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कैरी.....अमिया.....करोंदा ....मिर्च...नींबू......सब्जी के ठेले वाले की आवाज मानो कोई अलार्म हो जिसके सुनाई देते ही मुहल्ले के कमोबेश हर घर से कोई ना कोई महिला बाहर आ ही जाती है, उसके ठेले पर सजी सब्जियों के अनुसार अपनी रसोई का संचालन करने की नीति उनके गृह मंत्रालय का मुख्य कार्य होता है । साग भाजी के दाम, उनके पोषक तत्व, घर के सदस्यों की पसंद-नापसंद, वार- त्यौहार, व्रत-उपवास कितने ही पहलुओं पर विचार-विमर्श करने के बाद तय करती है कि उन्हें क्या खरीदना चाहिये क्या नहीं ? सब्जियां खरीदने के दौरान पड़ोस की सहेलियों से मिलना जुलना भी हो जाता है, पर इन दिनों सब्जी-बाजार कच्चे आम से गुलजार है, कच्चा आम जिसे “कैरी” भी कहा जाता है अचार की दुनिया का राजा कहलाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हर भारतीय रसोई की शान होता है कच्चे आम का अचार।
“अचार” एक व्यंजन मात्र नहीं, एक भावना है जिसके रूप भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न होते है, मसलन माँ के लिए अचार एक प्यार भरी साधना है जिसे वह अपने बच्चों के लिए साध रहीं होती है, किसी को सब्जी स्वादिष्ट नहीं लगी तो अचार है ना... , थाली में दाल-चावल या खिचड़ी परोसी है तो साथ में अचार है ना..., पराठे बने है तो साथ में अचार है ना..., हॉस्टल में खाना अच्छा मिले ना मिले बच्चे के लिए घर का बना अचार है ना..., लंबी रेल यात्रा में जरूरी समान की सूची में शीर्ष पर अचार है ना..., बेटी ससुराल के लिए विदा हो रही है उसकी पसंद का उपहार माँ के हाथ का बना अचार है ना...! हर एक समय की भारतीय भोजन प्रणाली का महत्वपूर्ण तत्व है अचार । किसी व्यंजन की लज्जत कम है तो अचार उसका स्वाद बढ़ा देता है, कोई बेहद लजीज व्यंजन है तो उसमें चार चाँद लगा देता है अचार। पाँच सितारा होटल, हाई वे पर बना ढाबा, तीर्थ स्थलों पर बने भोजनालय या फिर शादी- बारात में परोसा गया प्रीतिभोज , सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन, रात का खाना चाहे कोई भी अवसर हो अचार की उपस्थिति लगभग तय ही होती है और हो भी क्यों ना इसकी खूबियाँ भी तो बहुत है। मौसमी फल और सब्जियों का स्वाद अचार के रूप में लंबे समय तक लिया जा सकता है , खाद्य- प्रसंस्करण की यह तकनीक विश्व की हर संस्कृति में भिन्न-भिन्न प्रारूपों में प्राचीन काल से ही अपनाई गई है । आवश्यकता आविष्कार की जननी है और फल और सब्जियों को खराब होने से बचाने की आवश्यकता ने उस जमाने में जब रेफ्रिजरेटर नहीं होते थे, तब अचार नामक वस्तु के आविष्कार का मार्ग प्रशस्त किया जो प्राचीन खाद्य प्रणालियों की वैज्ञानिक विचारधारा को सिद्ध करता है । कैसे वे घूंघट में छिपी सादी सरल सी तथा-कथित अनपढ़ महिलाएं, जिनकी सार्वजनिक पहचान में स्वयं उनका अस्तित्व अदृश्य होता था, अपनी मजबूत उपस्थिति अपनी पाक-कला के बल पर पुरूष प्रधान सता वाले परिवारों में दर्ज करा लेती थी कि जिन्होंने अपनी पसंद की सब्जियां भी शायद बनाई हो, अपने पूरे परिवार के लिए पूरे साल भर का अचार एक साथ डाल देती थी और स्वाद खुशबू वही की वही , कमाल जादूगरी होती उन हाँथों में ।
नमक और तेल भारतीय अचार-प्रणाली के मूल संरक्षक माने जाते है। अचार का मर्तबान उपर तक तेल की तरंगों में डूबा रहता है, यही उसका सुरक्षा कवच होता है, तेल की परत फफूँद लगने से उसकी रक्षा करती है । नमक फल को गला देता है और उसमें प्राकृतिक खट्टापन पैदा करने में मदद करता है, जिससे फल सूर्य की उपस्थिति में प्राकृतिक रूप से पकता है। ‘नो गैस कुकिंग’ यानि बिना आग पर पकाए खाना तैयार करने का यह सदियों पुराना तरीका आज तक प्रासंगिक है। मसालेदार अचार भारत में महिला आत्मनिर्भरता का प्रतीक भी बन गया, हर कस्बे- शहर में अचार निर्माता महिला उद्यमी मिल जाना आम सी बात है, हो भी क्यों ना मसालों का सही अनुपात, फल की सही किस्म का चयन और शुद्धता पूर्ण निर्माण प्रकिया का पालन और अनुरक्षण हेतु हर निश्चित अंतराल बाद धूप दिखाने की समझदारी भारतीय महिलाओं की अचार के प्रति समर्पित रूचि का स्वाभाविक परिचायक है।
मसाले, सामग्री और विधि एक समान होने के बावजूद हर खानसामे का व्यंजन स्वाद में भिन्न होता है ठीक उसी तरह हर घर में बने अचार की कुछ अलग विशेषता होती है, जो उसे उसके निर्माता से निजी तौर पर जोड़ देती है। इंसान ही नहीं अचार शहरों की भी विशिष्ट पहचान का प्रतिनिधित्व करता है।
कोलकाता का मशहूर ‘अमडा का अचार’ बंगाल का परम्परागत व्यंजन है। अँग्रेजी में ‘होग प्लम’ के नाम से जाना जाने वाला यह फल विटामिन सी से भरपूर होता है और अपने खट्टे-मीठे स्वाद के लिए जाना जाता है । लाल मिर्च का भरवा अचार बनारस की गालियों की याद दिला देता है तो हरी मिर्च का हल्के तेल और राई से बना ‘अथाना’ गुजरात की पहचान है। राजस्थान के मरूस्थल में जितना मूल्यवान पानी है उतना ही लाजवाब स्वाद कम पानी में उगने वाली वहॉं की वनस्पति से मिलने वाली उपज का है। कैर- सांगरी का अचार एक अलग ही स्वाद से रूबरू करवाता है, कमल की डण्डी जिसे स्थानीय भाषा में “भे” कहा जाता है उसके साथ कुमुट और सुखी लाल मिर्च को जब कैर-सांगरी के साथ मिला दे तो उसे ‘ पंच-कुटा’ का अचार कहा जाता है। बाजरे की रोटी और पंचकुटा का अचार एक दिव्य संयोजन का आभास करा देता है। पंजाब का आम का अचार किसी परिचय का मोहताज नहीं है। नीबू-मिर्च का अचार सार्वभौम रूप से हर जगह पाया जाता है। आम का अचार पूरे देश में पसंद किया जाता हैं । गाजर, मिर्च, अदरक के मिश्रण से बना अचार व्यापारिक स्तर पर अधिक बनाया जाता है। कुछ स्थानों पर मूली, करेले और गोभी का अचार भी बनाया जाता है। केले के फूल और फल दोनों के ही अचार बनाए जाते है। प्याज का अचार दक्षिण भारतीय भोजन की विशिष्टता है। मेथी दाना, सोंफ, सरसों दाना, कैलोंजी, नमक, लाल मिर्च पाउडर और हींग बस मूलतः यही मसाला भारतीय अचार का आधार होता है, बाकी राई, गुड़, चीनी यह सब स्थान एवं व्यक्ति विशेष की रूचि पर निर्भर करता है। आंवला का खट्टा-मीठा अचार औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है।
कच्चे आम में मसाला मिला कर कांच, चीनी मिट्टी से बने मर्तबान जिनके मुँह पर सूती कपड़ा ढक कर बालकनी, छतों पर सुबह से ले कर शाम तक सजा देने की यह प्रथा पूरे देश में हर वर्ष गर्मियों में मनाई जाती है, जिसका स्वाद हर भारतीय लेता है पर उसे तैयार करने में लगी मेहनत और समर्पण और सावधानी का शुक्रिया अदा करना शायद उसे याद नहीं रहता क्योंकि यह व्यंजन घर में बिना किसी वेतन के काम करने वाली उन स्त्रियों द्वारा बनाया जाता है, जिनका ओहदा गृहस्वामिनी का और उनकी वास्तविकता मात्र सेविका की होती है।
यह थी अचार की मसालेदार कहानी….!