जीवन के है खेल निराले,
भाँति-भाँति किरदार यहाँ पर,
कुछ चतुर, चपल कुछ सीधे साधे,
नित नए नवेली रीति बनतीं,
नए कायदे नए लोग सिखाते।
कोई बोले कोयल सा मीठा,
कोई कसैला स्वाद चखाये,
कोई धीर, वीर, गंभीर यहाँ,
कोई त्यौरियां पल में चढ़ाए।
कहीं धन-सत्ता का गौरव झलके,
कहीं गरीबी दामन फैलाये,
कहीं सजे जिंदादिल महफ़िल,
कोई अकेला नीर बहाये।
कोई करें विश्वास प्रभु पर,
कोई मिथ्या उन्हें बताए,
कोई रही संयम-पथ का,
कोई भोगी मौज उड़ाए।
कहीं निवाला एक ही काफी,
मन भर राशन कहीं कम पड़ जाए,
कोई परिश्रम कड़ा कर रहा,
कोई आलसी बस सोये-खाए।
एक बात है साझी सब में
सब के लिए जगत “सराय”,
समय की चक्की चलती रहती
उमर का दाना पिसता जाए।
कोई आता घड़ी दो घड़ी को,
किसी को अस्सी बसंत दिख जाए,
किसी को अपने लोग ही भूले,
कोई अपना नाम अमर कर जाये।