिंग के भविष्य पर ब्लॉकचैन प्रौद्योगिकी एवं आर्टिफिसियल इंटेलिजेंसी जैसा विकल्प एक विशेष रोल अदा करेगा। ब्लॉकचैन प्रौद्योगिकी का प्रयोग ऑनलाइन सुरक्षा को बढ़ाने के लिए तथा सीमा पर राशि के भुगतान को प्रभावपूर्ण बनाने मे किया जाता है। आधुनिक बैंकिंग व्यवस्था कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित चैटबोट को प्रयोग मे ला रही है।
भविष्य में, टेक्नोलॉजी जैसे बायोमैट्रिक्स तथा इन्टरनेट ऑफ़ थिंग्स आदि विकल्प डिजिटल बैंकिंग में एक अहम् रोल अदा करेगा जिसके सहायता से ग्राहक अपने लेनदेन को फिंगर प्रिंट के माध्यम से अथवा चेहरे की पहचान करके भुगतान करने का विकल्प प्रदान करेगा तथा जिसके लिए किसी व्यक्ति विशेष की आवश्यकता नहीं होगी।
विकेन्द्रीकृत वित् एक नया विकल्प के रूप में सामने आया है जो ब्लाकचैन तकनीकी के शीर्ष पर बनायी गयी है तथा जिसकी सहायता से बैंकों की आवश्यकता के बिना सहकर्मी से सहकर्मी लेनदेन को किया जा सकता है। ये प्रणाली लोगों के पैसे बचाने एवं निवेश करने के तरीकों को बदल रहा है|
जब बैंकिंग, उत्पाद और सेवाएं, ग्राहक और उनकी वरीयता पर आधारित हैं तो बैंकिंग क्षेत्र में डिजिटल परिवर्तन एक नया कदम है । यहां उन बिन्दुओं का उल्लेख किया गया है जिनकी वजह से भारतीय बैंकिंग ने डिजिटल परिवर्तन को अपनाया है।
अंत मे यह कहा जा सकता है कि मोबाइल बैंकिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और चैटबॉट्स, ओपन बैंकिंग और क्रिप्टोकरेंसी बैंकिंग उद्योग को नए आकार देने वाले कुछ डिजिटल बैंकिंग रुझान हैं। इसके अलावा, व्यक्तिगत बैंकिंग, संवर्धित वास्तविकता, वॉयस बैंकिंग और साइबर सुरक्षा आने वाले वर्षों में बैंकिंग उद्योग को आकार देने के लिए तैयार हैं।
इस सन्दर्भ में हमने भारत सरकार द्वारा लाये बजट में भी पाया जिसमे भारत सरकार डिजिटल बैंकिंग की सेवाओं को ग्रामीण एवं अर्ध शहरी भारत में भी बढ़ावा देने पर जोर दिया है। बजट अधिसूचना से यह पता चला कि 35 करोड़ से अधिक डाकघर के जमा खातों को कोर बैंकिंग प्रणाली के साथ जोड़े जाने का प्रावधान किया है।
फिन टेक में संभावना है कि यह भारत में वित्तीय सेवाओं और वित्तीय समावेशन के परिदृश्य को मौलिक रूप से नई शक्ल प्रदान कर सकता है। इससे लागत में कमी के साथ-साथ वित्तीय सेवाओं की गुणवत्ता में भी सुधार आ रहा है। उपरोक्त के आधार पर, बढती सुचना प्रोधोगिक के विकल्प तथा डिजिटल बैंकिंग यूनिट की स्थापना से हम यह कह सकते है कि भारतीय बैंकिंग का आने वाला कल डिजिटल प्लेटफार्म पर ही है।