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राम राम गंगा दास जी...!

राम राम भाई साहब...! बताइए क्या सेवा करूँ?

एक किलो चना दाल, पाँच किलो चावल और एक पोहा का पैकेट दे दीजिए, बच्चों के लिए चाकलेट वाले बिस्कुट और हम बूढ़ों के लिए डाइट वाले बिस्कुट दे दीजिए ।

निर्जला एकादशी आ रही है फलाहार का सामान ले जाइए , अभी दाम कम है जैसे-जैसे एकादशी पास आएगी दाम बढ़ जायेंगे । ये देखिए साबूदाना के पापड़, शुद्ध और घर के बने हुए , ये कुट्टू के आटे से बने फलाहारी खाखरे और नमकीन...! ‘गंगा दास जी’ जो एक मंजे हुए व्यापारी थे अपने नियमित ग्राहक मोहन लाल जी की तरफ तिरछी आँख किए बोले।

ना-ना भाई साहब साल में एक ही तो एकादशी ऐसी आती है जो पूरा परिवार करता है, मिलावट के इस दौर में व्रत-उपवास का खाना भी डिब्बा बंद ले लिया तो हो गई एकादशी और मिल गया पुण्य । मोहन लाल ने उत्तर दिया ।

देखिए... खरीदने अथवा ना खरीदने का निर्णय आपका है पर इसे मिलावटी मत बोलिए , मेरी पतोहू ने खुद बनाए है, घर का बना सामान है…! शुद्धता और पवित्रता की गारंटी मेरी है, झूठ बोलूँ तो पाप का भागी बनूँ । दरअसल मेरी पत्नी भी एक धार्मिक महिला है, एकादशी, प्रदोष और भी ना जाने कितने तीज-त्योहार आते है, जब देवी जी का उपवास रहता है । बुढ़ापे के आधुनिक साथी यानी मधुमेह और रक्त-चाप हम दोनों के साथ चिपके हुए है, नाश्ते के पहले, नाश्ते के बाद रंगबिरंगी दवाई की गोलियां रोज लेनी पड़ती है, ऐसे में उपवास कोई कैसे करें ? श्रीमती जी जिद्दी बड़ी...! बीमार होना मंजूर पर उपवास ना छोड़े, सब फल मीठे की बीमारी ने बंद करा दिये । वो तो भला हो उस बच्ची का, दादी सास के खड़ूस स्वभाव को झेल भी रहीं है और उसी की आँखों के सामने इस तरह की उपवास संबंधित सूखी सामग्री बना कर मुझे मुसीबत से बचा भी रहीं हैं । बच्चे जब माइक्रोवेव खरीद कर लाए तब जो कूड़-कूड़ मचाई हैं उसने की पूछो मत...बिजली के चूल्हे में बनी ‘बाटियाँ’ नहीं खाइ उसने । हमारी विवाह की वर्षगाँठ पर केक बनने की प्रक्रिया को जब अपनी आँखों से देखा तो उसे यकीन आया कि बिना अंडे के भी केक बनते है । शुगर फ्री केक, पेस्टरी खूब पसंद है उसे अब । बहु ने एकादशी के फलाहारी आटे से सेंधा नमक और जीरा डाल कर बिस्कुट बनाए थे, ताकि उपवास भी रहे और खाली पेट गैस की समस्या भी ना हो, बस तभी ये ख्याल आया कि इस उत्पाद को भी व्यापार में आजमाया जाये, तो मेरे कहने पर उसने बड़ी मेहनत से खुद घर में बनाए है इसी लिए कह रहा हूँ खरीद लीजिये ।

एसी बात है तो लाइए... एक पैकेट फलाहार वाले खाखरे और बिस्कुट का एक पैकेट दे दीजिए घरवालों को अच्छा लगा तो एकादशी पर और ले जाऊँगा...अपना सामान खरीद कर मोहनलाल जी ने अपने घर की तरफ रुख किया और गंगा दास जी ने उनका नाम अपनी डायरी में नोट किया । ‘रामभरोसे’ जो अपने बचपन से ही गंगा दास जी की दुकान में काम कर रहा था और अब दुकान के साथ-साथ घर के कामों में भी सहायक बन गया था । वह परिवार का एक स्थायी सदस्य और गंगा दास जी का अघोषित सचिव था, घर से सूचना लाया की खाना तैयार है और उनका ही इंतजार हो रहा है । असल में गंगा दास जी की पतिव्रता पत्नी उनको भोजन कराने के बाद ही खुद खाना खाती थी, इसलिये जब आधा भोजन तैयार हो जाता था, तभी ‘दुकान’... जो कि घर के निकट ही थी यह सूचना भेज दी जाती थी कि खाना तैयार है, आप खा ले तो दादी सा भी खाना खा ले । गंगा दास जी का उत्तर तय था... बस पाँच मिनट में आ रहा हूँ और उनके पाँच मिनट की परिभाषा थी ‘उनके हाथ में लिया गया काम पूरा होने की अवधि’ । उसी अन्तराल में उनका बड़ा बेटा जो एक रिटायर्ड बैंक कर्मचारी था और अब अपने पिता जी की दुकान में हाथ बंटाने के साथ-साथ समाज सेवा का कार्य भी करता था अपना लैपटॉप लिए दुकान पहुँच गया । वित्तीय जागरूकता फैलाना उसे अच्छा लगता था, वरिष्ठ नागरिकों और पेंशन भोगी वृद्धों की समस्याओं को दूर करने के लिए वह उनका मार्गदर्शन करता था । अपने काम से काम रखने वाले गंगा दास जी को बेटे का यह समाज सेवा का कार्य रुचिकर तो नहीं लगता था, पर रुकी हुई पेंशन शुरू होने, कागज़ी कार्रवाई में सहायता मिलने और अपनी जमा पूंजी के सुरक्षित निवेश की संतुष्टि से अभिभूत लोग जब उनके पुत्र ‘प्रह्लाद दास’ को आशीर्वाद दे कर जाते तब उन्हें बड़ा अच्छा लगता । हर आगंतुक कुछ ना कुछ वस्तु खरीद कर अपना उपकार चुका देता है इस बात से उनके व्यापारी मन को तसल्ली भी मिलती थी । कुछ स्थायी ग्राहक अच्छा व्यवहार करने से भी मिल जाते हैं, पुत्र का ये तर्क गंगा दास जी को तब तक ही याद रहता, जब तक समाज सेवा और अच्छे व्यवहार का उनकी ग्राहकी पर कोई विपरीत असर ना पड़े । मुहल्ले में हालांकि किराने के सामान की और भी दुकानें थी, परन्तु ‘गंगा-स्टोर’ की बात ही अलग थी । अपनी जवानी के दिनों में एक ठेले से शुरू किए इस व्यापार को गंगा दास जी ने काफी मेहनत से इस मुकाम पर पहुंचाया था । सब्जियां बेचने से शुरू हुआ उनका सफर आज एक समृद्ध और सुव्यवस्थित किराना स्टोर तक पहुँच गया था । उनका एक ही मंत्र था कि ग्राहक दुकान से खाली और निराश हो कर ना जाये, भगवान के समान ही उसका आदर करो । हर वस्तु जिसकी उसके द्वारा खरीदे जाने की संभावना हो उसे याद दिलाते रहो, दिखाते रहो । समय के साथ उनके व्यापार ने उतार-चढ़ाव भी देखे पर गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं किया उन्होंने, किराने के साथ-साथ दैनिक उपभोग की हर जरुरी चीज मिलती थी उनके स्टोर पर । कभी किसी व्यक्ति द्वारा मांगी गई वस्तु अगर उपलब्ध नहीं होती तो उसे नियत दिन बता कर उपलब्ध करवा देते और फिर उस वस्तु के लिए उनकी दुकान से कोई भी ग्राहक खाली हाथ नहीं जाता । उनकी इसी खूबी ने कस्बे में उनकी ख्याति बढ़ा दी थी । अपने पुत्र के नौकरी करने के निर्णय का भी उन्होंने खुले दिल से स्वागत भी किया और दुकान में ज्यादा काम की दुहाई दे दे कर उसकी रविवार समेत लगभग सभी छुट्टियों का भी भरपूर उपयोग व्यापारिक कार्यों में ले भी लिया । उनकी मंशा साफ़ थी कि पुत्र को सफल व्यापारी बनने के लिए हर जरुरी प्रशिक्षण देकर अपने अच्छे पिता होने का कर्तव्य पूरा कर लिया जाये । बेटा जीवन के बुरे से बुरे दौर में भी अपना और अपने परिवार का गुजारा कर ही लेगा अगर व्यापार का कौशल उसे समझ आ जाये । इस कार्य में गंगा दास जी सफल तो हो गए थे पर संतुष्ट नहीं हुए थे, इसलिए अपने पौत्र ‘प्रणव’ को उन्होंने अपना नया शागिर्द बनाया हुआ था ।

दुकान के काम को पूरा कर गंगा दास जी घर पहुँचे, जहाँ उनकी पत्नी उनके धैर्य की परीक्षा लेने को तैयार थी । पत्नी के व्यंग्य बाणों के साथ हुए गंगा दास जी के स्वागत का नजारा नया नहीं था परिवार वालों के लिए । जो समय का मोल नहीं समझते वो धन का मोल क्या जाने ? जिसे गृहलक्ष्मी की फ़िकर नहीं उसकी फ़िकर माँ लक्ष्मी भी नहीं करेगी । ये जुमले मानो हाजमा की गोली की तरह थाली के साथ ही परोसे जाते । उनका पहला निवाला कंठ उतरते ही उनकी पत्नी की थाली परोस दी जाती और फिर व्यंग बाणों का निशाना बदल जाता और रसोई घर में कार्यरत बहू और पतोहू की ओर मुड़ जाता । खाना खाने के बाद कुछ देर आराम की मुद्रा में लेटते ही उनकी आँख लग गई जो उनके छोटे पौत्र प्रणव की आवाज़ के साथ खुली । प्रणव एक सरकारी स्कूल में शारीरिक शिक्षक तो बन गया था लेकिन बचपन से ही खेलकूद में जो उसकी उसकी रुचि थी वह केवल विद्यालय की गतिविधियों से संतुष्ट नहीं हो पाती थी । वह कुछ बड़ा करना चाहता था । एक स्पोर्ट्स एकेडमी खोलना उसका सपना था और यह सपना आर्थिक संसाधनों की प्रचुरता से ही सम्भव हो सकता था । अपने दादा जी के व्यापारिक मार्गदर्शन से उसने यह समझा कि खिलाड़ियों की कुशलता उनके खेलकूद संबंधित उच्च गुणवत्ता वाले साधनों और उपकरणों से बढ़ जाती हैं, और साथ ही प्रशिक्षकों के लिए आय का एक वैकल्पिक साधन तैयार हो जाता है । वह खेल से संबंधित सामग्री का व्यापार करें तो उसके लिए बेहतर रहेगा । इसलिए अब वह खेल के सामान का भव्य स्टोर खोलने की तैयारी कर रहा है और इसीलिए व्यापार का “क ख ग” सीख रहा है । दादा जी ! मैं सोच रहा हूँ कि व्यापारिक कुशलता तो व्यापार करने पर अनुभव के साथ आएगी, पहला सवाल तो यह है कि व्यापार शुरू करने के लिए ‘पैसा’ आएगा कहाँ से ?

पोते के सवाल को सुन कर अनुभवी गंगा दास जी उसकी चिंता और उतावलापन दोनों को भाँप गए और मुस्कुरा कर बोले “बेटा ! धन अर्जित करने के लिए वैध साधनों में ‘व्यापार, वाणिज्य और पेशा’ सामान्य रूप से स्वीकृत माध्यम हैं । तीनों के स्वरूप, विशेषताएं, विधिक अनुपालन,और परिचालन की भिन्न-भिन्न पद्धतियां हैं” ।

गंगा दास जी बोलते गए प्रणव ध्यान लगा कर सुनता रहा और कुछ बाते अपनी डायरी में लिखता रहा । एक ज्ञान भरी पुस्तक मानो स्वर पा कर खुद बोल रहीं थीं गंगा दास जी के रूप में...

व्यापार में वस्तुओं के क्रय -विक्रय के जरिए लाभ कमाया जाता है, जहाँ खरीदी गई वस्तु को उसके क्रय-मूल्य से ज्यादा मूल्य पर बेचा जाता है, मूल्य का अन्तर "लाभ" कहलाता है, जितनी ज्यादा मात्रा और मूल्य में वस्तु बिकेगी, लाभ की मात्रा उतनी ही बढ़ेगी । कौन सी वस्तु का व्यापार किया जाए , किससे क्रय किया जाए और किस प्रकार उसे बाजार में बेचा जाए, व्यापार का निर्णय लेने वाले व्यक्तियों को इन्हीं प्रारम्भिक, परंतु महत्वपूर्ण प्रश्नों को हल करना होता है । व्यापार वही सफल होता है, जो लाभप्रद होने के साथ-साथ दीर्घकालीन जरूरतों को पूरा कर पाए । व्यापार करने की इच्छा-शक्ति और सफल व्यापार के बीच का सफर , कुशल प्रबंधन, श्रेष्ठ गुणवत्ता, प्रभावशाली निर्णय- शक्ति की सहायता से ही तय किया जा सकता है, पर व्यापार प्रारंभ करने के लिए भी कुछ धन की आवश्यकता होती हैं । व्यापार संबंधी विधिक औपचारिकताएं पूरी करने, स्थिर संपति तथा संस्थापन संबंधित खर्चो की पूर्ति हेतु जुटाया गया प्रारम्भिक धन “पूंजी” कहलाता है, जो व्यापारी के निजी दृष्टिकोण से एक निवेश है और लाभ के रूप में आवर्ती आय प्रदान करेगा । व्यापार को उसके स्वामी से अलग सत्ता मान कर व्यापार के नजरिए से देखा जाए तो पूंजी एक दायित्व हैं, जिस की कीमत ब्याज अथवा लाभांश के रूप में चुकानी होती हैं । माल के रूप में बेचने के लिए उत्पाद की व्यवस्था दो तरीके से की जा सकती है । प्रथम विकल्प है कि उसका किसी आपूर्ति-कर्ता से क्रय किया जाए अथवा दूसरा विकल्प है कि उसका निर्माण किया जाए । दोनों ही विधियों में कुछ प्रारम्भिक धन की आवश्यकता पड़ती है । व्यापार में वस्तुओं के साथ-साथ सेवाओं का भी आदान-प्रदान किया जा सकता है। आपूर्ति कर्ता से प्राप्त माल अथवा उपलब्ध करायी गयी सेवाओं को उपभोक्ता तक पहुंचाने में सहायक सेवाओं यथा साख, बैंकिंग, परिवहन, विपणन, विज्ञापन, बीमा, वित्तपोषण को “वाणिज्य” के अंतर्गत शामिल किया जाता है । मूलतः वाणिज्य का दायरा व्यापार शब्द की तुलना में कहीं ज्यादा व्यापक है, व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रदत सेवाएं वाणिज्य का आधार है । इनके लिए अनिवार्य विधिक आवश्यकताओं के अनुपालन तथा बेहतर निर्णयन के लिए परामर्श हेतु विषय-विशेष के मान्यता प्राप्त व्यक्ति जो "पेशेवर विशेषज्ञ " कहलाते है उनकी सहायता लेना अपेक्षित रहता है, सेवाओं के बदले उन्हें शुल्क चुकानी पड़ती है ।

क्या समझे प्रशिक्षक महोदय ! गंगा दास जी पानी की बोतल हाथ में लिए बोले ।

ज्ञान गंगा की तरंगों में लहरा रहा हूँ दादा जी...और क्या कहूँ मुस्कराते हुए प्रणव बोला...आप जारी रखिए ।

अब बात करें पेशे की यानी आपकी प्रशिक्षक साहब ! “पेशा” धनार्जन का वह रूप है जिसमें व्यक्ति किसी विषय विशेष का ज्ञान अर्जन करता है और उस विषय से संबंधित शीर्ष संस्था उसे प्रमाणित करती है और उस क्षेत्र में कार्य करने हेतु अनुमति पत्र यानी लाइसेंस प्रदान करती है । व्यापारी को सनदी लेखाकार अर्थात चार्टर्ड अकाउंटेंट, कंपनी-सचिव, वकील, ट्रेडमार्क एजेंट, बीमा एजेंट, पोर्टफोलियो मैनेजर इत्यादि विशेषज्ञों से परामर्श करना उचित रहता हैं । जैसे खेल के सामान की आवश्यकता और गुणवत्ता के लिए, खेल प्रशिक्षण के लिए “स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया” के द्वारा मान्यता प्राप्त कोच की परामर्श काम आएगी । यानी प्रणव महोदय आप एक पेशेवर व्यक्ति हैं, जो अपनी विशेषज्ञता के आधार पर आय का अर्जन करेंगे ।

दादा जी ! निष्कर्ष यही निकलता है कि पैसा कमाने के लिए भी, पूंजी के रुप में कुछ पैसे की व्यवस्था करनी पड़ती है । हम फिर से शून्य पर आ गए कि पैसा आएगा कहाँ से ?

अरे बेटा ! इसमें बैंक और निजी ऋणदाता सहायक होते है । जो एक निश्चित दर से ब्याज के बदले में साख सुविधा प्रदान करने है ।‘श्रेष्ठ निर्णय’ वही कहलाता है जो सुनियोजित एवं सुव्यवस्थित रूप से क्रियान्वित किया जाए । सफल व्यापार की आधारशिला इन्हीं निर्णयों की सफल श्रृंखला द्वारा रखी जाती हैं । जब धन की आवश्यकता का कुशल पूर्वानुमान लगा लिया जाता है, तब उसकी प्राप्ति के विभिन्न विकल्पों पर विचार किया जाता हैं । उपलब्ध विकल्पों पर विभिन्न तकनीकी विश्लेषण करने के बाद अनुकूल विकल्प का चयन किया जाता है । व्यापार को कोषों की आवश्यकता विभिन्न प्रक्रमो में अलग-अलग रूप में होती है । प्रारम्भिक कोष स्थिर सम्पति यथा कार्यालय, कारखाने, मशीन और संयंत्रों की प्राप्ति और उनके संस्थापन संबंधित खर्च के लिए जुटाए जाते हैं । व्यापार का पैमाना इस राशि का मुख्य आधार होता है । सूक्ष्म, लघु, कुटीर उद्योग और एकल व्यापार के लिए वृहत् उद्योगों की तुलना में कम वित्तीय संसाधनों की जरूरत होती हैं । दूसरी ओर अल्पकालीन वित्तीय आवश्यकताओं में कच्चे माल की खरीद, मजदूरी का भुगतान, किराया, टैक्स संबंधी दायित्व शामिल किए जाते हैं । जब व्यापार सफलता-पूर्वक संचालित होते हुए लाभप्रद सिद्ध हो जाता है तब व्यापार के विकास एवं वृद्धि के लिए कुछ वित्तीय संसाधनों की अतिरिक्त आवश्यकता पड़ती है । व्यापारी और उद्यमी आर्थिक सहायता या कोष प्राप्त करने के लिए जिन विकल्पों पर विचार कर सकते हैं, उनमें शामिल होते है:

निजी बचत और पारिवारिक कोष लगभग हर नया व्यापारिक उपक्रम अपनी शैशव अवस्था में निजी बचत, परिवार और मित्रों द्वारा दिए गए कोषों को प्राथमिकता देता हैं, इन्हें जल्दी वापस लौटाने की बाध्यता नहीं होती हैं , अतः दबाव शून्य होता है ।

बैंक ऋण

जब पारिवारिक संसाधनों का सहयोग नहीं मिल पाए अथवा पर्याप्त मात्रा में आर्थिक सहयोग मिले तो बैंक एक परिवार की भूमिका निभाते हैं, भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं के लिए भिन्न-भिन्न ऋण योजनाओं के जरिए व्यापार को शुरू करने, संचालित व्यापार को विकसित करने एवं वित्तीय संकट से उबरने में सहायता प्रदान करते हैं, जिसके बदले व्यापारी को तय दर से ब्याज का भुगतान करना होता है । हर बैंकिंग प्रतिष्ठान की ऋण संबंधित अनिवार्यता और अहर्ता अलग-अलग होती है । एकाकी व्यापार, साझेदारी संस्था, सीमित दायित्व साझेदारी, लघु-सूक्ष्म, कुटीर उद्योग, स्टार्ट-अप सब तरह के ग्राहकों के लिए योजनाएं उनकी क्षमता, लाभप्रदता, निवेश के आधार पर तय की जाती है ।

चालू खाता

व्यापार के आर्थिक लेन-देन में सहजता हेतु बैंक चालू खाता संचालित करने की सुविधा देते हैं जिसमें व्यापार संबंधी भुगतान और प्राप्ति करने पर कोई दैनिक सीमा नहीं होती । खाता धारक एक दिन में जितने चाहे नगद व्यवहार कर सकता है साथ ही इन खातों में अधिविकर्ष सुविधा भी दी जाती है, जहाँ यदि खाता धारक के खाता कोष कम होने पर भी बैंक उनके द्वारा दिए गए भुगतान आदेश को पूरा करते है, इस अधिविकर्ष राशि पर बैंक ब्याज वसूल करते हैं ।

सरकारी सहायता भी मिल जाती है, पढ़े लिखे हो ! जाओ बैंक में जा कर जानकारी प्राप्त करो की कौन सी वित्तीय सहयोग योजना खेल अकादमी स्थापित करने में सहयोगी हो सकती है । ये जो मोबाइल लिए घूमते हो दिन भर उसमे कसरत और खेलों की दुनिया के अलावा बहुत कुछ मिलता है । जरा देखो ! जानो..! समझो....! कहीं अपने पिता से सब जान समझ कर तो नहीं आ गए इस बूढ़े की परीक्षा लेने ?

आप भी ना दादा जी.....क्या-क्या सोच लेते है ?

तो क्या सोचूँ ये कि तेरी स्पोर्ट्स एकेडमी के प्रयोजक का नाम ‘गंगा स्टोर’ है .....भूल जाओ इस ख्वाब को..और सुनो ! क्लाउड किचन की सारी जानकारी लाने को कहा था तुम्हें उसका क्या हुआ...?

जाग गया ना आपके अंदर का व्यापारी लेन-देन , डेबिट-क्रेडिट बराबर ना हो… चैन नहीं है आपको मीठा उलाहना देते हुए प्रणव ने एक फाइल आगे रखी...ये लीजिए जानकारी ... भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण से पंजीकरण करना आवश्यक है, बाकी सब जानकारी है इस फ़ाइल में...क्या खाना भी डिलीवरी करेंगे अब हम दुकान से ?

हाँ...! एक स्टार्ट-अप को प्रायोजित करने का निर्णय किया है, शादी से पहले तेरी पत्नी अपने पिता के रेस्तरां में हाथ बंटाती थी...और शादी के बाद अपने हुनर को भूल कर तेरा परिवार सम्हाल रही हैं । अपने सपनों की उड़ान भरने के लिए उसके बलिदान को नजरंदाज करने की गलती मत कर...। इस जन्मदिन पर उसे वजन घटाने के उपदेश देने के साथ साथ-साथ परिवार सम्हालने के लिए धन्यवाद भी दे देना । रहीं बात हम बूढ़ा-बूढ़ी की तो हम तो उसे हमारे “बेकरी” व्यवसाय का साझेदार बना रहे हैं, उपहार के तौर पर ... गंगा दास जी बोले।

प्रणव को समझ ही नहीं आया कि कैसे प्रतिक्रिया दे, तभी ! उसकी दादी जी ने एक विज्ञापन का पर्चा उसके हाथ में थमाया जिस पर लिखा था “गंगा-बेकर्स” शुद्ध शाकाहारी बेकरी ।

जो गृहलक्ष्मी की कदर नहीं करते, उनकी कदर माँ लक्ष्मी भी नहीं करती...! उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उसकी दादी ने समझाया ।

प्रणव को समझ ही नहीं आया वो किसकी वाहवाही करें ? व्यापारी गंगा दास की या सद् व्यवहारी गंगा दास की..।

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