Image by luis pacheco from Pixabay माँ, मम्मी, ये सब सिर्फ शब्द नहीं हैं, ये एक एहसास है, अपने वजूद का, अपनी पहचान का।
ये एक शब्द है, जिसमें पूरी दुनिया नहीं बल्कि एक पूरा संसार बस्ता है।
मेरे लिए भी, माँ की कुछ ऐसी ही एहमियत है।
कुछ लफ़्ज़ों में जो बयां न हो सके, माँ वो एहसास है तू।
मेरी उम्मीद, मेरे सपने की हर वजह है तू,
पाला है मुझे बड़े नाज़ों से तूने,
तेरे ममता की आंचल में,
मैंने सुकून बारा वक़्त गुजारा है,
आज फिर उस आँचल में छुपने को दिल कर रहा है।
मैं छोटी सी हर वक्त पूछती थी,
माँ, मैं बड़ी कब होऊंगी?
आज जब सचमे बड़ी हो गई हूँ,
तो एहसास हो रहा है,
वो नादान सा मासूम बचपन ही अच्छा था।
जहाँ अपनी हर छोटी तकलीफ़ पर तेरी गोदी में चुप जया करती थी,
वो एहसास भी कितना अनमोल है.
और अब तो दर्द की ऐसी कयामत टूटी है दिल में,
पर मजाल है, इन आंखों से एक आसूं निकला हो।
शायद ये आंखें जान गई है,
कि अब छुपने के लिए तेरी गोद भी नहीं है|
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