सुबह सुबह जब सूर्य हुआ उदय,
मन में जागी उस ईश्वर से लगन।
सीधा मंदिर पहुंचा ले प्रसाद तो,
पूजा अर्चना कर मन हुआ मगन।।
मंदिर के जब मैं पास से गुजरा,
होने लगी तब ईश्वर की प्रार्थना।
प्रसाद बांटा गया बाद में खाया,
मैंने खडे होकर की आराधना।।
हनुमान जी का रोट होता है तो,
बंटता जमकर मीठा सा प्रसाद।
जीभर के खाते देखे हैं भक्तजन,
हमको भी आता है दृश्य याद।।
प्रसादरूपी सुख दुख को मानों,
रहना सीख लो हमेशा ही सम।
सारे जीवन में सुख ही सुख हैं,
भूल जाओगे अपने सभी गम।।
हवन करते हैं लोग जब कभी,
बांटते हैं ईश्वर का जब प्रसाद।
समय गुजरते देर लगे कभी न,
रहता है हरदम हमको भी याद।।