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जैसा कि हम जानते है कि शाखाओं में ग्राहकों को प्रदान की जाने वाली बैंकिंग सुविधा को पारंपरिक बैंकिंग कहा जाता है जिसमे लोगो की जमाए भौतिक माध्यम से स्वीकार की जाती है तथा ऋण देने व् कटौती की सुविधा उपलब्ध करवाती है, बचत खाता खोले जाते है सावधि खाता खोले जाते है परन्तु इसके लिए ग्राहकों को बैंक में जाना पड़ता था।
वही दूसरी तरफ, डिजिटल बैंकिंग में “बैंकिंग गतिविधियों को ग्राहकों के लिए ऑनलाइन उपलब्ध कराया जाता एवं डिजिटल बैंकिंग को पारम्परिक बैंकिंग सेवाओं का अग्रिम संस्करण के रूप में परिभाषित किया जाता है|” डिजिटल बैंकिंग द्वारा बैंकिंग सुविधाओ को कही भी एवं कभी भी पाया जा सकता है जिसके द्वारा बैंकिंग सुविधाओं का लाभ बिना शाखा जाये उठाया जा सकता हैं| डिजिटल बैंकिंग ने बैंकिंग में एक नए युग को जन्म दिया था, आज के दौड़-भाग की जीवन शैली में जहां लोगों के पास वक्त का अभाव होता है उसमे डिजिटल बैंकिंग एक अहम् रोले अदा किया है|
डिजिटल बैंकिंग में मोबाइल बैंकिंग ने “मोबाइल जेब मे तो बैंकिंग की दुनिया मुट्ठी मे” के कहावत को चरितार्थ किया है। आज न केवल सैलरी पर्सन ग्राहक बल्कि लघु, छोटे व मध्यम व्यवसायी भी डिजिटल बैंकिंग को ही अपना बैंकिंग चैनल का विकल्प मानते हैं क्योकि इससे लोगों के समय की बचत होती है।
डिजिटल बैंकिंग को जानने के बाद अब डिजिटल ऋण पर चर्चा करते है...
जिस प्रकार एक ग्राहक बैंक में जा कर ऋण की सुविधा लेता हैं उसी प्रकार डिजिटल लेंडिंग, वेब प्लेटफॉर्म मुक्त मोबाइल एप्लिकेशन के द्वारा ऋण प्रदान करने का एक अनोखा प्लेटफॉर्म है। इसके अंतर्गत क्रेडिट मूल्यांकन करने हेतु सुचना प्रौधोगिक तकनिकी का प्रयोग किया जाता है तथा वेब प्लेटफॉर्म या मोबाइल एप के माध्यम से ऋण वितरित होना संभव होता है। डिजिटल लेंडिंग में ग्राहकों को बैंकों मे बिना जाए हुए आसानी से तथा कम औपचारिकताओ के साथ ऋण की सुविधा उपलब्ध होता है।
नरेन्द्र मोदी की सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में नवंबर 2018 में एमएसएमई उधमियों के लिए ऑनलाइन माध्यम से 59 मिनटस में डिजिटल तौर पर ऋण देने की सुविधा शुरू किया था जिसे “लोन्स इन 59 मिनट्स” के नाम से जाना जाता है तथा इस तरीके से व्यावसायिक ऋण 5 करोड़ रुपये तक स्वीकृत हो सकता है।
पारंपरिक बैंकिंग के स्थान पर डिजिटल माध्यम से ऋण प्रदान करते समय अनेकों चुनोतियों का सामना करना पड़ता है।
एक सर्वे के अनुसार, भारत में हर पाचवा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है और हर चौथा नागरिक अशिक्षित है। समझने वाली बात यह भी है कि किसी के पास स्मार्ट मोबाइल फोन होना डिजिटल हो जाने का प्रमाण नहीं है, जब तक कि उसके पास इंटरनेट की उचित व्यवस्था ना हो। ये चुनौतियां ना केवल तकनीकी मसलो से संबधित नहीं होती बल्कि संगठनात्मक और संस्थात्मक से भी होती है, बिजली की पर्याप्त उपलब्धता, तेज इंटरनेट की उपलब्धता तथा डिजिटल उपकरण आदि बुनियादी सुविधाओं के बिना डिजिटल माध्यम से ऋण मुहैया कराने की मुहीम में गति नहीं आ सकती तथा चुनौतियां बरकरार रहेगी। अतः डिजिटल माध्यम से ऋण प्रदान करते समय निम्न चुनोतियों आ सकती है:
मूलभूत चुनातियों में डिजिटल साक्षरता का अभाव होना प्रमुख चुनौती है ऐसा इसलिए क्योकि भारत में व्यापारियों का एक तबका ग्रामीण या अर्द्ध-शहरी क्षेत्र से संबंध रखते है तथा सूचना प्रौधोगिक के निरंतर बदलते तकनीकियों, नए नए मोबाइल एप्लिकेशन के बढती उपलब्धता तथा एप का जटिलिय भाषाओं के कारण लोगों आसानी से डिजिटल एप का उपयोग नहीं कर पाते। देश में काफी प्राइवेट मोबाइल एप्लिकेशन उपलब्ध है जो डिजिटल ऋण उपलब्ध कराने हेतु बाज़ार में उपलब्ध है परन्तु काफी डिजिटल एप्स तो रजिस्टर्ड भी नहीं होते लेकिन जागरूकता के अभाव में आसानी से एवं कम समय में ऋण पाने के चक्कर में कम पढे लोगो आसानी से फ्राड के शिकार बन जाते है जो एक बड़ी चुनौती का कारण है।
किसी भी व्यक्ति को ऋण देना या ना देना बैंकर के विवेक तथा दिए गए दिशानिर्देशों पर निर्भर होता है, कई बार तो ऐसा देखने में आता है कि सारी दस्तावेज संबधी कार्यवाही हो जाने के बाद भी ग्राहकों के गलत ऋण उदेश्य का पता चलने के बाद या उसकी आशंका होने पर ऋण आवेदन को निरस्त किया जा सकता है क्योकि ग्राहक से आमने-सामने की गई चर्च से या आसानी से पता चल जाता है परन्तु डिजिटल माध्यम से ऋण देते समय वास्तविक उदेश्यों का पता लगाना मुशकिल होता है जो कि एक बडी चुनौती है।
डिजिटल ऋण में डेटा की विश्वसनीयता एक बड़ा मुद्दा है चूकि देश मे काफी प्राइवेट एवं अन-रजिस्टर्ड मोबाइल एप्लिकेशन उपलब्ध है जो डिजिटल ऋण उपलब्ध कराने हेतु बाज़ार मे उपलब्ध है जो भोले भाले लोगो को फँसा कर उनके महत्वपूर्ण जानकारी व व्यक्तिगत पेपेर्स का गलत प्रयोग करते है जिससे डिजिटल लेंडिंग की विश्वसनीयता कम हो सकती है जो बैंकों के लिए एक चुनौती है।
डिजिटल माध्यम से ऋण प्राप्त करने वाले अनेकों उपभोक्ताओं की यह शिकायत रहती है कि डिजिटल माध्यम से ऋण मुहैया कराने वाले एप अत्यधिक व अनुचित तरीके से ब्याज दर वसूल करते है तथा हिडेन चार्जेस भी वसूल करते है जो कि डिजिटल ऋण की विश्वसनीयता के लिए एक बड़ी चुनौती है।
आज डिजिटल सेवाये कम जटिल व अधिक प्रभावी तो है मगर डिजिटल सेवाओ के सफलता के लिए मजबूत डिजिटली बुनियादी ढ़ाचा का होना बेहद जरूरी होता है। अतः तेज इन्टरनेट की उपलब्धता के अभाव में डिजिटल तौर पर ऋण देना संभव नहीं हो सकता।
केन्द्रीय सरकार, इज़ ऑफ लिविंग की दिशा में भी काफी कुछ प्रयास कर रही है। किसानों के खाते में “सम्मान निधि का हस्तांतरण” डिजिटल शासन का ही एक उदाहरण है। ई –शिक्षा, ई-बैंकिंग, ई-टिकट, ई-सुविधा, ई-अस्पताल, ई-याचिका व ई-अदालत सहित ऐसे तमाम उदाहरण है जो शासन को डिजिटल सुशासन के तरफ ले जाते है। नोट बंदी भी डिजिटल शासन का एक उदाहरण था। चुनौतियों से निपटने के लिए यह आवश्यक है कि डिजिटल ऋण देने की प्रक्रिया को व्यवस्थित एवं पूर्ण रूप से वैध बनाया जाए और इस कदम मे डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2022 लाया गया था।
आज के युग सुचना प्रोधोगिक से परिपूर्ण है अतः इस युग में डिजिटल ऋण की अपार संभावनाए मौजूद है कुछ इस प्रकार है:
भारत में स्मार्टफोन, लेपटॉप जैसे गेजेट्स की मांग तेजी से बढ़ रही है एवं डेटा का उपयोग भी बढ़ रहा है, उससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत अब डिजिटल क्रांति की ओर अग्रसर है। भुगतान हेतु डिजिटल बैंकिंग का बड़े पैमाने पर उपयोग डिजिटल ऋण की अपार सम्भावनाए के द्वार भी खोल रहे है क्योकि डिजिटल बैंकिंग से जुड़ने पर ही लोगों को डिजिटल ऋण के बारे में पता चल सकता है। परम्परागत ऋण व्यवस्था जहाँ मांग आधारित थी वही डिजिटल ऋण कृतिम बुद्धिमता का उपयोग करती है तथा ऑनलाइन माध्यम से खरीदारी करते समय ऋण (ई एम आई) का विकल्प भी उपलब्ध कराती है। अतः डिजिटल ऋण का भावी परिदृश्य उज्जवल है। आने वाला समय में डिजिटल मोड की अन्नत समभावनाए नजर आ रही है जिसकी कल्पना करना भी असंभव है।