Image by Pexels from Pixabay 

शब्द तो रोज मिलते हैं ,कभी किसी साहित्यिक पटल से या कभी किसी घटना से या कभी-कभी मन की भीरुता से जिस पर रोज कुछ ना कुछ लिखने का प्रयास अवश्य करता हूँ ।

किन्तु आज साहित्य तक पर इस विषय को देखकर अपनी यादों में मन द्रवित हो गया ।बस सोचा आज कोई अलंकार रस नही ढूढूँगा बल्कि आप बीती संस्मरण यथावत लिख दूँगा

मध्यप्रदेश के रीवा जिले के खरिहानी नाम के एक छोटे से गाँव में एक मध्यम परिवार में हुआ । संयुक्त परिवार था लेकिन चाचा - चाची अपने परिवार के साथ छत्तीसगढ़ में रहते थे बाबा जी बि यस पी में किसी अच्छे पद पर थे इसीलिये दोनो जगह जमीनें खरीदी क्योंकी उनके पिता का भी पैतृक गाँव रीवा ही था। खेती करने योग्य जमीन होने के कारण पिताजी की अच्छी जगह नौकरी ना होने पर भी घर में मध्यम वर्गीव परिवार के हिसाब की सभी जरूरते पूरी हो जाती थी।मै घर में तीन बहनों के बीच अकेला भाई था । तीनो बहनों की शादी समय से अच्छे घरों में हो गयी। लेकिन बहनों की शादी की वजह से आये आर्थिक भूचाल ने पूरे घर की स्थिती डामगडोल कर दी।मै उस समय12 वी में था, कक्षा में अच्छे बच्चो की श्रेणी मे आता था। मेरे 12 के पेपर के दौरान ही बाबाजी की मृत्यू हो गयी । उस असहनीय कष्ट ने घरवालो को मानसिक रूप से तथा क्रिया कर्म ने आर्थिक रू प से पूरी नींव हिला दी। मैं 12 वी अच्छे नंबरो से पास हो गया । किन्तु पिता की इस उम्र में काम करना मुझे मुनासिब नही लगा।और उसी समय मारूती सुजकी ने भर्तियाँ निकाली मैने उस समय उसे न्यायोचित समझ वह मार्ग चुन लिया । इसी सबके बीच ही एक लडकी से आत्मिक लगाव हो गया। जो दूर के रिश्ते के पहचान की थी ।बातें होने लगी किन्तु मर्यादा में हफ्ते में एक बार किन्तु उसका इंतजार हमेशा रहता परन्तु मेरी बनायी ये मर्यादा इस समय के परिवेश में सही नही मानी गयी । मै यह देख रहा था की उसके प्रति मेरा लगाव नित प्रतिदिन बढ़ रहा था जबकि उसका मेरे प्रति लगाव कम होने लगा । मेरे घर मे तीन बहने थी मैं सदैव उसके भाई के स्थान पर अपने को रखकर सोचता था इसी कारण मैं मर्यादा में रहना चाहता था ।मै उसके प्रति निश्चिंत था की उसका विवाह मुझसे ही होगा और मैं अपने आत्मिक प्रेम को बढ़ाने लगा। और दिखावा कम करने लगा । मै महीने मे एक बार बात करने लगा । तभी एक दिन शोशल मीडिया के माध्यम से उसके शादी के काड पर नजर चली गयी । मै स्तभ्द रह गया मैं अंदर ही अदर भूकंम्प मे फस गया । मेरा विस्वास उस समय मुझसे उठ गया ।मै टूट रहा था मैने उसके बारे में इस लेख से पहले ना कभी किसी के बताया ना अब किसी को बताऊँगा । जब मैने अपनी इस अवस्था को महसूस किया तब खुद के संभालने के लिये किताबें पढ़ने लगा छोटे मोटे जहाँ पहचान से मंच मिल जाते उन मंचो पर जाने लगा ।परन्तु उसकी याद मेरे मन को अच्छा रखने के प्रयास को विफल कर देेती तब मैने भगवत गीता का सहारा लिया और उसे कई बार पढ़ा इतना पढ़ा की उसकी मुक्तकीय रूप में अनुवाद कर मुक्तको़ में गीता किताब छपवा डाली। मेै अब बहुत छोटा नवाकुर कवि हूँ श्रृंगार नही लिखता परन्तु उसके खातिर चार पंक्तियाँ लिखा गयी

जिदंगी के पन्ने पर ऐब शलीके से सजा देता है
मुक्कमल हो या ना हो पर इश्क मजा देता है
और उसके खातिर जहने मुहब्बत बढ़ ही जाती है
पहुँचा बुलंदी पर इश्क को जो सख्स दगा देता है

.    .    .

Discus