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भारतीय इतिहास का एक एसा नाम जिसे कोई भी सरकार खुल कर ना कह सकी की उन्होंने जो किया वो सही था या गलत|

१९ मई १९१० को पुणें में जन्मा वह क्रांतिकारी जिसने आजादी में सक्रियता से भूमिका निभाई वह किस लहजे में देशद्रोही हो गया गाँधी जी का मरना उस समय की माँग थी| माॅफी चाहूँगा पर गाँधी जी में ना ही महात्मा होने का गुण था ना ही राष्ट्रपिता होने का क्योंकी महात्मा वह होता है जो सभी को समान द्रिष्टी से देखे और अपनें वचनों पर अड़िग रहे पर इन दोनों तथ्यों में गाँधी जी फेल रहे उन्होंने कहा था मैं अंग अंग बट जाऊँगा पर ये देश नही बटनें दू़ँगा पर जब बटवारा हुआ तो गाँधी जी जिंन्दा थे गाँधी जी का मौन उस बँटवारे के बाद हुए भीषण नरसंहार का कारण बना मैं कदापि नही कहता की गाँधी जी की वह मंसा थी पर इतिहास गवाह है जब जब धृतराष्ट्र रूपी नेतृत्व मौन हुआ तब तब विनाश हुआ है| गाँधी जी हर हाल में अपनें को मुसलमानों का हितैसी साबित करनें में लगे रहे उनको अपनी बाते मनवाने के दो ही प्रचलित तरीके आते थे या तो अनशन पर बैठ जाते या फिर सब से बाते करना बंद कर देते और लोगों का समर्थन उन्हे प्राप्त ही था|

उन्होंने मंदिर में कुरान पड़ी एकता प्रदर्शन हेतु वह एक सराहनीय कार्य था परन्तु मस्जिद में भी गीता पड़ते माफी चाहूँगा बापू आपने कई एसा कार्य किया जो अद्वितीय थे आपनें आत्म निर्भर रहनें की शिक्षा दी चरखे के माध्यम से आपने अपनें सुख खातिर कभी कुछ नही किया, पर अपनी जिद मे भारत का बँटवारा किया वह आप की मूक सहमती जिन्ना वा नेहरू जी का प्रेम बटवारे का मुख्य कारण बना सत्ता की लोलुपता ही बटवारे का कारण थी नही तो जितनें मुस्लिम आप के द्वारा खून से बनाई हुई सरहद के उस पर थे उस से ज्यादा इस पार थे|

और गर मस्जिद में गीता पड़ते तो भाई नाथूराम की जगह किसी भाईजान का नाम होता|बेसक नाथूराम को फाँसी आवश्यक थी जिससे आप को न्याय मिला जिन लोगों की आस्था आप से थी उन्हें न्याय मिला, परन्तु नाथुराम गर अपने जन्म दिवस के दिन वह उपहार देश को ना देते तो इतिहास गवाह है बापू आप पूरा देश बाँट देते| और अंत में कहना चाहूँगा गाँधी जी भारत के नही पाकिस्तान के राष्ट्रपिता थे मेरी नवअंकुर नजरे जब तोलती है तो नाथूराम का औदा गाँधी जी से ऊँचा पाती हैं|

उस शहीद को उचित न्याय मिलना चाहिये|

जय हिंद|

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