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क्या ऐसी भी दोस्ती हो सकती है जिसमें एक-दूसरे से बात छुपाकर खुद ही फैसला ले? क्या एक दोस्त को मदद करने के लिए दूसरा दोस्त कुछ भी न बताए?

प्रतीक, प्रिंस और आकाश, तीनों जिगरी दोस्त थे। हर बार हंसी-मज़ाक और एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ते, चाहे कितना भी ज़रूरी काम क्यों न हो। मुसीबत के वक्त सब एक साथ चट्टान की तरह खड़े रहते। एक बार तीनों दोस्त अपने पसंदीदा कैफ़े में बैठे थे, जहाँ उनकी हँसी-ठिठोली की गूँज हमेशा सुनाई देती थी। उनकी दोस्ती का हर किस्सा एक नई कहानी कहता था। लेकिन उस रात, उनके बीच एक अजीब-सा तनाव था, जिसने उनके चेहरे की ख़ुशी छीन ली थी।

प्रिंस और आकाश लगातार एक-दूसरे से बहस कर रहे थे। उनके बीच अचानक ऐसा क्या हुआ कि एक-दूसरे को काटने को लगे और ज़ोर-ज़ोर से बातें करने लगे। प्रिंस, जो शांत और सुलझे हुए स्वभाव के लिए जाना जाता था, आज बहुत गुस्से में था, मानो कोई आग उसके भीतर जल रही हो। वहीं आकाश, जो अपनी हाज़िरजवाबी और चुलबुले स्वभाव के लिए मशहूर था, आज सिर्फ़ खामोश था। उसकी आँखें लाल थीं और चेहरे पर एक अजीब-सी मायूसी छाई हुई थी। प्रतीक, जो दोनों को बहुत ही अच्छे से जानता था, भी surprised था। वह बार-बार उन्हें शांत करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी हर कोशिश नाकाम हो रही थी।

“यार, हुआ क्या है? तुम लोग ऐसे क्यों लड़ रहे हो?” प्रतीक ने बार-बार पूछा, लेकिन दोनों ने उसकी बात अनसुनी कर दी।

बहस इतनी बढ़ गई कि कैफ़े में मौजूद दूसरे लोग भी उन्हें देखने लगे। माहौल इतना खराब हो चुका था। प्रिंस गुस्से में था। उसने एक लिफ़ाफ़ा टेबल पर रखा और गुस्से में निकल गया। आकाश कुछ देर तक वहीं बैठा रहा, उसकी नज़रें ज़मीन पर थीं, मानो वह कोई गहरी बात सोच रहा हो। फिर वह भी धीरे से उठा और प्रतीक को अकेला छोड़कर चला गया।

प्रतीक को यक़ीन नहीं हो रहा था। क्या उनकी सालों की दोस्ती एक पल में टूट गई? यह एक बुरे सपने जैसा था। उसकी आँखों के सामने उनके बचपन के सारे पल घूमने लगे – एक-दूसरे के घर जाकर रात भर जागना, एक ही थाली में खाना, मुश्किलों में एक-दूसरे का सहारा बनना… क्या यह सब खत्म हो गया था? अगले दिन, उसने प्रिंस और आकाश दोनों को कई बार फ़ोन किया, लेकिन किसी ने उसका फ़ोन नहीं उठाया। उसने उन्हें मैसेज भी किए, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। यह चुप्पी प्रतीक को अंदर ही अंदर खा रही थी। आख़िर इस लिफ़ाफ़े में क्या है? यह सोचकर उसने लिफ़ाफ़ा खोला और उसमें एक चेक था, जो उसने अपने पास संभाल कर रख दिया।

कई दिनों तक उनके बीच बातचीत नहीं हुई। प्रतीक ने हार नहीं मानी। वह जानता था कि उनके बीच कुछ तो हुआ है, जो इतना बड़ा नहीं हो सकता कि उनकी दोस्ती को हमेशा के लिए खत्म कर दे। वह जानता था कि प्रिंस और आकाश के बीच कोई गलतफ़हमी हुई है, जिसे दूर किया जा सकता है। एक शाम, जब वह अपने काम से घर लौट रहा था, तो उसकी नज़र एक सुनसान सड़क के किनारे पड़ी। वह चौंक गया – वहाँ प्रिंस और आकाश थे। प्रतीक के दिल की धड़कन बढ़ गई। वह डर गया। क्या वे अभी भी लड़ रहे हैं? क्या यह लड़ाई इतनी बढ़ गई थी कि वे कहीं छिपकर मिल रहे थे?

वह आहिस्ता-आहिस्ता आगे बढ़ा। जैसे ही वह उनके पास पहुँचा, उसने देखा कि दोनों की आँखों में आँसू थे। प्रिंस अपनी हथेली से आकाश के आँसू पोंछ रहा था और आकाश का सिर झुका हुआ था। प्रतीक हैरान था। यह गुस्सा नहीं, यह दुख था। तभी प्रिंस ने भारी आवाज़ में कहा, “प्रतीक, हमें माफ़ कर दो। हम तुम्हें बता नहीं पाए।” आकाश ने आगे बढ़कर प्रतीक को गले लगा लिया और उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, “हमने तुम्हें बहुत परेशान किया। हमें माफ़ कर दो।”

प्रतीक को कुछ समझ नहीं आया। “यार, तुम लोग मुझे कुछ बता क्यों नहीं रहे? क्या हुआ है?” उसकी आवाज़ में दर्द और बेचैनी थी। तब प्रिंस ने कहा, “आओ, यहाँ बैठो।”

कुछ दिन पहले हमारे ऑफिस का एक साथी, जिसका नाम राहुल है, उसे कुछ पैसे चाहिए थे। हमारे ऑफिस के बॉस ने बिना कारण जाने उसे मना कर दिया। हमारे पूछने पर पता चला कि उसे वो पैसे अपने इलाज के लिए चाहिए थे। और अचानक ही दूसरे दिन पता चला कि वो अस्पताल में भर्ती है। उसकी तबीयत बहुत ही नाज़ुक है। उसके परिवार में कोई भी नहीं था। वह सिर्फ़ अपने बूढ़े माँ-बाप के साथ रहता था। उसके पास इलाज के पैसे नहीं थे।

उसके लिए हम दोनों परेशान हो गए। प्रिंस ने अपनी सारी बचत उसे देने का फैसला कर लिया था। मैंने अपनी थोड़ी savings और salary उसे दे दी। पर फिर भी पैसे कम पड़ गए। फिर हमने अपना-अपना घर बेचने का सोचा, पर कोई खरीदार नहीं मिला। अगर हम तुम्हें ये सब बताते तो तुम भी परेशान हो जाते।

और फिर क्या… हम दोनों ही उसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार थे। हम दोनों इस बात पर अड़ गए थे कि दूसरा पीछे हट जाए और मुझे अकेले ही सब कुछ करना है।

प्रतीक ने यह सुनकर अपने दोस्तों को गले लगा लिया। उसकी आँखें भी नम हो गईं। यह गुस्सा नहीं, यह चिंता और प्यार था। उन्हें खुशी हुई कि उनकी दोस्ती में कोई दरार नहीं आई थी, बल्कि यह और भी मज़बूत हो गई थी। अगली सुबह, तीनों ने मिलकर colleague राहुल से मिलने का फैसला किया। वे जानते थे कि ज़िंदगी में मुश्किलें आती रहती हैं, लेकिन सच्ची दोस्ती हमेशा जीतती है। वे दोस्त नहीं, बल्कि एक परिवार थे, और उनकी दोस्ती कभी नहीं टूटने वाली थी। वह चेक, जो प्रतीक ने संभालकर रखा था, उसे लौटा दिया। फिर तीनों दोस्त एक NGO में गए। वहाँ राहुल की बीमारी के बारे में सब कुछ बताया। NGO वालों ने फ़ैसला किया कि राहुल का इलाज वो लोग करेंगे।

NGO वालों ने राहुल के इलाज का ज़िम्मा उठाकर उसकी बहुत मदद की। आख़िर, राहुल के ऑपरेशन के बाद उसने तीनों दोस्तों का शुक्रिया अदा किया और कहा कि ये एहसान मैं कभी नहीं भूलूँगा।

तीनों दोस्तों के बीच सब कुछ अच्छा हो गया और पुरानी बातें भुलाकर नई शुरुआत अपनी दोस्ती की। उनकी दोस्ती में एक और दोस्त – राहुल – भी शामिल हो गया।

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