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जीवित प्राणियों के अस्तित्व, जीवन और पुनरुत्पादन को प्रभावित करने वाले सभी तत्व और कारक ही पर्यावरण कहलाते है। अन्य देशो की भांति, भारत भी पर्यावरण से सम्बंधित अनेको समस्याओ से जूझ रहा है, जिससे सामान्य जनमानस की जीवन प्रभावित हो रहा है।
विकसित देशों की पर्यावरण संबंधी समस्या उनके मौजूद संसाधनों के दुरूपयोग करने का परिणाम है परंतु हमारे देश की समस्या इसकी बढ़ती हुई जनसंख्या और उसकी बढ़ती हुई आवश्यकताओं की पूर्ति करना है।
महात्मा गाँधी ने कहा था कि पृथ्वी, सभी मनुष्यों की जरुरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है, लेकिन लालच पूरा करने के लिए नहीं।
भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या न केवल एक गंभीर चुनौती बनी हुई हैं , बल्कि मानव जीवन के अस्तित्व के लिए भी खतरनाक बनी हुई है । पर्यावरण और आर्थिक विकास आपस में जुड़े हुए हैं। एक तरफ, एक राष्ट्र की आर्थिक वृद्धि पर्यावरण को प्रभावित करती है तो दूसरी तरफ, पर्यावरणीय संसाधनों में गिरावट आर्थिक विकास को प्रभावित करती हैं।
ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी के स्थायी जलवायु परिवर्तन के कारण औद्योगिक प्रदूषण, पर्यावरण का ह्रास, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन आदि है। वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है और यदि आवश्यक सावधानी नहीं बरती गयी है, तो स्थिति और खराब होगी, जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर और नकारात्मक प्रभाव डालेगी।
प्राकृतिक संसाधनों की कमी होना भी एक बड़ी चिंता का विषय है। जनसंख्या वृद्धि के कारण, पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों की खपत तेजी से दर से हो रही है। ग्लोबल वार्मिंग से कृषि उत्पादों के उत्पादन की दर कम होती है। प्राकृतिक संसाधनों की कमी के कारण , बहुत जल्द बड़े पैमाने पर पृथ्वी की आबादी न केवल भोजन की कमी का सामना करेगी, बल्कि किसी भी विकास प्रक्रिया को पूरा करने के लिए संसाधनों की कमी का सामना करेगी।
पर्यावरण किसी भी देश के आर्थिक विकास में एक अहम रोल अदा करती है। भारत विश्व के उन देशों में से एक है जहां सविधान में पर्यावरण की सुरक्षा व सुधार के बारे में लिखा है परन्तु इसके बावजूद भी समस्या बनी हुई है।
जीवन के हर क्षेत्र में ऊर्जा की आवश्यकता होती है जैसे कि सोना, उठना, चलना-फिरना, दौड़ना इत्यादि। आम बोलचाल की भाषा में कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं तथा ऊर्जा के बिना कुछ भी करना असंभव हैं । सूर्य ऊर्जा का सबसे बड़ा स्त्रोत होता हैं।
ऊर्जा किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास और उसकी समृद्धि के लिए अत्यावश्यक होती है।
विकसित देश आज जिस प्रकार के जीवन स्तर के साक्षी हैं वहाँ तक पहुँचने के लिए उन्होंने औद्योगिक विकास के लिए ऊर्जा गहन पथ को अपनाया है। सूर्य, पृथ्वी पर ऊर्जा का आधारभूत स्रोत है, जीवाश्म ईंधन, पानी और परमाणु ऊर्जा परंपरागत संसाधन है जबकि सौर, जैव, पवन, समुद्र, हाइड्रोजन एवं भूतापीय ऊर्जा अपरंपरागत या वैकल्पिक ऊर्जा संसाधन है इसके अलावा वाणिज्यक ऊर्जा स्रोत जैसे कोयला, पेट्रोलियम, विद्युत आदि हैं परम्परागत ऊर्जा स्रोत मुख्यतः खनिज संसाधन होते हैं जिसे ईंधन खनिज भी कहते हैं।
“ऊर्जा बचाना मज़बूरी नहीं, जरुरी है।”
बरसो से दुनिया जिस ऊर्जा स्रोतों को ईंधन के रूप में उपयोग करती आ रही है, वे सीमित हैं। जहाँ एक ओर इनको बनने में लाखों साल लग जाते हैं वहीं तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या के भरन -पोषण और सुख-सुविधाओं के लिए संसाधनो की तेजी से खपत हो रही हैं, लेकिन इससे पर्यावरण प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर समस्याओं का जन्म हो रहा है। ऐसे में सवाल यह बनता है कि बढ़ती जनसंख्या और ऊर्जा आपूर्ति के बीच कैसे संतुलन स्थापित किया जाए।
सवाल यह भी है कि पर्यावरण और भविष्य की पीढ़ी को ध्यान मे रखकर भारत की आगे की रणनीति क्या होनी चाहिए।
ऐसे में आशा की नयी किरण वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में आयी हैं । वैकल्पिक ऊर्जा एक ऊर्जा स्रोत है जो जीवाश्म ईधन का विकल्प हैं ।
चाणक्य ने कहा था कि “किसी समस्या का उपाय नहीं, निदान ढूंडों “। पिछले 150-200 वर्षो मे मनुष्य ने ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए पृथ्वी के सतह के नीचे दबे संसाधनों पर भरोसा किया था परंतु अब वक्त आ गया हैं कि सुरक्षित भविष्य के लिए सौर और पवन ऊर्जा क्षमता को बेहतरीन निदान के रूप मे देखा जा सकता है। इसलिय अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने, पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण फैलाने वाले कोयले पर निर्भरता कम करने के लिए वैकल्पिक या नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों जैसे सौर और पवन ऊर्जा आदि की क्षमता को बेहतरीन निदान के रूप में देखा जा सकता है। इसके लिए एक मजबूत नीतिगत ढांचा बनाने की आवश्यकता हैं, जिसमें भारत देश अहम भूमिका निभा सकता है। भारत संयुक्त राष्ट्र के सदस्यो को अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के मंच पर लेकर जाना चाहिए, ताकि सारे देशों का ध्यान वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों की ओर हो सके।
विंड फार्म से आशय यह है कि एक खास जगह पर बड़ी संख्या मे टरबाइन लगाकर बड़े पैमाने पर पवन ऊर्जा का उत्पादन करना होता है। भारत मे राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति को मंजूरी अक्टूबर 2015 मे मंजूरी दी गयी थी, जिससे देश के ऊर्जा बाज़ार का नक्शा बदल गया था। इस नीति का उदेश्य भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र मे 7516.60 किमी की भारतीय तटरेखा के साथ अपतटीय पवन ऊर्जा विकसित करना था। पर्यावरण प्रदूषण बचाने मे पवन ऊर्जा को सबसे कारगर उपाय माना गया है। फिलहाल भारत पवन ऊर्जा के क्षेत्र मे देश मे पाचवे स्थान पर है।
इस तरह के स्त्रोत में सूर्य की रोशनी का प्रयोग करके ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है। देश मे सोलर पम्प, सोलर लाइट, सोलर स्ट्रीट लाइट, सोलर लालटेन आदि की व्यवस्था करने पर भी ज़ोर दिया जा रहा है जिसके लिए सरकार द्वारा अनेकों कार्यक्र्म चला रहे हैं।
यह नवीनीकरण ऊर्जा का एक रूप है जो जीवित जैविक सामग्री से प्राप्त होता है जिसे बायोमास के रूप मे जाना जाता है एवं जिसका उपयोग परिवहन ईधन, गर्मी, बिजली और उत्पादो के उत्पादन के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए गन्ने की खोई, चावल की भूसी, पुआल, कपास के डंठल आदि माजूद है।
भूपतीय ऊर्जा वह ऊष्मा है जो पृथ्वी के अंदर से आती है। यह भी एक वैकल्पिक ऊर्जा के स्त्रोत के रूप मे देख जाता है जिसका उपयोग खाना बनाने, नहाने और गरम करने के लिए किया जाता है। यह पृथ्वी के सतह पर कहीं भी उपलब्ध होती है। भूपतीय ऊर्जा घर्षण के द्वारा बनती है जब महाद्वीपीय प्लेटें एक दूसरे से टकराती है।
गिरते हुए या बहते हुए जल की गतिज ऊर्जा से जो विधुत उत्पन्न की जाती है उसे जलविधुत कहते है। सन 2020 मे विश्व भर मे लगभग 4500 टेरवाट प्रति घंटे जलविधुत उत्पन्न किया गया था। जलविधुत पानी की वह शक्ति है जिसका उपयोग विभिन्न उदेश्य जैसे सिचाई के लिए पनचक्की, यांत्रिक उपकरणो का संचालन, बिजली पैदा करना आदि के लिए किया जाता है। इस तरह के वैकल्पिक ऊर्जा के स्त्रोत मे प्रदूषण ना के बराबर होता है, साथ ही उसको चलाने की लागत बहुत कम होती है।
महात्मा गांधी ने कहा था कि गाँव मे बहुत प्रयोग किये जा सकते है। इसी लिए सरकार ने गोबर्धन योजना की शुरुआत की। ये हम सब जानते हैं कि भारत सबसे ज्यादा पशुधन आबादी वाला देश है। ऐसे मे यह योजना पशुओं से प्राप्त गोबर और ठोस अपशिष्ट को उपयोगी कंपोस्ट, बायोगेस और बायो-सीएनजी मे बदलने पर ही केन्द्रित है। इस योजना से किसानो की आय मे वृद्धि होगी, ऊर्जा का उत्पादन होगा तथा गाँव स्वछ बना रहेगा।
भारत सरकार ने प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के रूप मे बहुत बड़ा कदम उठाया है, इस योजना के तहत 7 करोड़ से ज्यादा परिवारों को योजना का लाभ पहुचा है। इस योजना के अंतर्गत भारत के गरीब परिवारों की महिलाओं के चहरों पर खुशी लाने के उदेश्य से केंद्र सरकार ने 1 मई 2016 को यह योजना शुरू किया था। इस योजना के अंतर्गत गरीब महिलाओं को मुफ्त एलपीजी गैस कनेकशन प्रदान किया गया था। एलपीजी गैस से परिवार खाना बनाने हेतु स्वच्छ ऊर्जा का प्रयोग कर पाते हैं।
नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय देश मे बायोमास से बिजली उत्पादन करने को बढ़ावा देने हेतु अनेकों योजनाओ को चला रहे है जिसका मुख्य उदेश्य बायोमास संसाधनो जैसे गन्ने की खोई, चावल की भूसी, पुआल, कपास के डंठल आदि का उपयोग करके बिजली उत्पादन करना है जो की वैकल्पिक ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत माना जाता हैं ।
वर्ष 2018 मई मे राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति जारी हुई थी जिसका मुख्य उदेश्य बड़े ग्रिड से जुड़े पवन-सौर फोटो-वोल्टेइक हाइब्रिड प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए एक नीतिगत ढांचा बनाने से हैं । इस नीति के द्वारा भूमि का कुशल एवं अधिकतम उपयोग करके अधिक मात्रा मे ऊर्जा का उत्पादन होना संभव है। देश के 21 राज्यों में कुल 26694 मेगावाट क्षमता के 47 सौर पार्क को स्थापित करने की मंजूरी मिल गयी हैं ।
पर्यावरण की बात करें तो जलवायु परिवर्तन भूगभ्रीय, जैविक और पारिस्थितिकीय प्रणालियों को प्रभावित कर रहा है, जिससे प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने 1 अप्रैल 2020 से बीएस-IV मानक इंजन वाले मोटरों की बिक्री एवं उसके पंजीकरण पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था।
इसी क्रम में एच –सीएचजी को आंतरिक दहन इंजन के ईधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है तथा इसे ईंधन का स्वच्छ और शक्तिशाली स्त्रोत के रूप में देखा जा सकता है।
स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ाने के लिए सरकार ने अगले 5 वर्षो मे 5000 सयंत्र बनाकर कृषि-अपशिष्ट से जैव-सीएनजी उत्पादन करने के लिए एक योजना शुरू की गई थी। इस तरह का सयंत्र न केवल कृषि अपशीष्ट जलाने की समस्या से निपटने मे मदद करेंगे बल्कि किसानो को मौद्रिक लाभ भी दिलाएँगे।
भारत की बात करे तो यह एक तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है और किसी भी अर्थव्यवस्था मे “ऊर्जा एवं वित’ ईधन का काम करती है। वित के अभाव मे ऊर्जा की आर्थिक प्रगति को रफ्तार नहीं दिया जा सकता है। ऐसे मे वैश्विक निवेशक उधोग आज भारतीय ऊर्जा के क्षेत्र को एक आकर्षक निवेश मंजिल के रूप मे देख रहा है जिसका पूरा पूरा लाभ उठाने के लिए और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए भारत को वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोत के स्तर पर नए कीर्तिमान बनाने होंगे। भारत सरकार द्वारा इस संबंध मे “सूर्य मित्र एप” के द्वारा ट्रेनिंग देना और “अभिनव सोच-नई संभावना “ के नाम से अवार्ड दिया जाना एक सराहनीय कदम है।
इसके साथ हम सभी को बिजली की खपत कम करनी होगी जिसके लिए “हरित इमारत कार्यक्र्म” एक अहम भूमिका निभा रहा है। यदि भारत वास्तव में कम ऊर्जा खपत वाले इमारत कार्यक्रम को ठीक से सुनियोजित कर दे तो यह आके चलकर भारत मे समावेशी, हरित, स्वस्थ, सुरक्षित शहरो को सफलतापूर्वक निर्माण करने मे मददगार सिद्ध होगा। अतः ऐसे में हमें वैकल्पिक ईंधन शोध पर ज़ोर देना चाहिए।
भारत ने 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित संसाधनो से 40 फीसदी बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है। ग्रीनपीस की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत को वैकल्पिक ऊर्जा प्रणालियों में निजी और सरकारी स्तर पर 2050 तक 610000 करोड़ रुपए सालाना निवेश करने की जरूरत बताई गयी थी।
इसस बात से इंकार तो नहीं किया जा सकता है कि लगातार बढ़ते प्रदूषण ने अनेकों बीमारियों को जन्म दिया है इसीलिए इसकी रोकथाम के लिए कार्बन उत्सर्जन को कम करके तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रोकने की बाते कही जाती है अतः ऐसे मे हमें वैकल्पिक ऊर्जा के शोध पर बहुत ज़ोर देना चाहिए। इस विकल्प के उपायों से न केवल पर्यावरण की सुरक्षा होती है बल्कि उपलब्ध संसाधनों का आवश्यकतानुसार उपयोग भी हो पति हैं। वैकल्पिक ऊर्जा के स्त्रोतों के प्रयोग से लागत में भी बचत होती है। अतः भारत के आर्थिक विकास को सही बनाने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा ही भविष्य है।