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जूही ...!
काढ़ा नहीं पिया अभी तक...अरे मेरी गुडिया रानी दवा नहीं लोगी तो आराम कैसे आएगा ?
तुलसी और नीम की पतियों को पीस कर उसमें अदरक का रस मिलाया है, इससे जुकाम तो दूर होगा ही साथ ही खून भी साफ़ हो जाएगा ..|
पी लो ना मेरी रानी बिटिया ! तुम्हें कड़वा ना लगे इसलिए इसमें थोड़ी सी मिश्री भी मिला दी है |
हां अम्मा पी रही हूँ... ‘डॉक्टर तुलसी देवी’ उर्फ़ दादी की बनायीं हुई ये कडवी दवा , पर जरा बताना तो कौन सी युनिवर्सिटी से डिग्री ली है आप की सासु माँ ने, जो हर बीमारी की सटीक दवा बता देती है |
मुहासों के लिए चन्दन का लेप, माहवारी की समस्या तो अजवाइन का काढ़ा, पेट दर्द हुआ तो नाभि पर हींग का लेप, पैरो में जलन तो तलवों में घी की मालिश ... कमाल है दुनिया चाँद पर पहुँच गई , पर हम आज भी उन्हीं घरेलू नुस्खों में उलझे है | पलाश को भेजा है ना मैंने दवा लाने उसे लेते ही चंद मिनटों में आराम आ जाएगा | जूही ने झुंझलाते हुए बोला |
“काढ़ा भी आराम ही देगा पर तब जब उसे पी कर कम्बल में छिप कर कुछ देर आराम करोगी फिर आ जाना युनिवर्सिटी और कालेज सब का परिचय मिल जाएगा तुमको ..” आंगन में से भीतर आती हुई जूही की दादी तुलसी देवी की दमदार आवाज सुनाई दी तो ‘अपर्णा’ जूही की माँ मुसकुराते हुए घर में बने पूजा घर की तरफ चल पड़ी |
ये है दर्द निवारक दवा जो, पलाश ने दी है मुझे ...पर यह तुम्हें तभी मिलेगी जब यह काढ़ा बेअसर साबित हो जाएगा | ओह... अपने नुस्खे पर बड़ा भरोसा है आपको दादी माँ! अपनी नाक को पोंछते हुए जूही के स्वर में एक शिकायत सी थी जिसे उसकी दादी ने प्यार से सिर पर हाथ फेर कर मिटा दिया और काढ़े का गिलास उसे थमा कर पीने को विवश किया | जब जूही ने काढ़ा पी लिया तो उसे पास ही के पलंग पर लिटा कर; तुलसी देवी उसके सिर को प्यार से थपथपाने लगी , अब जब बच्चा बना ही दिया है तो लोरी भी सूना दीजिये ...नींद आ जाए..जूही की आवाज़ में शरारत और विनय के मिश्रत भाव थे |
काहे की लोरी कोई दूधमुही बच्ची हो क्या? कुछ ही दिनों में दसवी का परिणाम आ जाएगा ...|
अरे मुझे ना सही; मंदिर में बिराजे आप के कान्हा जी के लिए तो गा दीजिये कुछ ....प्लीज दादी ...अब देर मत करिये, ठाकुर जी इंतजार कर रहे है |
नटखट जूही के आग्रह को उसकी दादी टाल नहीं पायी और मंद स्वर में गुनगुनाने लगी...
“ किशन कन्हैया सो जा ..मुरली बजैय्या सो जा ...
सोने की कटोरी में गौ का दूध चढ़ाऊँ...पय को पान कराऊँ...
मोहन को सुलाऊँ ... लाला को झुलाऊँ....मीठी नींद सुलाऊँ...”
लोरी के स्वर के साथ जूही और मंदिर के किवाड़ बंद होते ही ठाकुर जी भी चैन भरी नींद में सो गए |
कुछ ही घंटों बाद जूही की आँख खुली और आश्चर्य से चौड़ी भी हो गई ...चारों तरफ पेड़ पौधे ...हरियाली ...झरना.....और कलरव करते पक्षी ....किसी परी कथा की पृष्ठभूमि मानो तैयार की गई हो ...यही सब सोचते हुए वह आगे बढ़ ही रही थी की किसी को देखकर उसके चेहरे पर हैरानी और मुस्कराहट के मिश्रित भाव आ गए | फूलों से बनी पोशाक और आभूषण पहने किसी परी कथा की नायिका जैसी एक स्त्री उसकी और देख कर मुसकुरा रही थी |
आओ जूही ..! मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रही थी ...कैसा लग रहा है अब ? कुछ सुधार हुआ स्वास्थ्य में ?
हां कुछ बेहतर महसूस हो रहा है ...खुद को सहज करने का प्रयास करती हुई जूही ने जबाव दिया |
उसकी आँखों में उभरे प्रश्नों को भांपते हुए वह स्त्री बोली , यही सोच रही हो ना कि मैं कौन हूँ और तुम्हें कैसे जानती हूँ ?
हां! मतलब कुछ ऐसा ही ....जूही के होंठों से उभरे धीमे स्वर को सुन कर वह स्त्री, उसे प्यार से बोली
“डरो मत जूही ! तुम मुझे अपना दोस्त मान सकती हो | यह लो! तुम्हारे लिए मेरी ओर से एक छोटा सा उपहार “ अपने हाथ को हवा में लहराते हुए उसने एक खूबसूरत सा फूलों का गुलदस्ता प्रकट किया और जूही को दे दिया |
धन्यवाद...! यह बहुत सुन्दर है ...पर फूलों के साथ यह पत्ते ...?
ये पत्ते अजवाइन के पौधे के है ...इन्हें जब भी अपनी नाक के करीब लेकर जाओगी राहत महसूस करोगी ...इनकी खुशबू बंद नाक को खोल देती है.. उस स्त्री ने कहा |
हां ...काफी तेज़ गंध है पर सूंघ कर राहत महसूस हो रही है , जूही ने उसकी बात का अनुमोदन किया |
तुम्हारी दादी और मैं शायद एक ही विश्वविद्यालय में पढ़े है .... “प्रकृति के विश्वविद्यालय” में ...और यह पूरी दुनिया उसके पाठ्यक्रम में आती है | जो जितना समय और विश्वास प्रकृति को देता है, वह अपनी शिक्षा में उतना ही प्रवीण होता जाता है | दुनिया जिस चाँद पर विज्ञान के माध्यम से पहुंची है, वह चंद्रमा भी उसी प्रकृति का एक हिस्सा है, यहाँ तक की आधुनिक दवाओं का आधार भी यही प्राकृतिक संसाधन और रसायन होते है |
अच्छा...! तुम्हें मेरी भाषा समझ तो आ रही है ना ...?
हां हां! माय हिंदी इज वैरी गुड, मतलब मुझे समझ आ रहा है ...सिर को हिलाते हुए उस स्त्री के प्रश्न का उत्तर देते हुए जूही बोली |
ओ दैट इज ग्रेट...! वरना मुझे लगा की मुझे तुमको प्रकृति का मतलब “नेचर” कह कर समझाना होगा |
“मदर नेचर”... जोर दे कर जूही ने उसके संबोधन को सुधारने का मानो निर्देश दिया |
क्या कहा तुमने ?
नेचर इस नॉट जस्ट नेचर, इट इज मदर नेचर |
माफ़ करियेगा...अगर मेरा लहजा आपको अभद्र लगा हो तो पर सही को सही और गलत को गलत स्पष्ट रूप से कहना मुझे पसंद है और अब जब आप और मैं दोस्त बन ही गए है तो मेरी ड्यूटी है की आप को यह बता दिया जाए कि प्रकृति को लेकर किया गया आपका संबोधन उचित नहीं था | प्रकृति का सम्मान करना हमें हमारे स्कूल और घर दोनों में ही सिखाया गया है, तो मात्र प्रकृति नहीं “माता प्रकृति” ऐसा बोलते है |
ओह जूही...! खुश रहो मेरी बच्ची...! अचानक से उस स्त्री की आँखों में वात्सल्य उमड़ आया | मुझे नहीं मालूम था की तुम इतने आदर से मुझे पुकारोगी , उसने प्यार से उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा |
मतलब ?
आप मदर नेचर हो ?
पर कैसे ...?
जूही की आँखें और चौड़ी हो गई |
क्यों...? पहाड़, नदी, वन, झरने समंदर इसी रूप में मुझे दिखना चाहिये..?
नहीं...मेरा वो मतलब नहीं था पर...पर आपके इंसान जैसे दिखने की कल्पना मैंने कभी नहीं की थी, जूही समझ ही नहीं पा रही थी कि उसके साथ हो क्या रहा है | छोटे भाई बहनों की टीचर को मदर टीचर का संबोधन पाते हुए उसने देखा था और वही जुमला अपनी नयी दोस्त को प्रभावित करने के लिए प्रयोग किया था | यह मुझे हिंदी को लेकर ताना मारे तो मैं क्यों चुप रहू , पर यह तो खुद ही मदर नेचर निकल गयी | ओह कान्हा जी बचा लो मुझ मासूम को, किस चक्कर में फंस गयी हूँ मैं | मन ही मन खुद से बाते करते हुए वह सोच रही थी की क्या मदर नेचर सच में औरत जैसी होती है ?
हां होती है | देखो मैं यहाँ तुम्हारे सामने खड़ी हूँ और ख़ास तुमसे मिलने के लिए आई हूँ ...वह स्त्री मानो जूही का मन पढ़ती हुई बोल पड़ी | इंसान का शरीर जिन पांच तत्वों को मिल कर बनता है वे भी मेरे ही अंग है | जब शरीर का साथ छूटता है तो यह घटक वापस मुझी में मिल जाते है, दाह संस्कार किया तो राख के रूप में और दफनाया तो मिट्टी के जरिये, पर मैं तुमसे इस चर्चा के लिए मिलने नहीं आई हूँ, बल्कि हमारी बातचीत का विषय कुछ ओर होगा |
क्या ?
तुम्हे समझ आ जाएगा की हम क्यों मिल रहे है, पर पहले तुम ये बताओ की तुम्हारी सबसे पसंदीदा सब्जी कौन सी है ?
पालक-पनीर जूही ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया |
तुम्हारा पसंदीदा फूल ? जूही ...मेरे नाम वाला ..,
पसंदीदा इंसान ? मेरे पापा ...ही इज द बेस्ट ....बातचीत के दौरान जूही की सहजता बढती जा रही थी |
क्या तुम कुछ या किसी एक भी वनस्पति के बारे में जानकारी दे सकती हो जो दैनिक जीवन में तुम्हारे काम आ सकती है |
हां हां क्यों नहीं...वैसे तो हम शाकाहारी लोगो का पूरा भोजन ही वनस्पतियों से प्राप्त होता है, पर उनमे से अगर एक एसी वनस्पति जो सबसे निकट है और जो रोज़ काम आये तो पहला नाम आता है “तुलसी” का |तुलसी का पौधा हर उस घर में पाया जाता है, जो सनातन धर्म के अनुयायी है | हमारे घर के हर सदस्य की दैनिक दिनचर्या का हिस्सा है, तुलसी जी को जल चढाना ...|
परन्तु ये तो कोई उपयोग नहीं हुआ , काम क्या आया तुलसी का पौधा तुम्हारे ?
बहुत काम आता है, हमारे कान्हा जी बिना तुलसी-पत्र के भोग नहीं स्वीकार करते, उन्हें बेहद प्रिय है तुलसी और जब कोई बीमार पड़ता है तो दादी तुलसी के पत्तों का काढ़ा बना कर देती है, धीमे ही सही पर सर्दी जुकाम में काम आता है , अब देखिये कल मुझे दिया था आज कुछ राहत महसूस हो रही है |जब कोई शाखा सूख जाती है तो दादी उसकी लकड़ी को मंदिर में दे देती है | लोगो के अंतिम संस्कार में तुलसी की लकड़ी का प्रयोग किया जाये तो उन्हें वैकुण्ठ की प्राप्ति होती है, ऐसा दादी बोलती है, उनकी तो जप माला भी तुलसी की लकड़ी से बनी है |
वैकुण्ठ क्या सच में होता है ? उस स्त्री ने जूही के मन को टटोलते हुए पुछा |
इसका जबाव तो कान्हा जी ही दे सकते है, कौन जाने आपकी तरह वो भी मुझसे मिलने आ जाए कभी , बोलते हुए खिलखिला पड़ी जूही |
उसकी आंखों में झलकती शरारत को देख कर प्रकृति मुसकुरा दी और फिर विस्मयकारी भावों से उसकी आँखों में झांक कर पूछने लगी |
क्या तुमने कभी ये सोचा है की कान्हा जी को तुलसी ही क्यों प्रिय है ...या फिर ये की तुलसी का पौधा हर घर में अमूमन क्यों पाया जाता है ?
क्यों हर एक ईश्वर का स्वरूप किसी ख़ास तरह की वनस्पति और पशु से प्रेम करता है |? जैसे कान्हा जी की तुलसी और गाय , शंकर जी के नंदी और बेल पत्र , गणेश जी के मूषक और दूर्वा, लक्ष्मी जी का कमल और उल्लू ....क्यों देवी देवताओं को वृक्षों से जोड़ा जाता है ?
केले और पीपल में नारायण और वटवृक्ष में ब्रह्मा का वास ....एसी बातों में कोई वैज्ञानिक प्रमाण मिलता भी है या नहीं ?
मुद्दे की बात तो कर नहीं रही है और सवाल पर सवाल पूछे जा रही है ...मदर नेचर मानो सामाजिक विज्ञान का प्रश्न पत्र याद कर के आई है खैर..!
मन के भावो को छिपा कर अपने आपको सवालो से बचाने के लिए गंभीर बनने का अभिनय करती हुई जूही ने उत्तर दिया ,
काफी गम्भीर और जटिल प्रश्न पूछ लिया आपने ....मेरी समझ के दायरे से बाहर है इसका जबाव और मेरे घर में यदि इस तरह के प्रश्न पूछने का कोई प्रयास करता तो दादी माँ संस्कारों के बिगड़ने का दोष दे देती और ईश्वर के अनादर का डर दिखा कर तुरंत चुप करा देती |
ईश्वर के नाराज़ होने से क्या होता है ? प्रकृति के प्रश्न जारी रहे |
प्रलय...महाप्रलय आ जाती है, आँखों को मटकाते हुए, डरावना चेहरा बना कर जूही ने उतर दिया |
पानी में धरती डूब सकती है, वनों में आग लग सकती है, हाथों को लहरा का वह बोलती जा रही थी |
आपको पता है ...जब कभी भी भूकंप, बाढ़, या फिर वनों में आग और अकाल की खबर सुनने को मिलती है दादी के हिसाब से ईश्वर की नाराजगी ही मनुष्यों पर प्राकृतिक आपदाओं के रूप में सामने आई होती है | दुनिया भर के वैज्ञानिकों के हिसाब से कोरोना वायरस होगा ..पर हमारी दादी के हिसाब से तो वह ईश्वर का प्रकोप ही था |
काफी अन्ध-विश्वासी है तुम्हारी दादी ...?
प्रकृति की प्रतिक्रिया पर अपनी दुविधा प्रकट करते हुए जूही ने कहा लगता तो मुझे भी ऐसा ही है पर यह बात खुले आम बोल नहीं सकते | इसके दो कारण है, पहला कारण इमोशनल जो है दादी की नाराजगी, दादी जो मेरे पापा के लिए ईश्वर ही है और उन्हें मैं हर्ट नहीं कर सकती | दूसरा कारण इमोशनल नहीं लॉजिकल है ...जब तक धर्म का सही अध्ययन ना हो उसका खंडन करने का कोई अधिकार नहीं है मुझे |
अरे वाह ! काफी उच्च विचार है तुम्हारे ...प्रकृति व्यंगात्मक लहजे में मुसकुराई |
अ..अ.. मेरे नहीं मेरे माँ-पापा के ऐसे विचार है , मेरे विचार से तो मरने के बाद मिलने वाला वैकुण्ठ और धार्मिक ग्रंथों में वर्णित वैकुण्ठ एक जैसा है, यह बात कौन साबित कर सकता है, कोई नहीं |
शायद तुम्हारे कान्हा जी ...! प्रकृति रहस्यमय रूप से बोली,
काफी... वैज्ञानिक विचारधारा वाले है वे, तभी तो पसंदीदा पौधे के रूप में उन्होंने तुलसी जैसी वनस्पति का चयन किया |
तुम्हे पता है, तुलसी को वानस्पतिक जगत में एक सुघंधित औषधि के रूप में जाना जाता है | इसका औषधीय नाम “ओसिसम सैकटम” है | आयुर्वेद में भी इसका उपयोग औषधि के रूप में ही किया जाता है | भगवान् विष्णु की प्रिय होने के कारण इसे विष्णुप्रिया नाम भी दिया गया है | उनके दो अवतारों का स्मरण कराती हुई यह तुलसी मुख्य रूप से दो प्रकार की पायी जाती है | पहली जिसके पत्ते हरे हो वह “राम तुलसी” और दूसरी जिसकी पत्तिया कुछ हल्का काला या श्याम रंग लिए होती है उसे “कृष्ण तुलसी” कहा जाता है |
सर्दी खांसी के इलाज, सिरदर्द के उपचार पेट से जुडी समस्याओ के निराकरण और सौन्दर्य के निखार में भी इसका उपयोग सदियों से किया जाता रहा है |
एक ओर प्रकृति बोलती जा रही थी वहीं दूसरी ओर एक अच्छे श्रोता का अभिनय करती हुई जूही अपने मन में कुछ और ही सोच रही थी |
ये लो ....मदर नेचर भी दादी की टीम की लगती है, मेडिकल फ़ील्ड में तुलसी का प्रयोग तो ऐसे बता रही है मानो तुलसी पर खुद रिसर्च करी हो इन्होने.....
जूही के मन को पढ़ते हुए प्रकृति बोली रिसर्च तो बहुत हुए है मेरी बच्ची !
पर अफ़सोस ! विश्वगुरु का दर्जा रखने वाले भारत देश की वर्तमान पीढ़ी अपने ही देश के अनुसंधानकर्ताओं को तब तक महत्त्व नहीं देती जब तक विदेशी उनका अनुमोदन ना कर दे | एक ओर वन देवी और प्रकृति रुपी नायिका और वैकुण्ठ का वर्णन काल्पनिक लगता है तुम्हें वही दूसरी ओर दुनिया के रखवाले सुपर हीरो की फिल्मे और परी कथाये , डरावने जानवर की कहानिया और जादूगर जो एक कहानी के पात्र है उनसे जुड़े कार्यक्रम बेहद रुचिकर लगते है तुम्हें | मोबाईल फोन में चित्र को परिवर्तित करने वाली तकनीक का तो तुमने कभी खंडन नहीं किया | जो जैसा है वो वैसा ही दिखना चाहिये, फिर अपने चेहरे के मुहासों के दाग छिपा कर अपना जो छाया-चित्र तुमने अपनी सहेलियों को दिखा कर झूठी वाहवाही लूटी , क्या वह दिखावा और दोगला पन नहीं है , कभी तुम्हारे मन में यह प्रश्न क्यों नहीं उठा की जिस नकली तस्वीर को तुम असली बता कर वाहवाही लूटने का प्रयास कर रही हो और जिनका तुम अनुसरण करने का प्रयास कर रही हो , चलचित्र की वे नायिकाये भी उन्हीं तकनीकों के प्रयोग से सुंदर दिखाई देती है | असल जीवन में उन्हें भी झाइओ , मुहासों और रूखी त्वचा जैसी आम प्राकृतिक समस्याएं होती है | रंग को मिनटों में गोरा करने वाला रासायनिक लेप लगाने से जो तुम्हारी त्वचा पर दाने निकले थे और उनसे हुई जलन को मिटने के लिए जब तुम्हारी माँ ने हल्दी, चन्दन और मुलतानी मिट्टी का लेप लगाया तो तुम्हें आराम मिला पर तुमने उन्हें धन्यवाद तक नहीं कहा और विज्ञापन में दिखाए गए महंगे फेसपैक को खरीदा , क्या उस कम्पनी से तुम्हें कोई गारंटी या रिसर्च रिपोर्ट मिली थी |
उन को लाइसेंस मिलता है तभी वो ऐसे उत्पाद बना सकते है , जूही ने पलट कर जबाव दिया |
सही कहा पर सच सच बताओ क्या कभी तुमने उनके घटक ईमानदारी से जांचे नहीं ....ऐसा तुमने कभी नहीं किया | तुम्हारी मदद के लिए मैं तुम्हें बताती हूँ की उनका भी आधार इन्हीं प्राकृतिक वस्तुओं से बनाया जाता है और फिर उन्हें जटिल वानस्पतिक और रासायनिक नाम के साथ लेबल किया जाता है ताकि ... तुम जैसे लोग गुमराह हो जाए और उन उत्पादों को खरीद ले |घर का जोगी जोगना और बाहर गाव का सिद्ध ...यह कहावत सच साबित हो रही है तुम भारत वर्ष के लोगो के लिए | पश्चिम इनका अनुकरण कर योग और आयुर्वेद की तरफ आकर्षित हो रहा है और यह लोग अपने ही पूर्वजो के वैज्ञानिक अनुसंधानों के बारे में ना तो जानते है और ना ही इनकी रुचि है | आभासी दुनिया के मकडजाल में उलझ गई है युवा पीढी | प्रकृति मानो खुद से ही बातेंकर रही हो |
मुझे समझ नहीं आ रही आपकी बाते ...जूही ने अपने अबोध मन की बात स्पष्ट रूप से कही और उसकी बात सुन कर प्रकृति भी अपने विचारों से मानो बाहर आयी और बोली |
हर आविष्कार किसी ना किसी समस्या के समाधान की प्रकिया का परिणाम होता है , जब भी कोई वस्तु या तकनीक हाथ में आ जाये तो भावी परिणाम इस बात पर निर्भर करता है की व्यक्ति उसका प्रयोग किस मानसिकता के साथ करता है | जो समाज के हितार्थ उपयोग हो वह सदुपयोग और जो समय, समाज और धन भी की हानि करे वह दुरुपयोग कहलाता है | मेरी बच्ची हमेशा यह प्रयास करना की जीवन में तुम्हारा उदेश्य सृजनात्मक और सही मार्ग पर ध्यान देने वाला हो ना की इस बात पर की लोग तुम्हे ज्ञानी और सफल समझे | अपने चयन पर ध्यान दो , जैसा चुनोगी वैसी बनोगी | चयन चाहे मित्र का हो, विषय का हो फिर भोजन का हो ....सोच समझ कर निर्णय लेना |
अचानक से तेज़ हवा का झोंका आया और प्रकृति गायब हो गई और...तभी जूही के कानो में उसके भाई पलाश की आवाज़ गूंजी |
अरे निंद्रा-लोक की राजकुमारी , कृपया धरती लोक के जीवो से भी वार्तालाप कर लीजिये , हे देवी! उठिए !जागिये !
आँखे खुलने पर उसने देखा की पलाश साथ साथ उसकी दादी और माँ सभी उसे देख कर हंस रहे है | ओहो तो क्या आज भी मैं नींद में बडबडा रही थी |
क्या सुना तुमने ....शर्माते हुए जूही ने पलाश से पुछा | समझ तो कुछ नहीं आया पर ख़ुफ़िया मीटिग थी ये पक्का है और तुम तो सीधे आसमानी फरिश्तों से बाते करती हो | तो क्या तय हुआ हम धरती वासी सुरक्षित तो है ? कोई आक्रमण तो नहीं हो रहा हमारे ग्रह पर , जिससे इस दुनिया को बचाने का जिम्मा लिया है वंडर वूमन जूही ने...!
भाई के इस उपहास पर भी जूही ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और मुस्कुराते हुए बोली, “तुम्हारा ग्रह सुरक्षित है वत्स ! हम भारत के युवा उसकी रक्षा करेंगे |”
आपका काढ़ा कमाल का था दादी मुझे बेहतर लग रहा है, थैंक यू ! दादी से लिपटते हुए जूही बोली |
तो इसका मतलब आज रात बिना नखरे किये पी लोगी ना काढ़ा , तीन दिन तक लेना है लगातार उसकी दादी बोली |
हां हां पक्का |
एक जरूरी घोषणा और भी है ! मैने अपने विषय का चयन कर लिया है मैं वनस्पति शास्त्र अर्थात बाटनी का अध्ययन कर के वैज्ञानिक बनूगी , जूही ने अपने विचार घरवालो को बताये |
इतनी भी क्या जल्दी है ....कुछ सपने और देख लो क्या पता, कल सपने में विश्वकर्मा जी आ जाए ..और तुम्हारा चयन वास्तु विज्ञान की तरफ मुड़ जाए , जेसे आज प्रकृति देवी मिली वैसे ही और भी एक्सपर्ट है सनातन संस्कृति में ...उसका भाई पलाश बोला |
क्या कहा तुमने ?
कुछ खास नहीं ...बस मदर नेचर सिर्फ अकेली नहीं है उनके साथ पूरी सबल और कर्मठ टीम है , जैसे मेडिसिन डिपार्टमेंट के हेड धन्वन्तरी भगवान्, उनके साथी अश्वनी कुमार, वाटर डिपार्टमेंट के चीफ वरुण देवता , एयर डिपार्टमेंट के कंट्रोलर पवन देव, एग्रीकल्चर और कल्टीवेशन के साथ साथ एडमिनिस्ट्रेशन की जिमेदारी इन्द्र देवता पर है और भी जो नयी जिमेदारिया समय के साथ आती है उन्हें वे ही सँभालते है और हां टाइम मैनेजमेंट और डिसिप्लिन का सबक सूर्य देवता से ले सकती हो , वो कभी लेट नहीं होते | ये सब जानना जरूरी है आपको जूही जी , जाने कब किस से आपको बात करनी पड़ जाए , पलाश हँसते हुए कहा |
इसका मतलब जब मैं नींद में बोल रही थी तो तुम मेरी बाते सुन रहे थे...हां कुछ कुछ सुना बाकी पूरा का पूरा प्रसारण नहीं सुन पाया , जूही के सवाल पर उसे चिढाते हुए पलाश ने उतर दिया |
ये गलत बात है ! प्राइवेसी नाम की भी कोई चीज होती है की नहीं ?जूही की शिकायत पूरी हुई भी नहीं थी की बीच में ही उसकी बात काटते हुए पलाश बोला
और हां सुनो...! वैकुण्ठ का तो पता नहीं... पर हां इन दिनों एक ग्रन्थ पढ़ रहा हूँ जिसका नाम है “आनंद रामायण” उसमे श्री राम जी के सिविल और आर्म्स मैनेजमेंट की डिटेल्स के साथ साथ पुष्पक विमान की यांत्रिक विशेषताये यानी की मैकेनिकल स्पेसिफिकेशन इतनी अच्छी तरह से दी गई है, जिसे पढ़ कर एक सुपर स्पेशल एयर क्राफ्ट की डिजाईन मानो आँखों के सामने आ जाती है, वरना पहले तो पुष्पक विमान का जिक्र मुझे एक जादुई विमान जैसा लगता था , पर इस किताब को पढ़ कर उस समय के मेकेनिक्स और इस किताब के लेखक के लिए भी सम्मान का भाव आ गया है | कितना सुक्ष्म वर्णन किया है उन्होंने अद्भुत ...! मुझे लगता है की “तुलसी देवी पुस्तक भण्डार” यानी दादी के कमरे की किताबो से मुझे आमन्त्रण मिल रहा है उनमे बसे ज्ञान अमृत को चखने का | तुम भी इस दावत में शामिल हो सकती हो अगर तुम चाहो तो |
नेकी और पूछ-पूछ...जब तक जानेगे नहीं तब तक मानेगे नहीं , मिशन का पहला पड़ाव “स्वदेशी साहित्य का अध्ययन” आज से ही शुरू किया जा रहा है ...टन..टना ...जूही ने बिगुल बजाने का अभिनय किया |
खबरदार! जो किसी भी किताब का बेतरतीब तरीके से इधर-उधर रखा तो, गन्थ ईश्वर की वान्ग्मयी मूर्ति होते है, उनकी भी अपनी मर्यादा होती है, उसका पालन जरूरी है, समझे !...तुलसी देवी के निर्देश को दोनों ने ध्यान से सुना और एक साथ अपने अपने फोन पर सर्च करने लगे...व्हाट डज वान्ग्मयी मीन इन हिंदी ...और इंटरनेट ज्ञानेश्वरी बोल उठी ...वान्ग्मयी मीन्स रिलेटेड टू लिटरेचर ....
ये लो ! ईश्वर का शाब्दिक रूप, ग्रन्थ.....यानी सृष्टि की हर चीज में परमात्मा है पेड़ के रूप में, अन्न के रूप में, गहनों के रूप में , पशु पक्षियों के रूप में...हर चीज को भगवान् से इस लिए जोड़ दिया गया होगा की इंसान उनके प्रति थोडा जिम्मेदार और सावधान हो जाए...तुम्हे क्या लगता है पलाश ?
शायद हां.....दोनों भाई-बहनों की बातो में तर्क-वितर्क चल रहे थे और मंद मंद चलती हवा के साथ आँगन में लगा तुलसी का बिरवा झूम रहा था ...मानो प्रकृति अपने उदेश्य में सफल हो गई हो |काढ़ा नहीं पिया अभी तक...अरे मेरी गुडिया रानी दवा नहीं लोगी तो आराम कैसे आएगा ?
तुलसी और नीम की पतियों को पीस कर उसमें अदरक का रस मिलाया है, इससे जुकाम तो दूर होगा ही साथ ही खून भी साफ़ हो जाएगा ..|
पी लो ना मेरी रानी बिटिया ! तुम्हें कड़वा ना लगे इसलिए इसमें थोड़ी सी मिश्री भी मिला दी है |
हां अम्मा पी रही हूँ... ‘डॉक्टर तुलसी देवी’ उर्फ़ दादी की बनायीं हुई ये कडवी दवा , पर जरा बताना तो कौन सी युनिवर्सिटी से डिग्री ली है आप की सासु माँ ने, जो हर बीमारी की सटीक दवा बता देती है |
मुहासों के लिए चन्दन का लेप, माहवारी की समस्या तो अजवाइन का काढ़ा, पेट दर्द हुआ तो नाभि पर हींग का लेप, पैरो में जलन तो तलवों में घी की मालिश ... कमाल है दुनिया चाँद पर पहुँच गई , पर हम आज भी उन्हीं घरेलू नुस्खों में उलझे है | पलाश को भेजा है ना मैंने दवा लाने उसे लेते ही चंद मिनटों में आराम आ जाएगा | जूही ने झुंझलाते हुए बोला |
“काढ़ा भी आराम ही देगा पर तब जब उसे पी कर कम्बल में छिप कर कुछ देर आराम करोगी फिर आ जाना युनिवर्सिटी और कालेज सब का परिचय मिल जाएगा तुमको ..” आंगन में से भीतर आती हुई जूही की दादी तुलसी देवी की दमदार आवाज सुनाई दी तो ‘अपर्णा’ जूही की माँ मुसकुराते हुए घर में बने पूजा घर की तरफ चल पड़ी |
ये है दर्द निवारक दवा जो, पलाश ने दी है मुझे ...पर यह तुम्हें तभी मिलेगी जब यह काढ़ा बेअसर साबित हो जाएगा | ओह... अपने नुस्खे पर बड़ा भरोसा है आपको दादी माँ! अपनी नाक को पोंछते हुए जूही के स्वर में एक शिकायत सी थी जिसे उसकी दादी ने प्यार से सिर पर हाथ फेर कर मिटा दिया और काढ़े का गिलास उसे थमा कर पीने को विवश किया | जब जूही ने काढ़ा पी लिया तो उसे पास ही के पलंग पर लिटा कर; तुलसी देवी उसके सिर को प्यार से थपथपाने लगी , अब जब बच्चा बना ही दिया है तो लोरी भी सूना दीजिये ...नींद आ जाए..जूही की आवाज़ में शरारत और विनय के मिश्रत भाव थे |
काहे की लोरी कोई दूधमुही बच्ची हो क्या? कुछ ही दिनों में दसवी का परिणाम आ जाएगा ...|
अरे मुझे ना सही; मंदिर में बिराजे आप के कान्हा जी के लिए तो गा दीजिये कुछ ....प्लीज दादी ...अब देर मत करिये, ठाकुर जी इंतजार कर रहे है |
नटखट जूही के आग्रह को उसकी दादी टाल नहीं पायी और मंद स्वर में गुनगुनाने लगी...
“ किशन कन्हैया सो जा ..मुरली बजैय्या सो जा ...
सोने की कटोरी में गौ का दूध चढ़ाऊँ...पय को पान कराऊँ...
मोहन को सुलाऊँ ... लाला को झुलाऊँ....मीठी नींद सुलाऊँ...”
लोरी के स्वर के साथ जूही और मंदिर के किवाड़ बंद होते ही ठाकुर जी भी चैन भरी नींद में सो गए |
कुछ ही घंटों बाद जूही की आँख खुली और आश्चर्य से चौड़ी भी हो गई ...चारों तरफ पेड़ पौधे ...हरियाली ...झरना.....और कलरव करते पक्षी ....किसी परी कथा की पृष्ठभूमि मानो तैयार की गई हो ...यही सब सोचते हुए वह आगे बढ़ ही रही थी की किसी को देखकर उसके चेहरे पर हैरानी और मुस्कराहट के मिश्रित भाव आ गए | फूलों से बनी पोशाक और आभूषण पहने किसी परी कथा की नायिका जैसी एक स्त्री उसकी और देख कर मुसकुरा रही थी |
आओ जूही ..! मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रही थी ...कैसा लग रहा है अब ? कुछ सुधार हुआ स्वास्थ्य में ?
हां कुछ बेहतर महसूस हो रहा है ...खुद को सहज करने का प्रयास करती हुई जूही ने जबाव दिया |
उसकी आँखों में उभरे प्रश्नों को भांपते हुए वह स्त्री बोली , यही सोच रही हो ना कि मैं कौन हूँ और तुम्हें कैसे जानती हूँ ?
हां! मतलब कुछ ऐसा ही ....जूही के होंठों से उभरे धीमे स्वर को सुन कर वह स्त्री, उसे प्यार से बोली
“डरो मत जूही ! तुम मुझे अपना दोस्त मान सकती हो | यह लो! तुम्हारे लिए मेरी ओर से एक छोटा सा उपहार “ अपने हाथ को हवा में लहराते हुए उसने एक खूबसूरत सा फूलों का गुलदस्ता प्रकट किया और जूही को दे दिया |
धन्यवाद...! यह बहुत सुन्दर है ...पर फूलों के साथ यह पत्ते ...?
ये पत्ते अजवाइन के पौधे के है ...इन्हें जब भी अपनी नाक के करीब लेकर जाओगी राहत महसूस करोगी ...इनकी खुशबू बंद नाक को खोल देती है.. उस स्त्री ने कहा |
हां ...काफी तेज़ गंध है पर सूंघ कर राहत महसूस हो रही है , जूही ने उसकी बात का अनुमोदन किया |
तुम्हारी दादी और मैं शायद एक ही विश्वविद्यालय में पढ़े है .... “प्रकृति के विश्वविद्यालय” में ...और यह पूरी दुनिया उसके पाठ्यक्रम में आती है | जो जितना समय और विश्वास प्रकृति को देता है, वह अपनी शिक्षा में उतना ही प्रवीण होता जाता है | दुनिया जिस चाँद पर विज्ञान के माध्यम से पहुंची है, वह चंद्रमा भी उसी प्रकृति का एक हिस्सा है, यहाँ तक की आधुनिक दवाओं का आधार भी यही प्राकृतिक संसाधन और रसायन होते है |
अच्छा...! तुम्हें मेरी भाषा समझ तो आ रही है ना ...?
हां हां! माय हिंदी इज वैरी गुड, मतलब मुझे समझ आ रहा है ...सिर को हिलाते हुए उस स्त्री के प्रश्न का उत्तर देते हुए जूही बोली |
ओ दैट इज ग्रेट...! वरना मुझे लगा की मुझे तुमको प्रकृति का मतलब “नेचर” कह कर समझाना होगा |
“मदर नेचर”... जोर दे कर जूही ने उसके संबोधन को सुधारने का मानो निर्देश दिया |
क्या कहा तुमने ?
नेचर इस नॉट जस्ट नेचर, इट इज मदर नेचर |
माफ़ करियेगा...अगर मेरा लहजा आपको अभद्र लगा हो तो पर सही को सही और गलत को गलत स्पष्ट रूप से कहना मुझे पसंद है और अब जब आप और मैं दोस्त बन ही गए है तो मेरी ड्यूटी है की आप को यह बता दिया जाए कि प्रकृति को लेकर किया गया आपका संबोधन उचित नहीं था | प्रकृति का सम्मान करना हमें हमारे स्कूल और घर दोनों में ही सिखाया गया है, तो मात्र प्रकृति नहीं “माता प्रकृति” ऐसा बोलते है |
ओह जूही...! खुश रहो मेरी बच्ची...! अचानक से उस स्त्री की आँखों में वात्सल्य उमड़ आया | मुझे नहीं मालूम था की तुम इतने आदर से मुझे पुकारोगी , उसने प्यार से उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा |
मतलब ?
आप मदर नेचर हो ?
पर कैसे ...?
जूही की आँखें और चौड़ी हो गई |
क्यों...? पहाड़, नदी, वन, झरने समंदर इसी रूप में मुझे दिखना चाहिये..?
नहीं...मेरा वो मतलब नहीं था पर...पर आपके इंसान जैसे दिखने की कल्पना मैंने कभी नहीं की थी, जूही समझ ही नहीं पा रही थी कि उसके साथ हो क्या रहा है | छोटे भाई बहनों की टीचर को मदर टीचर का संबोधन पाते हुए उसने देखा था और वही जुमला अपनी नयी दोस्त को प्रभावित करने के लिए प्रयोग किया था | यह मुझे हिंदी को लेकर ताना मारे तो मैं क्यों चुप रहू , पर यह तो खुद ही मदर नेचर निकल गयी | ओह कान्हा जी बचा लो मुझ मासूम को, किस चक्कर में फंस गयी हूँ मैं | मन ही मन खुद से बाते करते हुए वह सोच रही थी की क्या मदर नेचर सच में औरत जैसी होती है ?
हां होती है | देखो मैं यहाँ तुम्हारे सामने खड़ी हूँ और ख़ास तुमसे मिलने के लिए आई हूँ ...वह स्त्री मानो जूही का मन पढ़ती हुई बोल पड़ी | इंसान का शरीर जिन पांच तत्वों को मिल कर बनता है वे भी मेरे ही अंग है | जब शरीर का साथ छूटता है तो यह घटक वापस मुझी में मिल जाते है, दाह संस्कार किया तो राख के रूप में और दफनाया तो मिट्टी के जरिये, पर मैं तुमसे इस चर्चा के लिए मिलने नहीं आई हूँ, बल्कि हमारी बातचीत का विषय कुछ ओर होगा |
क्या ?
तुम्हे समझ आ जाएगा की हम क्यों मिल रहे है, पर पहले तुम ये बताओ की तुम्हारी सबसे पसंदीदा सब्जी कौन सी है ?
पालक-पनीर जूही ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया |
तुम्हारा पसंदीदा फूल ? जूही ...मेरे नाम वाला ..,
पसंदीदा इंसान ? मेरे पापा ...ही इज द बेस्ट ....बातचीत के दौरान जूही की सहजता बढती जा रही थी |
क्या तुम कुछ या किसी एक भी वनस्पति के बारे में जानकारी दे सकती हो जो दैनिक जीवन में तुम्हारे काम आ सकती है |
हां हां क्यों नहीं...वैसे तो हम शाकाहारी लोगो का पूरा भोजन ही वनस्पतियों से प्राप्त होता है, पर उनमे से अगर एक एसी वनस्पति जो सबसे निकट है और जो रोज़ काम आये तो पहला नाम आता है “तुलसी” का |तुलसी का पौधा हर उस घर में पाया जाता है, जो सनातन धर्म के अनुयायी है | हमारे घर के हर सदस्य की दैनिक दिनचर्या का हिस्सा है, तुलसी जी को जल चढाना ...|
परन्तु ये तो कोई उपयोग नहीं हुआ , काम क्या आया तुलसी का पौधा तुम्हारे ?
बहुत काम आता है, हमारे कान्हा जी बिना तुलसी-पत्र के भोग नहीं स्वीकार करते, उन्हें बेहद प्रिय है तुलसी और जब कोई बीमार पड़ता है तो दादी तुलसी के पत्तों का काढ़ा बना कर देती है, धीमे ही सही पर सर्दी जुकाम में काम आता है , अब देखिये कल मुझे दिया था आज कुछ राहत महसूस हो रही है |जब कोई शाखा सूख जाती है तो दादी उसकी लकड़ी को मंदिर में दे देती है | लोगो के अंतिम संस्कार में तुलसी की लकड़ी का प्रयोग किया जाये तो उन्हें वैकुण्ठ की प्राप्ति होती है, ऐसा दादी बोलती है, उनकी तो जप माला भी तुलसी की लकड़ी से बनी है |
वैकुण्ठ क्या सच में होता है ? उस स्त्री ने जूही के मन को टटोलते हुए पुछा |
इसका जबाव तो कान्हा जी ही दे सकते है, कौन जाने आपकी तरह वो भी मुझसे मिलने आ जाए कभी , बोलते हुए खिलखिला पड़ी जूही |
उसकी आंखों में झलकती शरारत को देख कर प्रकृति मुसकुरा दी और फिर विस्मयकारी भावों से उसकी आँखों में झांक कर पूछने लगी |
क्या तुमने कभी ये सोचा है की कान्हा जी को तुलसी ही क्यों प्रिय है ...या फिर ये की तुलसी का पौधा हर घर में अमूमन क्यों पाया जाता है ?
क्यों हर एक ईश्वर का स्वरूप किसी ख़ास तरह की वनस्पति और पशु से प्रेम करता है |? जैसे कान्हा जी की तुलसी और गाय , शंकर जी के नंदी और बेल पत्र , गणेश जी के मूषक और दूर्वा, लक्ष्मी जी का कमल और उल्लू ....क्यों देवी देवताओं को वृक्षों से जोड़ा जाता है ?
केले और पीपल में नारायण और वटवृक्ष में ब्रह्मा का वास ....एसी बातों में कोई वैज्ञानिक प्रमाण मिलता भी है या नहीं ?
मुद्दे की बात तो कर नहीं रही है और सवाल पर सवाल पूछे जा रही है ...मदर नेचर मानो सामाजिक विज्ञान का प्रश्न पत्र याद कर के आई है खैर..!
मन के भावो को छिपा कर अपने आपको सवालो से बचाने के लिए गंभीर बनने का अभिनय करती हुई जूही ने उत्तर दिया ,
काफी गम्भीर और जटिल प्रश्न पूछ लिया आपने ....मेरी समझ के दायरे से बाहर है इसका जबाव और मेरे घर में यदि इस तरह के प्रश्न पूछने का कोई प्रयास करता तो दादी माँ संस्कारों के बिगड़ने का दोष दे देती और ईश्वर के अनादर का डर दिखा कर तुरंत चुप करा देती |
ईश्वर के नाराज़ होने से क्या होता है ? प्रकृति के प्रश्न जारी रहे |
प्रलय...महाप्रलय आ जाती है, आँखों को मटकाते हुए, डरावना चेहरा बना कर जूही ने उतर दिया |
पानी में धरती डूब सकती है, वनों में आग लग सकती है, हाथों को लहरा का वह बोलती जा रही थी |
आपको पता है ...जब कभी भी भूकंप, बाढ़, या फिर वनों में आग और अकाल की खबर सुनने को मिलती है दादी के हिसाब से ईश्वर की नाराजगी ही मनुष्यों पर प्राकृतिक आपदाओं के रूप में सामने आई होती है | दुनिया भर के वैज्ञानिकों के हिसाब से कोरोना वायरस होगा ..पर हमारी दादी के हिसाब से तो वह ईश्वर का प्रकोप ही था |
काफी अन्ध-विश्वासी है तुम्हारी दादी ...?
प्रकृति की प्रतिक्रिया पर अपनी दुविधा प्रकट करते हुए जूही ने कहा लगता तो मुझे भी ऐसा ही है पर यह बात खुले आम बोल नहीं सकते | इसके दो कारण है, पहला कारण इमोशनल जो है दादी की नाराजगी, दादी जो मेरे पापा के लिए ईश्वर ही है और उन्हें मैं हर्ट नहीं कर सकती | दूसरा कारण इमोशनल नहीं लॉजिकल है ...जब तक धर्म का सही अध्ययन ना हो उसका खंडन करने का कोई अधिकार नहीं है मुझे |
अरे वाह ! काफी उच्च विचार है तुम्हारे ...प्रकृति व्यंगात्मक लहजे में मुसकुराई |
अ..अ.. मेरे नहीं मेरे माँ-पापा के ऐसे विचार है , मेरे विचार से तो मरने के बाद मिलने वाला वैकुण्ठ और धार्मिक ग्रंथों में वर्णित वैकुण्ठ एक जैसा है, यह बात कौन साबित कर सकता है, कोई नहीं |
शायद तुम्हारे कान्हा जी ...! प्रकृति रहस्यमय रूप से बोली,
काफी... वैज्ञानिक विचारधारा वाले है वे, तभी तो पसंदीदा पौधे के रूप में उन्होंने तुलसी जैसी वनस्पति का चयन किया |
तुम्हे पता है, तुलसी को वानस्पतिक जगत में एक सुघंधित औषधि के रूप में जाना जाता है | इसका औषधीय नाम “ओसिसम सैकटम” है | आयुर्वेद में भी इसका उपयोग औषधि के रूप में ही किया जाता है | भगवान् विष्णु की प्रिय होने के कारण इसे विष्णुप्रिया नाम भी दिया गया है | उनके दो अवतारों का स्मरण कराती हुई यह तुलसी मुख्य रूप से दो प्रकार की पायी जाती है | पहली जिसके पत्ते हरे हो वह “राम तुलसी” और दूसरी जिसकी पत्तिया कुछ हल्का काला या श्याम रंग लिए होती है उसे “कृष्ण तुलसी” कहा जाता है |
सर्दी खांसी के इलाज, सिरदर्द के उपचार पेट से जुडी समस्याओ के निराकरण और सौन्दर्य के निखार में भी इसका उपयोग सदियों से किया जाता रहा है |
एक ओर प्रकृति बोलती जा रही थी वहीं दूसरी ओर एक अच्छे श्रोता का अभिनय करती हुई जूही अपने मन में कुछ और ही सोच रही थी |
ये लो ....मदर नेचर भी दादी की टीम की लगती है, मेडिकल फ़ील्ड में तुलसी का प्रयोग तो ऐसे बता रही है मानो तुलसी पर खुद रिसर्च करी हो इन्होने.....
जूही के मन को पढ़ते हुए प्रकृति बोली रिसर्च तो बहुत हुए है मेरी बच्ची !
पर अफ़सोस ! विश्वगुरु का दर्जा रखने वाले भारत देश की वर्तमान पीढ़ी अपने ही देश के अनुसंधानकर्ताओं को तब तक महत्त्व नहीं देती जब तक विदेशी उनका अनुमोदन ना कर दे | एक ओर वन देवी और प्रकृति रुपी नायिका और वैकुण्ठ का वर्णन काल्पनिक लगता है तुम्हें वही दूसरी ओर दुनिया के रखवाले सुपर हीरो की फिल्मे और परी कथाये , डरावने जानवर की कहानिया और जादूगर जो एक कहानी के पात्र है उनसे जुड़े कार्यक्रम बेहद रुचिकर लगते है तुम्हें | मोबाईल फोन में चित्र को परिवर्तित करने वाली तकनीक का तो तुमने कभी खंडन नहीं किया | जो जैसा है वो वैसा ही दिखना चाहिये, फिर अपने चेहरे के मुहासों के दाग छिपा कर अपना जो छाया-चित्र तुमने अपनी सहेलियों को दिखा कर झूठी वाहवाही लूटी , क्या वह दिखावा और दोगला पन नहीं है , कभी तुम्हारे मन में यह प्रश्न क्यों नहीं उठा की जिस नकली तस्वीर को तुम असली बता कर वाहवाही लूटने का प्रयास कर रही हो और जिनका तुम अनुसरण करने का प्रयास कर रही हो , चलचित्र की वे नायिकाये भी उन्हीं तकनीकों के प्रयोग से सुंदर दिखाई देती है | असल जीवन में उन्हें भी झाइओ , मुहासों और रूखी त्वचा जैसी आम प्राकृतिक समस्याएं होती है | रंग को मिनटों में गोरा करने वाला रासायनिक लेप लगाने से जो तुम्हारी त्वचा पर दाने निकले थे और उनसे हुई जलन को मिटने के लिए जब तुम्हारी माँ ने हल्दी, चन्दन और मुलतानी मिट्टी का लेप लगाया तो तुम्हें आराम मिला पर तुमने उन्हें धन्यवाद तक नहीं कहा और विज्ञापन में दिखाए गए महंगे फेसपैक को खरीदा , क्या उस कम्पनी से तुम्हें कोई गारंटी या रिसर्च रिपोर्ट मिली थी |
उन को लाइसेंस मिलता है तभी वो ऐसे उत्पाद बना सकते है , जूही ने पलट कर जबाव दिया |
सही कहा पर सच सच बताओ क्या कभी तुमने उनके घटक ईमानदारी से जांचे नहीं ....ऐसा तुमने कभी नहीं किया | तुम्हारी मदद के लिए मैं तुम्हें बताती हूँ की उनका भी आधार इन्हीं प्राकृतिक वस्तुओं से बनाया जाता है और फिर उन्हें जटिल वानस्पतिक और रासायनिक नाम के साथ लेबल किया जाता है ताकि ... तुम जैसे लोग गुमराह हो जाए और उन उत्पादों को खरीद ले |घर का जोगी जोगना और बाहर गाव का सिद्ध ...यह कहावत सच साबित हो रही है तुम भारत वर्ष के लोगो के लिए | पश्चिम इनका अनुकरण कर योग और आयुर्वेद की तरफ आकर्षित हो रहा है और यह लोग अपने ही पूर्वजो के वैज्ञानिक अनुसंधानों के बारे में ना तो जानते है और ना ही इनकी रुचि है | आभासी दुनिया के मकडजाल में उलझ गई है युवा पीढी | प्रकृति मानो खुद से ही बातेंकर रही हो |
मुझे समझ नहीं आ रही आपकी बाते ...जूही ने अपने अबोध मन की बात स्पष्ट रूप से कही और उसकी बात सुन कर प्रकृति भी अपने विचारों से मानो बाहर आयी और बोली |
हर आविष्कार किसी ना किसी समस्या के समाधान की प्रकिया का परिणाम होता है , जब भी कोई वस्तु या तकनीक हाथ में आ जाये तो भावी परिणाम इस बात पर निर्भर करता है की व्यक्ति उसका प्रयोग किस मानसिकता के साथ करता है | जो समाज के हितार्थ उपयोग हो वह सदुपयोग और जो समय, समाज और धन भी की हानि करे वह दुरुपयोग कहलाता है | मेरी बच्ची हमेशा यह प्रयास करना की जीवन में तुम्हारा उदेश्य सृजनात्मक और सही मार्ग पर ध्यान देने वाला हो ना की इस बात पर की लोग तुम्हे ज्ञानी और सफल समझे | अपने चयन पर ध्यान दो , जैसा चुनोगी वैसी बनोगी | चयन चाहे मित्र का हो, विषय का हो फिर भोजन का हो ....सोच समझ कर निर्णय लेना |
अचानक से तेज़ हवा का झोंका आया और प्रकृति गायब हो गई और...तभी जूही के कानो में उसके भाई पलाश की आवाज़ गूंजी |
अरे निंद्रा-लोक की राजकुमारी , कृपया धरती लोक के जीवो से भी वार्तालाप कर लीजिये , हे देवी! उठिए !जागिये !
आँखे खुलने पर उसने देखा की पलाश साथ साथ उसकी दादी और माँ सभी उसे देख कर हंस रहे है | ओहो तो क्या आज भी मैं नींद में बडबडा रही थी |
क्या सुना तुमने ....शर्माते हुए जूही ने पलाश से पुछा | समझ तो कुछ नहीं आया पर ख़ुफ़िया मीटिग थी ये पक्का है और तुम तो सीधे आसमानी फरिश्तों से बाते करती हो | तो क्या तय हुआ हम धरती वासी सुरक्षित तो है ? कोई आक्रमण तो नहीं हो रहा हमारे ग्रह पर , जिससे इस दुनिया को बचाने का जिम्मा लिया है वंडर वूमन जूही ने...!
भाई के इस उपहास पर भी जूही ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और मुस्कुराते हुए बोली, “तुम्हारा ग्रह सुरक्षित है वत्स ! हम भारत के युवा उसकी रक्षा करेंगे |”
आपका काढ़ा कमाल का था दादी मुझे बेहतर लग रहा है, थैंक यू ! दादी से लिपटते हुए जूही बोली |
तो इसका मतलब आज रात बिना नखरे किये पी लोगी ना काढ़ा , तीन दिन तक लेना है लगातार उसकी दादी बोली |
हां हां पक्का |
एक जरूरी घोषणा और भी है ! मैने अपने विषय का चयन कर लिया है मैं वनस्पति शास्त्र अर्थात बाटनी का अध्ययन कर के वैज्ञानिक बनूगी , जूही ने अपने विचार घरवालो को बताये |
इतनी भी क्या जल्दी है ....कुछ सपने और देख लो क्या पता, कल सपने में विश्वकर्मा जी आ जाए ..और तुम्हारा चयन वास्तु विज्ञान की तरफ मुड़ जाए , जेसे आज प्रकृति देवी मिली वैसे ही और भी एक्सपर्ट है सनातन संस्कृति में ...उसका भाई पलाश बोला |
क्या कहा तुमने ?
कुछ खास नहीं ...बस मदर नेचर सिर्फ अकेली नहीं है उनके साथ पूरी सबल और कर्मठ टीम है , जैसे मेडिसिन डिपार्टमेंट के हेड धन्वन्तरी भगवान्, उनके साथी अश्वनी कुमार, वाटर डिपार्टमेंट के चीफ वरुण देवता , एयर डिपार्टमेंट के कंट्रोलर पवन देव, एग्रीकल्चर और कल्टीवेशन के साथ साथ एडमिनिस्ट्रेशन की जिमेदारी इन्द्र देवता पर है और भी जो नयी जिमेदारिया समय के साथ आती है उन्हें वे ही सँभालते है और हां टाइम मैनेजमेंट और डिसिप्लिन का सबक सूर्य देवता से ले सकती हो , वो कभी लेट नहीं होते | ये सब जानना जरूरी है आपको जूही जी , जाने कब किस से आपको बात करनी पड़ जाए , पलाश हँसते हुए कहा |
इसका मतलब जब मैं नींद में बोल रही थी तो तुम मेरी बाते सुन रहे थे...हां कुछ कुछ सुना बाकी पूरा का पूरा प्रसारण नहीं सुन पाया , जूही के सवाल पर उसे चिढाते हुए पलाश ने उतर दिया |
ये गलत बात है ! प्राइवेसी नाम की भी कोई चीज होती है की नहीं ?जूही की शिकायत पूरी हुई भी नहीं थी की बीच में ही उसकी बात काटते हुए पलाश बोला
और हां सुनो...! वैकुण्ठ का तो पता नहीं... पर हां इन दिनों एक ग्रन्थ पढ़ रहा हूँ जिसका नाम है “आनंद रामायण” उसमे श्री राम जी के सिविल और आर्म्स मैनेजमेंट की डिटेल्स के साथ साथ पुष्पक विमान की यांत्रिक विशेषताये यानी की मैकेनिकल स्पेसिफिकेशन इतनी अच्छी तरह से दी गई है, जिसे पढ़ कर एक सुपर स्पेशल एयर क्राफ्ट की डिजाईन मानो आँखों के सामने आ जाती है, वरना पहले तो पुष्पक विमान का जिक्र मुझे एक जादुई विमान जैसा लगता था , पर इस किताब को पढ़ कर उस समय के मेकेनिक्स और इस किताब के लेखक के लिए भी सम्मान का भाव आ गया है | कितना सुक्ष्म वर्णन किया है उन्होंने अद्भुत ...! मुझे लगता है की “तुलसी देवी पुस्तक भण्डार” यानी दादी के कमरे की किताबो से मुझे आमन्त्रण मिल रहा है उनमे बसे ज्ञान अमृत को चखने का | तुम भी इस दावत में शामिल हो सकती हो अगर तुम चाहो तो |
नेकी और पूछ-पूछ...जब तक जानेगे नहीं तब तक मानेगे नहीं , मिशन का पहला पड़ाव “स्वदेशी साहित्य का अध्ययन” आज से ही शुरू किया जा रहा है ...टन..टना ...जूही ने बिगुल बजाने का अभिनय किया |
खबरदार! जो किसी भी किताब का बेतरतीब तरीके से इधर-उधर रखा तो, गन्थ ईश्वर की वान्ग्मयी मूर्ति होते है, उनकी भी अपनी मर्यादा होती है, उसका पालन जरूरी है, समझे !...तुलसी देवी के निर्देश को दोनों ने ध्यान से सुना और एक साथ अपने अपने फोन पर सर्च करने लगे...व्हाट डज वान्ग्मयी मीन इन हिंदी ...और इंटरनेट ज्ञानेश्वरी बोल उठी ...वान्ग्मयी मीन्स रिलेटेड टू लिटरेचर ....
ये लो ! ईश्वर का शाब्दिक रूप, ग्रन्थ.....यानी सृष्टि की हर चीज में परमात्मा है पेड़ के रूप में, अन्न के रूप में, गहनों के रूप में , पशु पक्षियों के रूप में...हर चीज को भगवान् से इस लिए जोड़ दिया गया होगा की इंसान उनके प्रति थोडा जिम्मेदार और सावधान हो जाए...तुम्हे क्या लगता है पलाश ?
शायद हां.....दोनों भाई-बहनों की बातो में तर्क-वितर्क चल रहे थे और मंद मंद चलती हवा के साथ आँगन में लगा तुलसी का बिरवा झूम रहा था ...मानो प्रकृति अपने उदेश्य में सफल हो गई हो |