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औद्योगिक क्रांति के पश्चात मनुष्य ने अपने क्रियाकलापों से ईंधन जलने के कारण बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और अन्य ग्रीनहाउस गैसें, जैसे मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और सल्फर, फॉस्फोरस और ओजोन के यौगिकों को वायुमंडल में छोड़ा है, जिससे चलते पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। इसने पृथ्वी की सतह का तापमान 1.1ºC बढ़ा दिया है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तुरंत, तीव्र, निरंतर और बड़े पैमाने पर यदि कमी नहीं हुई तो यह अगले 10 वर्षों में यह 1.5ºC-2.0ºC के स्तर तक जा सकता है| पृथ्वी की सतह के तापमान में वृद्धि से पारिस्थितिकी तंत्र, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2022 के अनुसार, अगले पांच वर्षों में, पर्यावरणविदों ने सामाजिक और पर्यावरणीय जोखिमों को सबसे अधिक चिंता का विषय बताया है। आगामी दशकों में, पर्यावरणीय जोखिम को दुनिया के लिए सबसे महत्वपूर्ण पांच दीर्घकालिक खतरों तथा जनमानस और पृथ्वी के लिए संभावित रूप से सबसे हानिकारक, शीर्ष तीन 'जलवायु कार्रवाई विफलता', 'अत्यधिक मौसम', और 'जैव विविधता गंभीर जोखिम हैं|
यह लेख चर्चा करता है कि जलवायु परिवर्तन का बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्रों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
जलवायु जोखिम को मापना चुनौतीपूर्ण है और वित्तीय कंपनियों को जलवायु परिवर्तन की मार, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों माध्यमों से प्रभावित कर रहा है तथा इसमें ऐसे कई तत्व हैं जो एक अलग चुनौती प्रस्तुत कर रहा है| वास्तव में, वित्तीय जोखिम प्रबंधन के संबंध में नए दृष्टिकोण की आवश्यकता अनिवार्य बनती जा रही है|
इसलिए, जलवायु परिवर्तन के जोखिमों की गणना का निर्धारण वित्तीय कंपनियों और बैंकों के लिए एक चुनौती बनी हुई है।
बैंक, वित्तीय संस्थान के रूप में, अर्थव्यवस्था के भीतर के संसाधनों के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं, मौद्रिक परिचालन प्रदान करते हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि बैंक सुनिश्चित करते हैं कि किसी देश के संसाधन वहां रहने वाले लोगों के लिए उपयोगी वास्तविक संपत्ति में परिवर्तित हो जाएं। दूसरी ओर, स्थिरता वह तरीका है जिसके माध्यम से समाज यह गारंटी देता है कि आज की सफलताओं से कल आने वाली पीढ़ियों को लाभ होगा। सभ्य दुनिया में संसाधनों और प्रभावशाली उद्योगों के संरक्षक के रूप में, बैंकों को अपनी और अपने व्यवसाय की सुरक्षा के लिए पर्यावरणीय स्थिरता की गारंटी देने के लिए सक्रिय रूप से भाग लेना होगा।
अनुसंधान और विशिष्ट घटनाओं से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली घटनाओं ने कृषि, पर्यटन, बुनियादी ढांचे और खनन को प्रभावित किया है। बैंकों के संबंध में , उक्त आर्थिक क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वित्तीय संगठन हैं, और इसलिए, कोई भी घटना जो परिचालन की गतिशीलता को खतरे में डालती है वह बैंकिंग उद्योग के लिए खतरा है।
अत:, जलवायु परिवर्तन को वैश्विक स्तर पर वित्तीय जोखिम के स्रोत के रूप में तेजी से पहचाना जा रहा है। जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौती है, और इसमें खतरे और अवसर दोनों उत्पन्न होते हैं, जो अर्थव्यवस्था और वित्तीय क्षेत्र को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेंगे और यह यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कि अंत में कार्बन उत्सर्जन का कौन सा परिदृश्य सामने आता है।
जलवायु परिवर्तन दो मुख्य चैनलों के माध्यम से वित्तीय प्रणाली को प्रभावित करता है: भौतिक जोखिम और संक्रमण जोखिम।
भौतिक जोखिम - यह जोखिम निम्नलिखित की बढ़ती आवृत्ति और गंभीरता के कारण उत्पन्न होता है:
परिवर्तनीय जोखिम - निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था में समायोजन के दौरान जलवायु नीति, प्रौद्योगिकी और उपभोक्ता और बाजार के रूख में परिवर्तन के परिणामस्वरूप परिवर्तनीय जोखिम उत्पन्न होता है।
इन जोखिम चालकों को निम्नानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है:
भारत में अधिकांश बैंकों ने पूर्व में ही ईएसजी (ईएसजी का अर्थ पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासन) पहलुओं, विशेष रूप से जलवायु जोखिम को संबोधित करने के लिए विभिन्न पहल की हैं और विभिन्न नीतियां बनाई हैं। ऐसी नीतियों या गतिविधियों की सूची इस प्रकार है:
सामान्य पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासन पहलु और विशेष रूप से ई एस जी- सम्बंधित नियम वर्तमान में बैंक के लिए बहुत प्रासंगिक हैं। चुकि बैंक का प्राथमिक व्यवसाय व्यक्तियों और कॉर्पोरेट्स को ऋण देना है इसलिए बैंक के जीवित रहने के लिए उस व्यवसाय का अस्तित्व बनाए रखना महत्वपूर्ण है जिसे बैंक धन उधर देता है। इसलिए, बैंकों के लिए उधारकर्ता के व्यवसाय पर जलवायु जोखिम के प्रभाव और उधारकर्ता पर प्रभाव और बदले में, बैंक की गतविधि की पहचान करना महत्वपूर्ण है। अब बैंकों के लिए जरुरी है कि वे बैंक के कारोबार को टिकाऊ बनाने की दिशा में कम शुरू करे।
देश के सामाजिक और विकासात्मक उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए, वित्तीय प्रणाली को हरित वित्तपोषण की ओर ले जाने के लिए अत्यधिक जलवायु घटनाओं से उत्पन्न जोखिमों को कम करने की आवश्यकता बढ़ रही है।
अतएव, हमारी राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं और प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए, रिज़र्व बैंक ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए एक रणनीति बनाई है।
रणनीति के प्रमुख बिन्दुओं को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया है:
डिजिटलीकरण ने पिछले दो दशकों से आर्थिक विकास और रोजगार सृजन को बढ़ावा दिया है। इसलिए, विनियमित संस्थाएं कुछ पहचाने गए क्षेत्रों के लिए लघु, मध्यम और लंबी अवधि में हरित वित्त के लिए वृद्धिशील लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं। सकारात्मक पर्यावरणीय परिणामों का आकलन करने के लिए इन लक्ष्यों की उपलब्धि की सालाना समीक्षा की जा सकती है।
बैंकिंग प्रक्रियाओं को अधिक पर्यावरण-अनुकूल बनाकर हरित बनाने के लिए, विनियमित संस्थाएं (आरई) अपने परिचालन में कागज के उपयोग को समाप्त करके, ई-रसीदों का विकल्प शुरू करके रसीद, यदि आवश्यक हो, अपने एटीएम आदि पर पंजीकृत मोबाइल नंबर पर एक लिंक के रूप में (अर्थात् प्रदान करके) अपनी शाखाओं को हरित शाखाओं में परिवर्तित करने पर विचार कर सकती हैं । आरई ई-रसीद को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के तरीकों और साधनों पर विचार कर सकते हैं।
इसके अलावा, आरई डेटा केंद्रों आदि के लिए बिजली की सोर्सिंग के लिए नवीकरणीय ऊर्जा पर स्विच करके अपने सभी डेटा केंद्रों को हरित डेटा केंद्रों में परिवर्तित किया जा सकता हैं और ग्रीन डेटा सेंटर रेटिंग सिस्टम जैसे स्थापित ढांचे द्वारा प्रदान किए गए मार्गदर्शन को प्रभावी किया जा सकता है।
सरकार ने वित्त वर्ष 2023 के केंद्रीय बजट में प्रस्ताव दिया था कि वह हरित बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए संसाधन जुटाने के लिए अपने समग्र उधार राशियों बाजार के हिस्से के रूप में सॉवरेन ग्रीन बांड (एसजीबी) जारी करेगी। सॉवरेन ग्रीन बांड, समय के साथ, निजी क्षेत्र की संस्थाओं के ईएसजी-लिंक्ड उधार के लिए मूल्य निर्धारण संदर्भ प्रदान करेंगे, इस प्रकार एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होगा जो हरित परियोजनाओं में पूंजी के अधिक प्रवाह को बढ़ावा देगा।
हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि जो भी देश योगदानकर्ता नहीं हैं वो भी इन जोखिमों से समान रूप से प्रभावित होंगे। हम सब इसमें एक साथ हैं| हम सभी को यह भी समझना चाहिए कि इस समय जलवायु परिवर्तन से निपटने में हमारा प्रयास किसी एक देश की नहीं बल्कि पृथ्वी पर हम सभी की जिम्मेदारी है। हमें सचेत रहने की आवश्यकता है कि वित्तीय क्षेत्र में जलवायु जोखिम को संबोधित करना हमारी संयुक्त जिम्मेदारी है, क्योंकि यह लंबे समय में वित्तीय प्रणाली के लचीलेपन को प्रभावित कर सकता है।
हमारे सामने चुनौती हरित वित्त को मुख्यधारा में लाने और ऋण विस्तार, आर्थिक विकास और सामाजिक विकास की जरूरतों को संतुलित करते हुए वाणिज्यिक ऋण निर्णयों में पर्यावरणीय प्रभाव को शामिल करने के तरीकों के बारे में सोचने की है।
हमारे लिए अच्छी खबर यह है कि चीन और अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जक भारत है, जो अब दूसरे स्थान ऊपर पहुंच गया है और अब जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (सीसीपीआई) 2023 में 8वें स्थान पर है। अपने 2030 उत्सर्जन लक्ष्यों (2ºC से नीचे के परिदृश्य के साथ संगत) को पूरा करने की राह पर है।
भारत तेजी से अपनी उत्सर्जन तीव्रता (जीडीपी की प्रति इकाई उत्सर्जन) को कम कर रहा है, और सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि के साथ इसका पूर्ण उत्सर्जन अभी भी बढ़ने की संभावना है। इस तरह का उच्च उत्सर्जन हमारे उद्योगों को गैर-प्रतिस्पर्धी बना देगा, हमें जीवाश्म ईंधन आयात के प्रति खतरनाक रूप से असुरक्षित बना देगा और वायु प्रदूषण के विषाक्त स्तर से हमारा दम घोंट देगा।
इस पर काबू पाने के लिए, भारत को एक नेट-जीरो मार्ग अपनाना चाहिए जो इसे 2070 तक डीकार्बोनाइज करने में सक्षम बनाता है। इसके लिए कोयले से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ना, पूरे परिवहन क्षेत्र को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलना, स्टील और सीमेंट जैसे प्रमुख उद्योगों को बदलना होगा। खाद्य प्रणाली प्रक्रियाओं को पूरी तरह से नया रूप देना होगा।
अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों और पर्यवेक्षकों की प्रतिक्रियाएँ भी विकसित हो रही हैं। जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण पाने के लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्र को मिलकर काम करने की जरूरत है।
वसुधैव कुटुम्बकम।
यानि धरती ही परिवार है।