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खुदगर्ज़ी भी एक आम आदत बन गयी है लोगों की,
बरसात के बाद ओढ़ी हुई बरसाती भी बोझ लगती है।

यूँही तो हर कोई अपना नहीं हुआ करता,
ग़ौर से देखो तो ये दुनिया बड़ी मतलबी लगती है।

जब तक है काम, तब तक सब साथ दिखते हैं,
काम खत्म होते ही तो, सबकी पीठ दिखती हैं।

दुनियादारी है ये, यहाँ हर कोई सच्चा नहीं होता,
दिखावा है, दुनिया बस सच्चे होने का नाटक करती है।

अपना मतलब निकालकर, चले जाते हैं सब
सिर्फ दर्द-ओ-गम की तस्वीर, उनके बाद दिखती है।

हिफाज़त करलो दीये की अपने, इन हवाओं से,
दौर-ए-हाज़िर में ये खामोश हवा बड़ी तेज़ चलती है।

बचकर रहना तनवीर इस फरेबी दुनिया से,
ये हवा के साथ होकर भी, दीये के साथ दिखती है।

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