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सीखने की प्रकिया जीवन का एक ऐसा चरण है जो उम्र के हर स्तर पर अलग-अलग रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रहती है, इसका ना तो कोई प्रति-स्थापन है और ना ही कोई विकल्प |

हमें सीखना चाहिये !

हम सीख रहे है !

यहाँ तक तो उचित है लेकिन अगर सबक सीखने की इस प्रक्रिया से कोई बचने का प्रयास करता है तो फिर जीवन-रुपी अध्यापक महोदय उसके शिक्षण और प्रशिक्षण की अपने तरीके से एसी व्यवस्था करते है की इंसान को पश्चाताप अथवा प्रायश्चित के साथ “काश ! मैंने सीख लिया होता अथवा अफसोस ! मैंने जरा देर से सीखा” जैसे भाव या अभिव्यक्ति के साथ इस चरण को जीना पड़ता है | सीखना अनिवार्य है अपरिहार्य है तथा विकास के लिए आवश्यक भी है | जन्म के साथ ही यह प्रकिया शुरू हो जाती है शिशु का उठना-बैठना, अपने पैरो पर खुद खड़ा होना , चलना , बोलना सब कुछ....और यही उसके शारीरिक विकास की चिकित्सकीय कसौटी होती है | अभिभावक बच्चों के साथ-साथ अपना बचपन भी मानो जी रहे होते है और पृष्ठभूमि में उनकी भी एक पाठशाला चल रही होती है, जिम्मेदार और सफल अभिभावक बनने की पाठशाला | एक तरफ अपना सफल करियर बना कर आर्थिक और सामाजिक जीवन में संतुष्ट होने की अभिलाषा दूसरी ओर जीवन साथी के साथ अपनी सपनीली दुनिया की सैर करने की ख्वाहिशें साथ- साथ इन सब से जरूरी और संतान का प्रथम कर्तव्य कि माता-पिता के प्रति जिम्मेदार बन कर उनको सुखी करने का प्रयास किया जाए | अमूमन हर संस्कृति के मध्यम वर्गीय परिवारों के युवक-युवतियाँ इन्हीं तीन पक्षों को संतुलित करने को अपनी सफलता का पर्याय मानते है और उनकी प्राथमिकताओं में इन्हीं से जुड़े काम शामिल होते है | सूचना-प्रोद्योगिकी के प्रसार, शिक्षण संसाधनों की सहज उपलब्धता और बढती सामाजिक जागरूकता का असर युवाओं में साफ़ तौर पर देखा जा रहा है | अपने भावी जीवन को किस दिशा में ले कर जाना है इसका रेखाचित्र अधिकांश लोग अपने विधार्थी जीवन में बना चुके होते है | कुछ लोग दृढ़ निश्चयी होते है और अपने लक्ष्य तक पहुंचने तक की यात्रा का ना सिर्फ नक्शा तैयार रखते है बल्कि इंटरनेट के जरिये सहज सुलभ जानकारी के द्वारा रास्ते की चुनौतियों से निपटने तक की तैयारी भी कर के रखते है | सही मार्गदर्शन, परिश्रम और समर्पण के साथ सफलता का स्वाद चखते है | दूसरी ओर कुछ लोग जानते तो है की उन्हें क्या करना है पर कैसे करना है, इस बात की जानकारी उन्हें नहीं होती तो सही जानकारी प्राप्त करने की कोशिश के दरमियान कुछ सही राह पर आगे बढ़ जाते है और कुछ किसी और दूसरी दिशा को पकड़ लेते है | भ्रमित हो जाना, अनुशासन हीनता, असफलता का भय इन सभी नकारात्मक पहलूओ के अलावा एक और कारण होता है की लोग अपना रास्ता बदल लेते है, वह है सत्य से साक्षात्कार | सूरज की नजदीकी तपिश बर्दाश्त करने शर्त और पानी का प्रेम तैरने का हुनर मांगता है, कुछ इसी तरह अपने लक्ष्य की प्राप्ति की “अर्हता” अथवा “योग्यता” मानकों पर खरा ना उतर पाने की असफलता को सकारात्मक तरीके से स्वीकार कर के अपने लिए नयी संभावनाओं को तलाश कर लेने वाले ऐसे लोग ही सामाजिक, आर्थिक, और व्यवहारिक “ नवाचार” को जन्म देते है | चूकि जिस क्षेत्र में उन्हें काम करना था वहाँ वे अपना योगदान नहीं दे पाए लेकिन असफलता के दौरान उन्हें मिले अनुभवों का वे लोग भरपूर लाभ उठाते है और कुछ ऐसे नए उत्पाद,सेवा अथवा कौशल को जन्म देते है जो ना सिर्फ उनकी सफलता का माध्यम बनता है बल्कि समाज को भी एक नयी दिशा अथवा उचित तौर पर कहा जाए तो “ नए करियर ट्रेंड” को जन्म देता है | गैर-पारम्परिक क्षेत्रों की सफलता का श्रेय इन्हीं प्रतिभाशाली लोगों को जाता है |

अपनी आजीविका कमाने के साथ-साथ अपने काम का आनंद ले पाना एक बेहतरीन संयोजन है लेकिन व्यवहारिक जगत में ऐसा सुख बिरले लोग ही पाते है और इसीलिए अपने-अपने करियर में सफल व्यक्ति भी कई बार अपने निजी जीवन में निराश और असंतुष्ट देखे गए है | ऐसे में अभिभावकों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि उनके पास अपने जीवन का अनुभव होता है जिस से वे स्वयं अपने बच्चों के प्रेरक और सहयोगी बन जाते है | जेनरेशन-गैप यानी पीढ़ियों के विचारों का अंतर वर्तमान युवाओं को उतना प्रभावित नहीं करता क्योंकि उन्हें अभिभावकों के रूप में ऐसे लोग मिले है जो उस सामाजिक बदलाव को खुद जी कर आये है जिसे उनकी पीढ़ी “पहले के जमाने” की बात के रूप में परिभाषित करती है | ऐसे में माता पिता अपने बच्चों के नियंत्रक बनने के बजाय उसके मित्र बन कर साथ देते है जो की एक सुखद सामाजिक परिवर्तन कहा जा सकता है क्योंकि ऐसे में किसी भी प्रतिभा का संघर्ष पारिवारिक स्तर पर समाप्त हो जाता है और वह अपना ध्यान अपने काम पर केन्द्रित कर सकती है, लेकिन पारिवारिक सहयोग की अनावश्यक अधिकता व्यक्ति को गैर-जिम्मेदार और कृतघ्न भी बना सकती है , जहां उसे उन लोगों और वस्तुओं, संसाधनों का महत्व समझ नहीं आता जो उसे सरलता से मिल गए हो | दूसरी ओर जिन प्रतिभाओं को पारिवारिक सहयोग के स्थान पर विरोध का सामना करना पड़ता है वहाँ सामाजिक और पारिवारिक संघर्षों को जीतने की प्रक्रिया उन लोगों में एक रूखापन और स्वार्थ पैदा कर देती है | जिससे कई बार सामाजिक सम्वेदनाओं का अभाव और अभद्रता और अहंकार जैसी समस्याएं उनके व्यवहारिक जीवन में बाधा बन जाती है | ऐसे में महात्मा बुद्ध का यह मार्गदर्शन सहायक सिद्ध हो जाता है कि :

वीणा के तारो को ना तो अधिक ढीला छोड़ा जाना उचित है ना ही अधिक कस कर रखा जाना , क्योंकि अधिक ढीलापन सुर ही नहीं निकाल पायेगा और अधिक कसाव तारो को तोड़ देगा दोनों ही स्थितियाँ उचित नहीं कही जा सकती है, इसलिए “अति” हर भाव और वस्तु की बुरी है , नियमित और संयमित आचार-व्यवहार ही सही है | यही बुद्ध के “मध्यम मार्ग” के रूप में जाना जाता है |

नतीजे के तौर पर यह कहा जा सकता है की जो सबक सीखना जीवन में सब से ज्यादा जरूरी है वह यह की संतुलित आचरण पर विचार पद्धति को अपनाया जाए और नयी चीजे सीखने की प्रकृति को अपनी जीवनशैली का अहम हिस्सा बना कर सदैव विद्यार्थी बन कर रहा जाए | क्योंकि विद्या कभी भी व्यर्थ नहीं जाती |

जीवन का निर्णायक मोड़ बना कर दसवीं के परीक्षा परिणाम को समाज में प्रस्तुत किया जाता है, यही वह स्थान है जहां आम भारतीय बच्चे अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण चयन करते है जो है उच्च शिक्षा के लिए विषय का चयन | साधारण पैमानों के अनुसार डॉक्टर और इंजीनियर बनने के इच्छुक लोग “विज्ञान” विषय का चयन करते है, व्यापारिक पृष्ठभूमि अथवा व्यापार में रुचि रखने वाले लोग “वाणिज्य” और कला में रुचि रखने वाले लोग अथवा प्रशासनिक सेवा में जाने में रुचि रखने वाले “कला और मानवता” को विषय के रूप में चुनते है | आर्थिक आत्मनिर्भरता को लक्ष्य बना कर कुछ लोग “डिप्लोमा कोर्स” यथा “पोलोटेक्निक, नर्सिंग, कंप्यूटर एप्लीकेशन अथवा डिप्लोमा इन होटल मैनेजमेंट” जैसे क्षेत्रों का भी चयन करते है | ज्ञान और अवसरों का प्रगतिशील भारत में भरपूर भण्डार है, जागरूक और जिम्मेदार अभिभावक अपने बच्चों की रुचि और प्रवृति को भांप कर उन्हें शुरू से ही भावी क्षेत्र की जानकारी मुहैया कराते रहते है | इस क्षेत्र में कई पक्ष प्रभावी होते है यथा:-

पारिवारिक और आर्थिक पृष्ठभूमि , क्योंकि मजबूत आर्थिक संसाधन युक्त परिवार अपने बच्चे के लिए महंगे शिक्षा उपकरणों को उपलब्ध तो करा सकता ही है साथ ही असफल प्रयासों का दबाव भी उन बच्चों पर नहीं रहता क्योंकि आर्थिक मजबूरियाँ नहीं होती | दूसरी और मध्यमवर्गीय अथवा निम्न-मध्यमवर्गीय परिवारों में बालक को भविष्य का पालनकर्ता बना कर देखा जाता है ऐसे में उस पर सफल होने का दबाव ज्यादा रहता है क्योंकि वह जानता है की शिक्षण संसाधनों की उपलब्धि हेतु उन के परिवार ने अपनी जरूरतों का बलिदान किया है और उन पर जिम्मेदारी होती है की वे आत्मनिर्भर बन कर परिवार का सहयोग करें | जिन परिवारों की शैक्षणिक पृष्ठभूमि सुदृढ़ होती है वहाँ जागरूकता ज्यादा होती ही वही आर्थिक रूप से सक्षम किन्तु शैक्षणिक रूप से पिछड़े परिवारों में भी उच्च शिक्षा हेतु सहयोग और सुविधा नहीं मिल पाती है, क्योंकि उन्हें वह गैर जरूरी और फिजूल खर्च लगता है |

रोजगार अवसरों की उपलब्धता, जिन क्षेत्रों में सुरक्षित रोजगार के अवसर सहज और पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते है उनकी ओर विद्यार्थियों का रुझान ज्यादा होता है |

विज्ञापन और विपणन, निजी क्षेत्र के प्रवेश ने शिक्षा को भी प्रतिस्पर्धी बाज़ार में बदल दिया है जहां विज्ञापनों के जरिये बच्चों और अभिभावकों को लुभाया जाता है ताकि उनका व्यापार चलता रहे, समाचार पत्रों के प्रथम पृष्ठ पर कोचिंग संस्थानों के विज्ञापन दिखना आम बात है |

सामाजिक जागरूकता और स्वीकार्यता भी कुछ हद तक विद्यार्थी के विषय चयन को प्रभावित करती है | लोग जिन विषयों या क्षेत्रों में बारे में जानते नहीं उन्हें वे महत्व भी नहीं देते, अनौपचारिक और गैर पारम्परिक क्षेत्रों में मिली सफलता को भी संदेह की दृष्टि से देखते है |

ऐसे में जब बच्चे अपना विषय चयन का निर्णय ले रहे होते है, उनके अभिभावकों को से भी अपेक्षित है की वे सहयोगी और उपयोगी परामर्श दे | अपनी व्यस्त दिनचर्या और जिमेदारियों के बीच थोड़ा सा वक्त उस पढ़ाई के लिए निकाले जिस से उनका सम्बन्ध नौकरी और व्यापार के कारण छूट सा गया होता है |

पड़ोस वाले शर्मा जी के बेटे ने जो कोर्स किया और जिसके कारण वह विदेश में करोड़ों के पैकेज पर लगा हुआ है, मेरठ वाले मामा जी की बिटिया जो बिना किसी कोचिंग के सरकारी नौकरी लग गई है और ऑफिस के सहकर्मी का बेटा जिस विषय में शत प्रतिशत अंक लाया है, उन बातों की जानकारी अपने बच्चों को इस प्रकार से दे की उन्हें भी प्रेरणा मिले ना की किसी व्यंग या ताने के रूप में |

अभिभावकों को चाहिये की अपनी सूचना प्राप्ति का दायरा जरा सा और आगे बढ़ाये और उन शर्मा जी, मामा जी और सहकर्मी से इस विषय के बारे में भी जानकारी प्राप्त करें की उनके बच्चों को उनकी सही दिशा किस प्रकार प्राप्त हुई, उस तथाकथित कोर्स, नौकरी की विज्ञप्ति और उसका पाठ्यक्रम और परीक्षा की पद्धति किस प्रकार की है, किन पुस्तकों का उसने अध्ययन किया, शत प्रतिशत अंक प्राप्त करने के लिए बच्चा कितने घंटे पढाई करता है और उसे उसकी पढाई में घरवालों ने किस प्रकार सहयोग किया , अन्य विषयों में उसके प्राप्तांक कैसे है इत्यादि | अपने बच्चों तक दूसरों की उपलब्धियाँ पहुंचाने से पूर्व उन सफल व्यक्तियों से उनकी सफलता से पूर्व की कहानी जाननी बेहद जरूरी है क्योंकि जाने अनजाने हम अपने बच्चों को उन रास्तों पर चलने की प्रेरणा दे रहे होते है जिन पर चल क किसी अन्य व्यक्ति ने सफलता पाई है | सफलता सिर्फ एक दिन या एक प्रयास का परिणाम नहीं होता है, उसके पूर्व कठोर परिश्रम, धैर्य और निरंतर प्रयास एवं एक महत्वपूर्ण परीक्षा और उसकी बेहतरीन तैयारी जैसे महत्वपूर्ण चरण होते है लेकिन उन का जिक्र तक नहीं किया जाता | जिस विषय या करियर के चयन के लिए जैसे बच्चों को प्रोत्साहित किया जा रहा है कम से कम उस विषय, उसके लिए उपलब्ध शैक्षणिक संसाधनों, शिक्षण संस्थानों, भावी परीक्षाओं और उस क्षेत्र में रोजगार की विभिन्न पहलूओ की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने का गुण आपको एक जागरूक अभिभावक की श्रेणी में शामिल कर सकता है | इसके कई लाभ है जैसे आपको अपने बच्चे के लिए बाहरी मार्गदर्शक की आवश्यकता प्रारंभिक दौर में नहीं पड़ती क्योंकि आप खुद अपडेट होते हो, दूसरा बच्चा अपनी पसंद या नापसंद बेहतर तौर पर आपके साथ साझा कर पायेगा क्योंकि उसे यह विश्वास हो जाता है की उसके माता-पिता को उस क्षेत्र या विषय की पर्याप्त जानकारी है, सबसे प्रमुख यह की संभावित असफलता अथवा चुनौतियों के समय आप उसे सहयोग दे पाते है क्योंकि आपने इस विषय में भी पूर्व जानकारी प्राप्त कर रखी है, तकनीकी रूप से कहा जाए तो आपके पास “प्लान बी” त्तैयार है |

तो यदि आप अभिभावक है तो आस पास की दुनिया और सोशल मीडिया पर चल रही “सक्सेस स्टोरीज” के बीच आप भारतीय शिक्षण व्यवस्था की आधिकारिक जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करंगे तो आपको जानकारी मिलेगी की स्कूली शिक्षा की शीर्ष संस्थाओं , विभिन्न राज्य बोर्डो द्वारा सभी विषयों के सम्बन्ध में विस्तृत मार्गदर्शिकाए उपलब्ध करवाई जाती है | सीबीएसई तथा विभिन्न राज्य बोर्ड अलग विभिन्न विषय क्षेत्रो में भिन्न-भिन्न शाखाओं के तहत बेहद उपयोगी और रोजगार मूलक कोर्स उपलब्ध कराते है चूंकि उनसे जुड़े व्यक्ति आपके प्रत्यक्ष परिचय क्षेत्र में नहीं होते इसीलिए उन की जानकारी आप तक नहीं पहुँच पाती |

कृषि एवं सहायक विज्ञान जिसके अंतर्गत कृषि, सेरीकल्चर यानी रेशम कीट पालन, हार्टीकल्चर यानी बागवानी, वानिकी, गृह विज्ञान, पोषण एवं आहारिकी {फ़ूड न्यूट्रीशन एंड डायटेटिक्स}, कृषि अभियांत्रिकी{एग्रीकल्चर इंजीरियंग}, खाद्य प्रोद्योगिकी {फ़ूड टेक्नोलॉजी}, डेयरीटेक्नोलॉजी, जैव-प्रोद्योगिकी{बायो टेक्नोलॉजी}जैसे पाठ्यक्रम भी उपलब्ध है |

वास्तु कला एवं नियोजन{आर्किटेचर एंड प्लानिंग} विषय के तहत बैचलर ऑफ़ आर्किटेक्चर तथा बैचलर ऑफ़ टेक्नोलॉजी एंड प्लानिग जैसे स्नातक स्तरीय पाठ्यक्रम ऐसे विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध है जिनके पास दसवीं से बारहवीं तक विज्ञान विषय फिजिक्स, केमेस्ट्री, मेथ्स यानी भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित रहे हो तथा जिन विद्यार्थियों ने गणित विषय के साथ बारहवीं उतीर्ण की है चाहे वह किसी भी क्षेत्र से हो उनके लिए बैचलर ऑफ़ प्लानिंग जैसे स्नातक स्तरीय पाठ्यक्रम भी उपलब्ध है |

डिजाईन और ललित कला के क्षेत्र में बैचलर ऑफ़ फ़ाईन आर्ट्स, बैचलर ऑफ़ फैशन एंड टेक्नोलॉजी, बैचलर ऑफ़ विजुअल आर्ट, बैचलर ऑफ़ डिजाईन जैसे कोर्स सभी वर्गों के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध है, वही गणित विषय के साथ बाहरवी उतीर्ण करने वाले विद्यार्थी बैचलर ऑफ़ इंटीरियर डिजाइनिंग में प्रवेश ले सकते है | आज के दौर में कई क्षेत्रों में इन विषयों की डिग्री लाभप्रद रहती है, एनिमेशन, डिज़ाइनर, फैशन , जुएल्लेरी डिजाईन, फोटोग्राफी, फिल्म जैसे क्षेत्र इस सम्बन्ध में रोज़गार का अच्छा माध्यम है |

जनसंचार यानि मास कम्युनिकेशन क्षेत्र में बैचलर ऑफ़ मास मीडिया एवं बैचलर ऑफ़ मास कम्युनिकेशन जैसे स्नातक स्तरीय कोर्स कला, वाणिज्य, विज्ञान तीनो ही क्षेत्रो के बारहवीं उतीर्ण विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध है | कंटेंट, राइटर, ब्लॉगर, पत्रकारिता, सम्पादन यानी एडिटिंग और सोशल मीडिया मार्केटिंग जैसा विशाल कार्यक्षेत्र रोजगार के प्रभावी साधन मुहैया कराता है |

खेल तथा शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में बैचलर ऑफ़ फिजिकल एंड स्पोर्ट्स एडुकेशन तथा बैचलर ऑफ़ फिजिकल एजुकेशन जैसे स्नातक स्तरीय कोर्स उपलब्ध है | खेल प्रशिक्षक, खेल सामग्री प्रबंधक, विभिन्न खेलो में कोचिंग जैसे कार्यक्षेत्र हेतु यह कोर्स उपयोगी रहता है|

विधि यानी क़ानून की शिक्षा भी बाहरवी के बाद पंचवर्षीय पाठ्यक्रम के रूप में सभी क्षेत्रों के विद्यार्थी प्राप्त कर सकते है बैचलर ऑफ़ टेक्नोलॉजी एंड बैचलर ऑफ़ लॉ{ओनर्स} जो की एक छ: वर्षीय पाठ्यक्रम है उसके लिए बारहवीं में विज्ञान विषय गणित के साथ तथा बैचलर ऑफ़ साइंस एंड बैचलर ऑफ़ लॉ{ओनर्स} जो की एक पंचवर्षीय पाठ्यक्रम है विज्ञान विषय के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध है |

पशुपालन और मत्स्य विज्ञान {वेटनरी एंड फिशरी साइंस} के क्षेत्र स्नातक स्तरीय पाठ्यक्रम जीव विज्ञान विषय के साथ विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध है | इनके अतिरिक्त हर वर्ग के विद्यार्थियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम भी उपलब्ध है |

शिक्षा तथा उसका व्यवहारिक उपयोग किसी एक विशेष पाठ्यक्रम, किसी एक विशिष्ट विश्वविद्यालय अथवा किसी एक उपलब्धि या पद तक ही सीमित नहीं होता ना ही किसी व्यक्ति की योग्यता उसकी अंक तालिका में दर्शाए गए अंको तक सीमित होती है | जो ज्ञान व्यक्ति के निजी जीवन तथा उसके आस पास के लोगों एवं बड़े स्तर पर देखा जाए तो समाज के किसी भी तबके के जीवन को बेहतर, सहज और सुविधायुक्त बनाने में उपयोगी और सक्षम है वह सार्थक है अन्यथा व्यक्ति साक्षर होता है पर उसे शिक्षित नहीं कहा जा सकता | भगवान हर व्यक्ति को गुणवान बना कर भेजता है और अध्यापक और अभिभावकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है उस गुण को पहचानने और उसे निखारने में | हीरे को पहचान कर उसे तराशा जाता है, सोने को खदानों से निकाल कर उसे आग में तपा कर निखारा जाता है और अनाज को खेती कर के उगाया जाता है | तीनों ही वस्तुए अलग -अलग आर्थिक मूल्यों पर बेचीं जाती है, इनकी प्राप्ति का तरीका भिन्न होता है, तीनों के बाज़ार और खरीदार भिन्न-भिन्न होते है किन्तु ये एक दूसरे की जगह नहीं ले सकती | अपने-अपने स्थान पर तीनों का अलग महत्व है पर जरा सोचिये की कोई कहे हीरे की खेती करनी है या फिर अनाज की खुदाई करनी है और उसे उसके प्रयासों में सफलता नहीं मिल रही तो उसकी असफलता उसके प्रयासों में कमी का परिणाम है या फिर उसके आधारभूत ज्ञान में कमी का | निःसंदेह उसे उन वस्तुओं के मूल गुण-धर्म का ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता होती है, सही मार्गदर्शक उसके प्रयासों और ऊर्जा को उचित दिशा देगा ताकि वह सफल हो सके | हमारा प्रयास भी अभिभावक के तौर पर यह हो की हम अपने बच्चों की मूल प्रतिभा एवं रुचि को पहले से ही पहचान कर उससे सम्बंधित क्रिया-कलापों में शामिल करें ताकि उसे खुद की प्रतिभा और नैसर्गिक कौशल को पहचाने में मदद मिले | जब वह अपना कर्म क्षेत्र चुन ले तो उसे यथासंभव व्यवहारिक और भावनात्मक सहयोग करें | अपने सर्वोतम प्रयासों के बावजूद भी अगर वह समुचित सफलता ना पा सके तो उसे उपलब्ध अन्य सार्थक विकल्पों के बारे में समझाए ना की यह की अपनी अधूरी इच्छाओं की पूर्ति का माध्यम बना कर उन्हें वह करने के लिये बाध्य करें जो की आप खुद करना चाहते थे लेकिन कर नहीं पाए | स्वार्थी अभिभावक के स्थान पर “सारथी अभिभावक” कहलाना , सुखद और सार्थक महसूस होगा |

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