मेरा दिल नहीं करता मैं पढ़ाई करू,
किताब देखते ही आराम करने का ख्याल शुरू,
नहीं समझ आता मुझे साइंस का रेस्पिरेशन, रिप्रोडक्शन ,
पर मैथ्स से जुड़ जाता है कभी कनेक्शन,
क्रिकेट के बल्ले से, बास्केट के बॉल से, था थोड़ा सा प्यार,
पर कंप्यूटर के प्रोग्रामस लगते थे अत्याचार,
पढ़ाई के दबाव में अपने भी नहीं लगते थे अपने, पराया लगता था परिवार,
शैतानी ख्याल ऐसा, क्या केर लू मैं खुदकुशी और चला जाऊ छोड़ के ये संसार,
पर माँ की दुआ और काम आगया उनका प्रचार प्रसार,
माँ ने प्यार से समझाया,ज़रूरी नहीं तुम 80% नंबर लाओ,बस होजाना तुम पास,
फिर किताबे मुझे लगने लगी कुछ तो ख़ास,
आज सब को बताऊ एक छोटा सा राज,
अपने बच्चे पर पड़ाई का ना डाले कोई दबाव,
बहुत से माता पीता को बदलना होगा उनका स्वभाव,
और केवल कहे होना है पास,
ज़्यादा नंबर की बाप माप ना रखे आस,
हर बच्चा विभिन शेत्रौ में होता है होशियार और ख़ास!