हाल ही में भारतीय university (IIT) खड़गपुर से एक बेहद दुखद खबर आई है। 21 साल के एक चौथे वर्षके मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र, Ritam Mondal शुक्रवार को राजेंद्र प्रसाद हॉल के उनके कमरे में मृत पाया गया। यह घटना न केवल Ritam के परिवार, बल्किपूरे IIT समुदाय और शिक्षा जगत के लिए एक बड़ा सदमा है।
सबसे बड़ा सवाल जो हर किसी के मन में है, वह है 'क्यों?' Ritam की मौत का कारण अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है, लेकिन पुलिस की शुरुआती जानकारी के अनुसार, उन्हें अपने कमरे में लटका हुआ पाया गया था । यह घटना तब और भी चिंताजनक हो जाती है जब हम यह जानते हैं किपिछले सात महीनों में IIT खड़गपुर में यह चौथी ऐसी घटना है। इससे पहले, जनवरी में आजाद छात्रावास में तीसरे वर्षके इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के छात्र, shaon Mullick को भी अपनी खिड़की की लोहे की ग्रिल से लटका हुआ पाया गया था।
इन लगातार हो रही घटनाओं से यह सवाल उठ रहा है किक्या हमारे शिक्षण संस्थानों में कुछ मूलभूत गड़बड़है? शिक्षकों और छात्रों, दोनों ने इस घटना को "बेहद दर्दनाक" बताया है। Ritam का परिवार रीजेंट पार्कमें एक किराए के कमरे में रहते थे । एक छात्र जो इतनी मेहनत और लगन से IIT जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में पहुँचता है, उसके जीवन का इस तरह अंत हो जाना, यह सोचने पर मजबूर करता है किआखिर क्या कारण हैं ।
Ritam और shaon दोनों के दोस्तों ने बताया किउनमें कोई असामान्य व्यवहार नहीं देखा गया था। वे सामान्य छात्रों की तरह ही थे। हो सकता है किकोई बात है जो वो share नहीं कर पाते या फिर किसी डर की वजह से छुपा रहे हैं।
पिछले कुछ महीनों में हुई आत्महतया स्पष्ट रूप से एक failure की ओर इशारा कर रहा है। यह university ने माना है और कहा की"कुछ खामियां" हो सकती हैं। यही कारण है किये घटनाएं हो रही हैं।" यह एक महत्वपूर्णबयान है क्योंकियह दर्शाता है किसंस्थान इस समस्या की गंभीरता को समझ रहा है।
हम सभी students मे awareness लाने के लिए AI technology का प्रयोग करेंगे। यह एक अच्छी पहल है, लेकिन सवाल यह है किक्या सिर्फतकनीक ही इसका समाधान है?
निदेशक ने बताया की हम कुछ फैसला लेते उससे पहले ही एक और घटना हो गई। यह दर्शाता है किसमस्या कितनी गंभीर और तत्काल है। संस्थान को (technology inventions) के साथ-साथ (human touch) की भी आवश्यकता है।
इन आत्महत्याओं के पीछे कई अलग-अलग कारण हो सकते हैं। अकादमिक दबाव, साथियों का दबाव, भविष्य की चिंताएं, प्रेम संबंध, परिवार से दूर रहने का अकेलापन, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, और प्रतिस्पर्धात्मक
माहौल - ये सभी कारक छात्रों पर भारी पड़सकते हैं। जांच अभी भी जारी है, और उम्मीद है किइससे कुछ स्पष्ट कारण सामने आएंगे।
इन दुखद घटनाओं के बीच, हमें अपने बच्चों को यह सिखाने की जरूरत है कि**विफलता जीवन का अंत नहीं है, बल्किएक नई शुरुआत है।** जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, और हर चुनौती से कुछ नया सीखने को मिलता है। हर बार सफल होना ही जीवन का लक्ष्य नहीं है। कभी-कभी हारना भी आपको मजबूत बनाता है।
सबसे महत्वपूर्णबात यह है किआत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। यह एक अपराध है - अपने खिलाफ, अपने परिवार के खिलाफ, और उन सभी के खिलाफ जो आपसे प्यार करते हैं। अगर आप या आपका कोई जानने वाला किसी भी तरह के मानसिक तनाव से गुजर रहा है, तो कृपया मदद मांगें। कई हेल्पलाइन नंबर और संस्थाएं हैं जो सहायता प्रदान करती हैं। अपने दोस्तों, परिवार, शिक्षकों या किसी भरोसेमंद व्यक्तिसे बात करें। चुप्पी तोड़ना सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्णकदम है।
IIT खड़गपुर में पहले से ही प्रोफेशनल काउंसलर उपलब्ध हैं, लेकिन इन घटनाओं के बाद निश्चित रूप से उनकी संख्या बढ़ाने और पहुंच को आसान बनाने पर जोर दिया जा रहा होगा। छात्रों को यह पता होना चाहिए किवे बिना किसी हिचकिचाहट के काउंसलिंग सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं। इसमें 24/7 हेल्पलाइन नंबर या ऑनलाइन चैट सपोर्टजैसी सुविधाएं शामिल हो सकती हैं।
कई बार छात्र अपनी समस्याएं साझा करने से डरते हैं या झिझकते हैं। संस्थान को ऐसा माहौल बनाना होगा जहाँ छात्र अपने फैकल्टी या छात्रावास के वार्डन से खुलकर बात कर सकें। शिक्षकों और कर्मचारियों को भी मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के प्रतिसंवेदनशील बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकिवे किसी भी छात्र में असामान्य व्यवहार को पहचान सकें और उन्हें सही दिशा दिखा सकें।
केवल अकादमिक उत्कृष्टता पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय, संस्थान को खेलकूद, सांस्कृतिक गतिविधियों और हॉबी क्लबों को बढ़ावा देना चाहिए। ये गतिविधियाँ छात्रों को तनाव कम करने, नए दोस्त बनाने और अपनी रुचिके क्षेत्रों में खुद को व्यस्त रखने में मदद करती हैं।
छात्रों द्वारा चलाए जाने वाले सपोर्टग्रुप्स बहुत प्रभावी हो सकते हैं। जब छात्र अपने साथियों के साथ अपनी चिंताओं को साझा करते हैं, तो उन्हें अक्सर यह महसूस होता है किवे अकेले नहीं हैं और उन्हें भावनात्मक सहारा मिलता है। संस्थान ऐसे समूहों के गठन और संचालन में सहायता कर सकता है।
हालांकि, ये कदम सकारात्मक हैं, लेकिन यह समझना महत्वपूर्णहै किकिसी भी तकनीक या प्रणाली को मानवीय स्पर्शका स्थान नहीं लेना चाहिए। छात्रों के साथ व्यक्तिगत संबंध, सहानुभूतिऔर समझ सबसे महत्वपूर्णहै।
छात्रों में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने के लिए समाज और परिवार की भूमिका
छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में केवल संस्थान ही नहीं, बल्किसमाज और परिवार की भी बहुत महत्वपूर्णभूमिका होती है।
परिवारों को अपने बच्चों के साथ मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात करने का माहौल बनाना चाहिए। बच्चों को यह महसूस होना चाहिए किवे किसी भी बात को अपने माता-पिता के साथ साझा कर सकते हैं, चाहे वह पढ़ाई का दबाव हो, दोस्ती की समस्या हो, या कोई अन्य व्यक्तिगत चिंता हो। 'क्या लोग सोचेंगे' की बजाय 'हमारा बच्चा कैसा महसूस कर रहा है' पर ध्यान देना चाहिए।
भारतीय समाज में अक्सर सफलता को ही अंतिम लक्ष्य माना जाता है, और विफलता को नकारात्मक रूप में देखा जाता है। हमें अपने बच्चों को यह सिखाना होगा किविफलता सीखने का एक हिस्सा है, अंत नहीं। हर कोई कभी न कभी असफल होता है, और इससे उबरना ही जीवन का महत्वपूर्णकौशल है। उन्हें गलतियों से सीखने और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
बच्चों को उनकी पसंद और रुचियों को खोजने और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए समर्थन देना महत्वपूर्णहै।
समाज को मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के प्रतिअधिक संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्णहोना चाहिए। मानसिक बीमारी को अक्सर कलंक के रूप में देखा जाता है, जिसके कारण लोग मदद मांगने से कतराते हैं। हमें यह समझना होगा किमानसिक स्वास्थ्य उतना ही महत्वपूर्णहै जितना शारीरिक स्वास्थ्य। लोगों को यह सिखाया जाना चाहिए किवे अपने आसपास के उन लोगों की मदद करें जो मानसिक रूप से परेशान दिखते हैं।
माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों में तनाव, चिंता या डिप्रेशन के शुरुआती लक्षणों को पहचानने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। अचानक व्यवहार में बदलाव, नींद या भूख में कमी, सामाजिक अलगाव, चिड़चिड़ापन या लगातार उदासी जैसे संकेत खतरे की घंटी हो सकते हैं। इन लक्षणों को नजरअंदाज करने की बजाय, तुरंत पेशेवर मदद लेनी चाहिए।
संक्षेप में, यह एक सामूहिक जिम्मेदारी है। जब संस्थान, परिवार और समाज मिलकर काम करते हैं, तभी हम अपने युवाओं के लिए एक ऐसा माहौल बना सकते हैं जहाँ वे न केवल अकादमिक रूप से सफल हों, बल्किमानसिक रूप से भी स्वस्थ और खुश रहें।
क्या आप जानना चाहेंगे किछात्र खुद अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान कैसे रख सकते हैं?