भारत की सर्वोच्च विधि, हे देश के कर्णधार ! लोकतंत्र के आधार!
तुम्हें मुझ भारतवासी का ढेर सारा प्यार ।
तुम मात्र एक पुस्तक हो तो तुम्हारे लेखकों को प्रणाम, यदि कोई आज्ञापत्र हो तो तो तुम्हारे हुक्म पर मेरे सैकड़ो सलाम, देश का आधारभूत ढांचा हो तो इस संरचना के शिल्पियों को मेरा नमन, न्याय व्यवस्था के रखवाले, करते हो तुम ही अन्याय का शमन, वर्षों इस देश के लोगों ने विदेशी आततायियों का सहा दमन, आजादी के सही मायने और दायरे के निगेहबान, तुम हो इसी लिए कायम है अब तक लोकतंत्र की शान ।
जिसमें पैदा हुए उस देश की पहचान, तुम ही से पाई है । भारत राज्यों का संघ है ये बात, तुम ही ने बताई है । जितने राज्य और संघीय क्षेत्र , तुमसे शासित है, अनेकता में एकता का रूप, उन्हीं में परिभाषित है । प्रभुता संपन्न, गणराज्य की यही असली निशानी है लोक कल्याण हो प्रमुख, समाजवाद और अखंडता की कदर हर नागरिक ने जानी है ।
न्यायालय की आजादी कोरी कल्पना नहीं है । गलती ! गलती ही मानी जाएगी, करने वाला हाकिम ही क्यों ना हो, गलती करना सही नहीं है । इसीलिए सामाजिक कार्यकर्ता शासन तंत्र से भिड़ जाते है, क्योंकि वो ये जानते है कि देश की अदालत स्वतंत्र है, उसे सत्ताधारी नहीं चलाते है । इसीलिए प्राण और दैहिक स्वतंत्रता में स्वच्छ हवा का अधिकार आता है, शीर्ष न्यायालय कहता है उद्योगों को नियमित करो वातावरण में प्रदूषण ज्यादा है । साफ हवा, शुद्ध पानी, मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो शुरू हुई वैचारिक आदान -प्रदान की कहानी । अपनी बात कह पाने का अधिकार बड़ी अनमोल धरोहर है, सौंपीं है हमको लोकतन्त्र ने , रचनात्मक लोगों के लिए तो भारत मानसरोवर है ।
अधिकारों में अवरोध ना हो, पर सीमा का यदि बोध ना हो, तो रक्षक भक्षक बन जाता है, औरो का हक खा जाता है । भारत में अधिकारों की भी सीमा है, वह जनहित खातिर बीमा है । अधिकारों के पर्दे मे जब हुआ राष्ट्र हितों को खतरा है , हे पवित्र संहिता तुमने तब-तब खल के पंखों को कतरा है ।
जब शासन नीति संग चला, तब स्वर्ण-विहंग का मान मिला, जब- जब दमन-तंत्र ने राज किया, हर तरफ से बस बर्बाद किया, वही गलती फिर ना हो जाये, सत्ता शांति ना खा जाये, इस खातिर नीति-तत्व बुने, जनहित को शासन सदा चुने । निर्देशक जब नैतिक होता, अनुयायी सत्य नहीं खोता, यह हमने होते देखा है, संविधान में नीति रेखा है ।
जब नियम पुराने हो जाये, प्रासंगिक नहीं जब रह जाये तब परिवर्तन भी जरूरी है , संविधान में व्यवस्था पूरी है। संशोधन का भी प्रावधान,वर्णित प्रकिया है तमाम, जब सम्यक पालन हो जाये, नए पन्ने तुम संग जुड़ जाये । जैसे जुड़ गए थे कर्तव्य मूल, आचरण जनता का हो राष्ट्र अनुकूल, सार्वजनिक सम्पति की सुरक्षा हो, राष्ट्रीय स्मारकों की भी रक्षा हो, राष्ट्रीय चिन्हों को मान मिले, राष्ट्र-गान को उचित सम्मान मिले । अधिकारों के अश्वों पर जब कर्तव्य सवारी करते है तब लक्ष्य अटल हो जाते है और लोग तरक्की करते है ।
नींव मजबूत बनी रहे, इमारत तन कर खड़ी रहे, भले लाख कलेवर बदल जाये, मूल स्वरूप पुरातन रह जाये । कुछ नया पुराने जैसा हो, कुछ पुराना नया सा बन जाये, जड़े जमीन में गहरी हो, वृक्ष नए पत्तों से सज जाये । कुछ इसी तरह की तकनीक चुनी, संशोधन प्रकिया जटिल चुनी, आधारभूत ढांचा हो अटल, हो जाए समयानुकूल फेर-बदल ।
कुछ बात तुम्हारी प्रकृति की, कुछ एकात्मक हो, कुछ संघात्मक , जब मूल स्वभाव बताना हो तो संघीय रूप ही मूल तत्व । उसका भी समुचित कारण है, ये संघर्षों का निवारण है , जब-जब होता है केंद्र अशक्त, बहता ही राष्ट्रीयता का रक्त । निजी लाभ प्राथमिक हो जाते है, सहकार भाव है खो जाते है , तब शक्ति-संघर्ष जन्मता है, राज्यों में तनाव बढ़ता है । इसीलिए केंद्र को कहे प्रमुख , संतुलित अंतर-राज्य सम्बन्ध, रहता है देश में शाश्वत सुख ।
खूबियाँ तुम्हारी कैसे कहे, क़ानून के सबक मैंने नहीं पढ़े, बस अनगढ़ तुकबंदी करती हूँ , मन में आये वो कहती हूँ , पर दिल ने ये महसूस किया तुमने है कवच हम सब को दिया वरना दुनिया में देश कई भारत संग आज़ादी पा गए थे , संविधान जरा कमज़ोर पड़ा , वे मुश्किलों में आये थे ,है भारत का संविधान बली , मुश्किलों की दाल यहाँ ना गली ।
संविधान तुम्हारी खिदमत में तुकबंदी मैंने रचाई है , इसका भी कारण बड़ा अजब तुमने तहज़ीब सभी को सिखाई है । बेटी हुई हैं ! जब ये स्वर प्रसूति गृह से बाहर आया था तो पूरे परिवार और समाज ने प्यार से अपनाया था | ये प्रीत स्त्री-जाति के हिस्से में जरा देर से आई है, समाज सुधारको और रूढ़िवादियों के बीच हुई लम्बी लड़ाई है । लिंग आधारित भेदभाव समाप्त हुआ, ईश्वर की बनायीं कोमल रचना के लिए नए युग का आगाज़ हुआ । समानता का अधिकार तुमने दिया है ये एक मजबूत कारण है की देश की औरतो ने सुखमय और गरिमामय जीवन जिया है ।