ब्रह्मांड के जो नाथ है
सहोदरा के साथ है
बलभद्र ने पकड़ा हाथ है
पुरुषोत्तम जगन्नाथ है।

पुरी जिनका धाम है
श्री मंदिर क्षेत्र ललाम है
मूर्ति मनोहर श्याम है
उन नीलांचल नाथ को प्रणाम है।

महालक्ष्मी के प्रिय सखा
वाहन में गरुड़ रखा
चक्र सुदर्शन धारी है
श्री महाप्रभु की बलिहारी है।

रचा कलेवर काठ का
बखान करे क्या ठाठ का
छवि अनोखी है धरी
उत्कल नाथ श्री हरि।

राजा इन्द्रद्युम्न पर कृपा भारी
नीलमाधव रूप-धारी
विग्रह अलौकिक तलाशता
माध्यम बना पद्मनाभ के काम का।

आदेश लोकनायक का
देव-शिल्पी को मिला
अद्भुत रूप त्रिविक्रम का
देख कर जगत खिला।

बंद कर किवाड़ को
सृष्टि के सृजन-हार को
विश्वकर्मा जी पुकारते
कलेवर नव संवारते।

शिल्प-ध्वनि जब थमी
धैर्य में रहीं कमी
एकांत को किया जो भंग
कोई न था विग्रह के संग।

अदृश्य शिल्पकार है
माया का कौन पार है
अपूर्ण नहीं ! अभिराम है
जगन्नाथ जिनका नाम है।

बलराम रूप शक्ति का
सुभद्रा अनुरक्ति का
जगन्नाथ भक्ति का
कलयुग के शीर्ष धाम है।

“बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
कर बिन कर्म करै विधि नाना”
तुलसी ने जो रची चौपाई
सिद्ध करी श्री प्रभु जलशायी।

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