बचपन का आँगन खयालौ में है वही,
जहाँ रिश्तौ की महक थी हसीन,
यादौ के आँगन में जब भी जाऊँ मैं कभी,
बिरयानी ना मिले तो कोई मसला नहीं,
दाल चावल हो तो वो भी सही!
अब बहुत कम ही मिलते है काफ़ी रिश्तेदार,
फ़ोन भी नहीं उठाते करने पर भी लगातार!
खूब महफ़िल जमती है गैरौ से सोशल मीडिया के दरबार,
कभी पोस्ट तो कभी कमेंट्स पर करते है प्रचार प्रसार,
कुछ रिश्तेदार तो बस ढूंडते है बहाना, करने के लिए अत्याचार,
अब नहीं रहा वह बचपन का आँगन, और अब नहीं बनता वो अचार,
नहीं रहा वह बचपन, नहीं रहा वो ख़ुलूस और वो प्यार!!