दीपों की माला से सजी है रात,
हर घर में फैली है खुशियों की बारात,
अंधकार को मिटाने आई ये दीवाली,
प्रेम और प्रकाश से भर दे ये गली-गली।
बुराई पर अच्छाई की ये विजय है महान,
प्रभु श्रीराम के घर लौटने का ये है सम्मान।
पर क्या सच में हमने सीखा ये पाठ,
या बस रिवाजों में उलझा है हमारा साथ?
हम जलाते हैं दीपक, मिटाते हैं गम,
पर दिल के अंधेरों का क्या हुआ गम?
राम के आदर्शों का करते हैं गुणगान,
पर क्या हम उनके बताए रास्ते पर चले सदा-मान?
झूठ, अहंकार, और ईर्ष्या का अंधेरों मे ,
क्या हमसे ये दीपक सच में जला?
दीवाली तो हर साल आती रहेगी,
पर कब हमारी सोच में भी ये रोशनी आयेगीं।
चलो इस बार वचन करें पूरे मन से,
अच्छाई का दीप जले हर जीवन में।
ना केवल रौशनी घर को सजाएगी,
बल्कि हर हृदय में भी दीपावली मनाएगी।