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आओ साहब आओ, आपका बहुत लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। हमें पता था बच्चों की प्रायोगिक परीक्षा लेने के लिए आओगे। हमें सूचना मिल गई थी। बताइए कालूमल जी, आपकी क्या सेवा की जाए?
सेवा तो लेंगे ही परंतु पहले मुझे बैठने के लिए तो कुर्सी दो, राक्षसरूपी शिक्षक ने उत्तर दिया।
लो अभी तो फिलहाल कुछ खाने का प्रबंध कर देते हैं। थके हारे आये हो, थोड़ा नाश्ता कर लो। और देखते-देखते बेहतर खाने का प्रबंध कर दिया गया। प्रायोगिक परीक्षा भी जैसे तैसे ली गई किंतु कालूमल ने एक शर्त रख दी जिसको सुनकर मैनेजमेंट अवाक हो गया। पता नहीं यह राक्षस क्या शर्त रखेगा, सोचते हुए कहां, बताइये क्या शर्त है?
कालूमल ने मद स्वर में कहा-यदि तुम्हें अपने बच्चों के अच्छा अंक लगवाने तो स्कूटी देनी होगी।
इतनी बड़ी गिफ्ट मैनेजमेंट के लोग तो चक्कर खा गये।
परंतु राक्षस रूपी शिक्षक ने कहा यदि तुम यह मेरी शर्त नहीं मानोगे तो बच्चों के अंक बहुत कम दिए जाएंगे जिसका परिणाम यह होगा कि तुम्हारे स्कूल के बदनामी होगी।
बदनामी के डर से मैनेजमेंट के लोगों ने उन्हें स्कूटी भी दे दी ।
फिर तो क्या राक्षस रूपी शिक्षक हर साल कमाल करते आ रहे थे। उनके कारण एक बच्चे ने फांसी तक तक खा ली। हुआ यूं कि बच्चा हास्टल में रहता था और वह राक्षस रूप शिक्षक भी हास्टल में था। इस दौरान ही फांसी खाई, कारण कुछ भी रहा हो परंतु इस राक्षसरूपी शिक्षक की दूर दराज बदली कर दी गई।
कहने को को तो भारी जमीन जायदाद का मालिक और पत्नी सरकारी नौकरी करती है किंतु उस राक्षस का नाम लेते ही शिक्षक वर्ग शर्म महसूस करते हैं। उनकी दूरदराज बदली तो कर दी किंतु मेडिकल का बहाना करके वापस उसी स्कूल में आ पहुंचा, जहां बच्चे ने फांसी खाई थी। मैनेजमेंट ने भी यह शर्त रख दी कि भविष्य में कोई गलती कर दी तो तुम्हें नहीं बख्शा जायेगा। इतना होते हुए भी राक्षस रूपी शिक्षक ने अपना व्यवहार नहीं बदला। कहावत है आदत जिसकी बन गई वह कभी अपनी आदत नहीं छोड़ता और यह कहावत शत प्रतिशत ऐसे शिक्षक पर लागू होती है। आखिर हर बार प्रायोगिक परीक्षा के नाम पर गरीब बच्चों के मां-बाप को ठगना उनकी एक आदत बन गई है। इस साल तो एक नई घटना भी सामने आई। एक स्कूल में इस बार फिर से प्रेक्टिकल लेने के लिए जाना था जहां स्कूल प्रबंधक कमेटी से जमकर खाना पीना, पैसे, ऐश आराम लूटे वही एक बच्चे के अभिभावक तक भी पहुंच गया। अभिभावक ने पूछा आप कौन है?
राक्षसरूपी शिक्षक ने कहा - मैं प्रायोगिक परीक्षा लेने आया हूं और तुम्हारे बच्चे की प्रायोगिक परीक्षा भी ली है परंतु यदि तुम चाहते हो अच्छे अंक दिए जाए तो मेरी शर्त सुन लो। अभिभावक ने सोचा कि चलो छोटी-मोटी शर्त होगी जिसे पूरा कर देंगे।
आपकी क्या शर्त है, अभिभावक ने पूछा?
राक्षसरूपी शिक्षक कालूमल ने झटपट मुंह खोलते हुए 5000 रुपये, एक ब्लैक डाग व्हिस्की और एक मुर्गा मांगा। कहा-यदि मेरी यह शर्त पूरी कर देेते हैं तो तो तुम्हारे बच्चे के 30 में से 25 से अधिक अंक लगा दिए जाएंगे और तुम्हारे बच्चे का पास प्रतिशत बहुत अच्छा होगा।
अभिभावक गरीब था परंतु उसने सोचा चलो बच्चे की जिंदगी का सवाल है, क्यों न इसको ब्लैक डाग, मुर्गा और 5000 रुपये दे दिये जाए। इतना देने के बाद राक्षस रूपी शिक्षक ने कहा- आपने मौज कर दी और मैं अब इसके अच्छे अंक लगा दूंगा? अभिभावक की दुुकान थी जहां कैमरे लगे हुए थे और सारा वाक्या रिकार्ड कर लिया।
लेकिन यह क्या दो दिन बाद फिर कालूमल आ धमका और कहा कि मुझे 5000 रुपये और दो ताकि तुम्हारे बच्चे के और अच्छे अंक लगाये जा सके। अभिभावक को अब अपनी ठगी का एहसास होते देर नहीं लगी। सोचा कि मुझसे तो बड़ी भूल हो गई, यह राक्षस तो मानने वाला नहीं है। अभिभावक की दुकान के पास एक पत्रकार था जिसे आवाज लगाई तो कालूमल भाग खड़ा हुआ। फिर क्या था अभिभावक ने उस स्कूल के प्राचार्य को सारी कहानी बताई जहां वो कार्यरत था। प्राचार्य ने उत्तर दिया-यह कोई नई बात नहीं है? यह शिक्षक तो पहले ही कई बार सजा पा चुका है, सस्पेंड हो चुका है परंतु यह नहीं मानने वाला। अभिभावक के पैरों की जमीन खिसक गई।
उसने सोचा क्यों ना अब उच्च अधिकारियों को इस संबंध में शिकायत की जाए परंतु राक्षसरूपी शिक्षक के तेवर देखिए एक ही बात कही- मुझे जानबूझकर फंसाया जा रहा है। अभिभावक ने सोचा कि राक्षस की शिकायत कर दी जाए परंतु सहसा मन में विचार आया कि किसी की नौकरी छीनना अच्छा नहीं होता। इसलिए उसकी नौकरी को बचाने का प्लान बनाया। इसी दौरान राक्षस रूपी शिक्षक ने अपने साथी को फोन पर बताया कि किसी प्रकार उसकी रक्षा कर दो वरना उसकी नौकरी भी जाएगी। कालूमल के साथी शिक्षक जो अभिभावक से परिचित होने के कारण अभिभावक को फोन किया कि तुम्हारे खाते में 5000 रुपये मैं डाल रहा हूं, इसे बख्श दो वरना इसकी नौकरी चली जाएगी।
अभिभावक ने सोचा कि चलिए किसी की करनी का फल भगवान देता है। हम सजा देने वाले कौन होते हैं? उसे माफ कर दिया। यहां तक की बात पत्रकारों तक भी पहुंच गई परंतु अभिभावक द्वारा कोई कदम नहीं उठाये जाने और पत्रकारों को कोई खबर ने छापने के लिए अनुरोध करने पर राक्षस रूपी शिक्षक को बख्श दिया गया। परंतु एक पत्रकार ने अभिभावक से कहा -तुम्हारी यह भूल न जाने भविष्य में कितने अभिभावकों के लिए अभिशाप बनकर सामने खड़ी होगी क्योंकि यह राक्षस रूपी शिक्षक कितने ही अभिभावकों और बच्चों का खून यूं ही पीता रहेगा? अब तो जिसने भी यह कहानी सुनी सन रह गया। शिक्षा विभाग में कार्यरत शिक्षकों की तो शर्म से आंखें झुक गई और कहा कि इससे बेहतर है कि ऐसे विभाग को अवलंब त्याग दिया जाए।