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सावन का महीना था, प्रकृति ने हरियाली की चुनरी ओढ़ ली थी। चारों ओर हर-हर महादेव का स्वर गुंजायमान रहता था । स्त्रियों के लिए खास होता ये महीना अपने-अपने मायके जाने और भाइयों, माता-पिता और सखियों से मिलने का मौका मिलता । महादेव की कृपा से सृष्टि में सभी खुश थे, पर एक विवाहिता के लिए सावन भी अन्य महीनों के समान ही था, ना माता-पिता ना भाई और ना ही कोई मायका। सभी जेठानियां अपने -अपने पीहर गई हुई थी, गर्भ में भावी सन्तान के साथ एक वही थी जो अपने ससुराल में रह गई थी वह थी गांव के एक साहूकार के सबसे छोटे पुत्र की पत्नी। दिन बीत रहे थे...उसकी दिनचर्या निश्चित थी घर के काम-काज में हाथ बंटाना और फिर गांव के बाहर स्थित कुएं से पानी भर कर लाना।
बहू...! सास के स्वर से उसकी तन्द्रा टूटी , कल नाग पंचमी है..तो नाग देवता की पूजा-अर्चना करनी है, प्रसाद में मीठे पूए बन लेना... बाजरे और मोठ के दाने भिगा देना, उन्हें अंकुरित करना है। भाई की लंबी उम्र और उसके भले के लिए बहने ठंडा भोजन करती है तो कल मैं बासी भोजन करुंगी । बाजरे की रोटियां और कैर-सांगरी की सब्जी बनानी है , तुम तैयारी करो ! मैं भी आती हूँ थोड़ी देर में। सासु माँ के आदेश का पालन करती छोटी बहू मानो यन्त्र की तरह निश्चित क्रम से काम कर रही थी, पर भावहीन से दिख रहे चेहरे के पीछे एक भावुक मन भी छिपा था जो अपने भाई, माता-पिता की विरह वेदना को अनुभव करना चाहता था, पर जो मिले ही नहीं उनका बिछड़ने का दर्द भी कैसे होता पर...! एक खालीपन था जिसे उसकी अनुभवी सास ने पहचान लिया। सिर पर हाथ फेरते हुए बोली बेटी! जब दिल बड़ा हो तो परिवार का दायरा भी बड़ा हो जाता है, नहीं तो खून के रिश्ते भी दूर लगने लगते है। जिसका कोई नहीं होता सेठ साँवरिया उसका होता है। भाई मान कर उसके लिए ही नाग पंचमी मना लेना पर अगर तेरा मन हो तो...ला बाजरे के सोगरे मैं सेक देती हूँ।
अगले दिन चूल्हा जलने से पहले ही उसकी सास ने मटके पर कुमकुम और कोयले से नाग देवता की आकृति अंकित कर दी...गाय के गोबर से बनी पाल से छोटा सा सरोवर बनाया और उसमे दूध सींच दिया। कच्चे आटे में घी और चीनी मिला कर “कूलर “ प्रसाद बनाया। अंकुरित मोठ-बाजरे के दाने, प्रसाद और ठंडा भोजन जिसमें बाजरे के आटे से बनी रोटियाँ, कैर-सांगरी का साग, दही और मीठे पूए थे। सास के साथ छोटी बहू ने भी नाग देवता की पूजा की और फिर प्रसाद में मिले पूए एक पोटली में बांध कर वह सरोवर पर चली गई । सावन के सुहाने मौसम में सूर्य देवता थोड़े मद्धिम थे, तो पोटली को एक पेड़ की डाली पर टाँगा और पानी का घडा़ भर कर घर की ओर चली। खाली घड़ा लेकर वापस लौटी और पोटली की तरफ मुड़ी पर ना जाने क्यों खाने का मन ही नहीं हुआ उसका। एक के बाद एक घड़ा लेकर जाते हुए हर बार पूए खाने का सोचती पर लौट जाती, अंततः उसने अपने पूरे परिवार की जरुरत जितना पानी भर लिया और आखिरी बार घड़ा भर कर उसने चबूतरे पर रखा और पेड़ की डाली से पोटली उतार कर छाया में बैठ गयी। गर्भावस्था में परिश्रम से थकान हो गई थी, पसीना पोंछ कर उसने पोटली खोली तो चौंक गई कि पोटली खाली निकली। हैरान हो कर उसने आस-पास नजर घुमाकर कर देखा, कोई नहीं दिखा । होठों पर फीकी मुस्कुराहट के साथ वह बुदबुदाती हुई बोली, “लगता है किसी ने खा लिए...कोई बात नहीं मैं खाती तो मेरे पेट की ज्वाला शांत होती परंतु वो पूए किसी और के भाग्य में लिखे थे, जिसने भी खाए उसकी पेट की आग शांत हो” । कुछ देर सुस्ता कर वह उठी और घर की ओर बढ़ने लगी तो अचानक से उसके सामने एक अधेड़ उम्र की गर्भवती स्त्री आ कर खड़ी हो गई । उसकी आँखों के डर को पढ़ कर वह स्त्री बोली मैंने ही तुम्हारे पूए खाए है, तुमसे पूछा भी नहीं। कोई बात नहीं ईश्वर ने उन्हें आपके लिए ही मेरे माध्यम से भिजवाया होगा, दान-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है, कह कर वह आगे बढ़ी उतने में ही उस स्त्री ने हाथ पकड़ कर उसे रोका।
बेटी! मैं एक इच्छाधारी नागिन हूँ, इसी पेड़ के नीचे नाग लोक में रहती हूँ, आज बाहर आई तो पूए की महक ने इन्हें खाने के लिए ललचा दिया, आसपास देखा कोई दिखा नहीं तो मैंने उन्हें खा लिया , पेट तृप्त हो गया, सहसा तुम्हें घड़ा लिए आते देखा तो सुरक्षा के लिए मैं छुप गई । जब पोटली की तरफ तुम मुड़ी तो समझ आया कि मैंने तुम्हारा ही भोजन बिना तुम्हारी अनुमति के खा लिया। मैं दृढ़ निश्चय कर के बैठी थी कि यदि इस स्त्री ने भोजन चुराने वाले को कोसा या अपशब्द कहे तो मैं उसे अपने विष-दंत से डस लूँगी, परन्तु तुमने तो मेरे हित की कामना की। मनुष्यों से इतने नेक आचरण की अपेक्षा नहीं होती हम नागों को। अब जब निकट से देखने पर ज्ञात हुआ कि तुम भी गर्भवती हो तो अपनी सोच और अपने आचरण दोनों पर ही शर्मिंदा हूँ, मुझे क्षमा कर दो बेटी इतना परिश्रम इस हालत में भी करने के बाद भी, मेरे कारण तुम भूख से व्याकुल हो। अरे ! आप इतना मत सोचिए मेरा घर निकट है, मैं वहॉं जा कर खाना खा लूँगी, उसके उत्तर में प्रदर्शित विनम्रता ने नागिन को द्रवित कर दिया। अपनी दैवीय शक्तियों से उसने जान लिया कि अपने पीहर में कोई अपना नहीं होने का दर्द उसने अपने मन में छिपा रखा हैं।
बेटी! हम नाग किसी का उपकार कभी नहीं भूलते, तुम्हारी भी मैं आभारी रहूँगी । अच्छे मनुष्य कम ही मिलते है एक और सहयोग कर दोगी ? मेरे पुत्र और भी है परंतु कोई पुत्री नहीं है, इस बार महादेव से पुत्री की ही कामना की थी । तुम्हें देख कर लगता है पूरी हो गई, कुछ दिन मेरे घर रह कर सेवा का अवसर दो, जब मेरी संतान जन्म ले तो वापस लौट जाना। जिस तरह पुत्रियां प्रसव के लिए अपने मायके जाती है, तुम भी मेरे घर आना, मैं तुम्हें अपनी धर्म-पुत्री के रूप में स्वीकार करती हूँ। अपने ससुराल वालों की चिंता मत करना कल प्रातः मेरा ज्येष्ठ पुत्र तुम्हें लेने आएगा। जाओ! इतना कह कर वह स्त्री नागिन के रूप में परिवर्तित हो कर बिल में घुस गयी।
छोटी बहू मानो सम्मोहन के प्रभाव में अपने घर की तरफ मुड़ गयी पर जो कुछ भी आंखों से देखा था उसका कौतूहल उसे छोड़ नहीं रहा था। अगली सुबह नित्यकर्म से निवृत्त हो वह शिवालय गयी और महादेव से अपना अद्भुत अनुभव साझा कर घर लौटी। लो आ गई आपकी बहन! सास के स्वर में मिठास का अतिरेक उसके लिए आश्चर्य का विषय बनता उस से पहले ही पास में पड़े विभिन्न उपहारों पर उसकी दृष्टि पड़ी। ये कौन लाया…प्रश्न पूछने से पहले ही उसकी सास बोली इतना प्रेम करने वाला परिवार है, पर ये निर्मोही कभी जिक्र तक नहीं करती, अरे बेटा! भाई चाहे सगा हो या धर्म-भाई, बहन के लिए उसका प्रेम ही सबसे बड़ी बात होती है, जा तैयार होकर आ । तेरे भाई सा बड़ी देर से तेरा इन्तज़ार कर रहे हैं। हाँ लाड़ो ! माँ बड़ी बेसब्री से तुम्हारा इंतजार कर रहीं है। चलो! हाँ-हाँ राखी के बाद आ जाना, सास के अनुमोदन के साथ ही उसके धर्म भाई ने उसका हाथ पकड़ा और घर से बाहर की ओर निकला। सास-ससुर, पति सभी उसको मुस्करा कर विदा कर रहे थे। मन ही मन महादेव का जाप कर रहीं छोटी बहू समझ चुकी थी कि उसका परिवार सम्मोहन में पड़ चुका है तभी एक अजनबी को इतनी आसानी से अपना मान लिया। जैसे ही घर के दहलीज के बाहर आए, वह युवक बोला आप डरिए मत! माँ के आदेश अनुसार हम सब भाइयों ने आपको अपनी बहन माना है। आइए! नाग-लोक चलते है, एक तीव्र प्रकाश हुआ और अगले ही क्षण छोटी बहू ने खुद को एक अलग अलौकिक दुनिया में पाया । मनुष्य और नाग का पल- पल रूप बदलते लोग, सुन्दर घर, बाग-बगीचे, विभिन्न स्त्री-पुरूष वेश धारी नाग उसका अभिवादन कर रहे थे। एक घर के सामने जा कर जैसे ही रुके सामने वही स्त्री दिखी जो कल सरोवर के निकट मिली थी। यानी सचमुच नाग-लोक होता है…उसने मन ही मन सोचा।
हाँ! नाग लोक सच में होता है और तुम अभी वही हो और ये तुम्हारा परिवार है, मैं ! तुम्हारी माता, ये सभी तुम्हारे भाई…हम सब इच्छानुसार कोई भी रूप धारण कर सकते हैं महादेव की कृपा से। हमारा ये धर्म-संबंध शाश्वत रहेगा सिर पर दुलार से हाथ फेरते हुए वह नागिन बोली। छोटी बहू का अंतर्मन आश्चर्य, भय के मिश्रण से ना जाने कितनी बातें सोच रहा था कि तभी एक नाग-भाई बोला दीदी आओ ना ! भूख लगी है, आपके स्वागत में माँ ने कितने सारे व्यंजन बनाये है, पर खाने को नहीं दिए, कहती है दीदी आ जाये तब साथ मिलकर खाएंगे। हाथ पकड़ कर वह नाग उसे अधिकार पूर्वक घर के अंदर ले गया। जलपान के बाद उसकी धर्म माता ने कहा, बेटी कुछ ही दिनों में मैं सन्तान को जन्म दूँगी तब तुम्हें ही अपने इन भाइयों को संभालना होगा। घबराने की बात नहीं है मैं तुम्हें सब सिखा दूँगी, अभी तुम विश्राम करो। छोटी बहू की आंख लग गई । एक घंटी की आवाज से उसकी आंख खुली, उसने देखा कि उसकी माँ ने पीतल की चौड़ी कटोरियों में दूध डाल रखा था और अपनी पूंछ से वह घंटी बाजा रहीं थीं, घंटी की आवाज सुनते ही उसके नाग भाई आए और उन कटोरियों में पूंछ डाल कर जाँच की कि दूध ठंडा है या नहीं और आश्वस्त हों कर दूध पी लिया। बस यही करना है तुम्हें, दूध उबाल कर उसे इन पात्रों में भर कर ठंडा करना है, जब ठंडा हो जाये तो घंटी बजा कर अपने भाइयों को संकेत देना है फिर वे आकर दूध पी लेंगे। ठीक है माँ! उसने सहमति में सिर हिलाया। छोटी बहू का मन अपने इस धर्म-पीहर में रम गया था।
कुछ दिन बाद नागिन ने एक और पुत्र को जन्म दिया, प्रसव पश्चात अपनी माता के विश्राम-काल में उसकी धर्म-पुत्री ने बड़े प्रेम और सौहार्द से अपने भाइयों और माता का ख्याल रखा और फिर रक्षाबंधन के दिन अपने सभी भाइयों को राखी बाँध कर अपने ससुराल जाने हेतु विदा ली । बेशकीमती गहने, कपड़े, और उपहारों के साथ लौटी छोटी बहू का धर्म मायका उसके ससुराल में चर्चा का विषय बन गया। दिन बीतते गए और छोटी बहू के प्रसव का समय भी निकट आ रहा था और वचन निभाते हुए उसका नाग भाई मानव वेश में उसे लेने आया । वापस अपनी माता और भाइयों के साथ छोटी बहू खुशी-खुशी रहने लगी और एक दिन उसने पुत्र रत्न को जन्म दिया, उसके भाई ने शुभ सूचना ढ़ेर सारी मिठाइयों के साथ उसके ससुराल पहुंचाई। कुछ समय बाद बच्चे के साथ छोटी बहू भी अपने ससुराल लौट गई और अपनी गृहस्थी में रम गई । इस बार उसे भी सावन के महीने का इंतजार था जैसे उसकी जेठानियां करती थी । साल बीतते जब सावन का महीना आया तो अपने भाइयों से मिलने के लिए फिर से नाग-लोक पहुंची, घुटने के बल चलने वाला नाती सब की आँखों का तारा था। एक बार नाग-माता की अनुपस्थिति में बहन ने अपने भाइयों के लिए दुध गर्म किया और पात्रों में डाल कर ठंडा होने के लिए रखा, किसी कार्य हेतु वह दूसरे कमरे में गई उतनी देर में ही उसके पुत्र ने संकेत-घंटी को खिलौना समझ कर बजा दिया। बाकी नाग तो हैरान थे कि समय से पूर्व घंटी केसे बज गई । वे पात्रों के पास आए उसमे से उठते धुएँ और पास खेलते बच्चे को देख कर सारा माजरा समझ कर लौट गए परंतु सबसे छोटे नाग को इतनी समझ अभी आई नहीं थी । वह रोज की तरह आया और पात्र में पूंछ डाली और उस की पूंछ जल गई । उसकी यह हालत देख कर उसकी बहन का रो-रो कर बुरा हाल हो गया। उसने अपनी माता और सभी भाइयों से क्षमा मांगी । इसे नियति मान कर सब ने उसे क्षमा कर दिया, राखी के त्योहार के बाद वह अपने घर वापस लौट गयी।
समय अपनी गति से चल रहा था, छोटी बहू अपने छोटे भाई की कुशलता के लिए रोज प्रार्थना करती उधर नाग-लोक में छोटे नाग को सभी “बांडिया “ अर्थात बिना पूंछ वाला कह-कह कर चिढ़ाते। एक दिन उसने अपनी माँ से अपने पूंछ-विहीन होने का कारण पूछा तो उसे सच पता चला । अपने अपमान का कारण भानजे की शरारत मान कर वह क्रोध में बोला, “ मुझे हानि पहुंचाने वाला जीवित नहीं रहेगा “। उसकी माता उसे समझाते हुए बोली कि भाई तो बहन के रक्षक होते है, क्या तुम भक्षक बनोगे ?” बड़े हो तुम अपने भांजे से उम्र में लेकिन बड़ा चरित्र बनाने के लिए क्षमा-शील बन कर दूसरे की मंगल कामना करनी पड़ती है । जैसे तुम्हारी बहन ने तुम्हारी माँ के लिए की थी जब गर्भावस्था में परिश्रम करने के बाद भी उसे मेरे कारण भूखा रहना पड़ा । छोटा नाग कुछ समझ नहीं पाया तो उसकी माता ने विस्तार से अपनी पुत्री के मिलने की कथा सुनाई। धर्म की पुत्री मेरे कारण नाग-लोक में आयी अतः तुम्हारे दुःख का मूल कारण मैं हूँ, क्या मुझे भी मार दोगे ? अपनी माता के प्रश्न का कोई उत्तर ना पाकर वह चला गया परंतु उसका क्रोध शांत नहीं हुआ था। अगले दिन जब छोटी बहू जल भरने सरोवर पर गयी तो अपनी माता को देख कर खुशी से चौंक गई पर जब उसकी माता ने भाई के क्रोध की बात बताई तो वह डर गई। बेटी ! प्रतिशोध का भाव हम नागों में स्वाभाविक रूप से होता ही है अतः सावधान रहना, अपने पुत्र का ख्याल रखना। प्रतिशोध से भी प्रबल भाव है प्रेम और तुम तो उसकी प्रतिमूर्ति हो । एक उपाय है, तुम दिन भर अपने बांडिया बीर को लाड लड़ाने की टेर लगाये रखना, बहन का प्यार उसके क्रोध को शांत कर देगा। उसी दिन से छोटी बहू ने टेर लगानी शुरू कर दी, “नाग रा नागोंटिया, सांप रा सर्पोंटिया, जीवे मारो बांडयों बीर, ओढ़ावे माने दखिणी रो चीर” । कभी कहती “नागडा-नागडी, ,बहन सवागणी, जीवे मारो बांडयों बीर, ओढ़ावे माने दखिणी रो चीर” । ससुराल के लोग हैरान थे, यह अजीब आचरण देखकर। उपहार देने वाले अचानक प्रकटे पीहर का प्रेम छलक रहा है, कह-कह कर तंज कसते लेकिन इन सब से अप्रभावित छोटी बहू उठते-बैठते, घर का काम करती हुई बस अपने भाई को लाड लड़ाने की टेर लगाए रखती।
इस बार सावन में अपनी बहन को ससुराल से लाने के लिये छोटा नाग आया पर उसका इरादा अपने भांजे को डस कर बदला लेने का था। छुप कर आँगन की नाली में बैठे नाग ने नाग रा नागोंटिया, सांप रा सर्पोंटिया, जीवे मारो बांडयों बीर, ओढ़ावे माने दखिणी रो चीर की लगातार चल रही टेर सुनी और मन में विचार किया कि कितना प्यार करती है बहन मुझे! तभी घुटनों के बल चल रहे भानजे को उसने देखा, वह बच्चा खेल-खेल में झाड़ू तोड़ रहा था । परेशान हो कर छोटी बहू ने उसे अपनी सास के पास बैठा दिया जो गेहूं, बाजरा साफ़ कर रही थी। बच्चे ने अपना हाथ अनाज में डाल कर दोनों हाथों से उसे बिखेरना शुरू कर दिया। गुस्से में उसे झटका दे कर हटाती हुई उसकी दादी चीख कर बोली ” नुकसान कर रहा है शरारती बच्चा! तेरा बांडया मामा कोई मोठ-बाजरे का ढेर नहीं लगा कर गया जो इतनी उधम मचा रहा है, तेरी माँ तो उस पर इस तरह लाड़ लुटा रही है, जैसे सोने का अनाज और झाड़ू दे कर गया हो। उसकी जेठानियां जोर- जोर से हँसने लगी। बेचारी दीदी! कितना अपमान झेल रहीं है मेरा नाम लेकर अगर उसके पुत्र को कुछ हो गया तो वह तो मर ही जायेगी। छोटा नाग वहॉं से बाहर निकला और साहूकार का रूप धारण किया और सुनार की दुकान पर पहुँचा, धन की पोटली दे कर उस से सोने की झाड़ू और सोने के अनाज के दाने खरीदे। किराने की दुकान से अनाज की बोरियां खरीदी। कपड़े की दुकान से खूब सारी साड़ियां और पुरुषों के वस्त्र खरीदे और एक बेशकीमती चुनरी अपनी बहन के लिए खरीदी। अपनी बहन के दरवाजे पर उसने दस्तक दी उसकी बहन चौंक गई, उसे गले लगाते हुए वह अंदर आया और उसकी सास को सोने के अनाज के दाने और झाड़ू पकड़ाए और बोला, “खम्मा घणी माँ सा! मैं बांडया! आपकी बहू का लाडला बीर। सावन में उसे पीहर ले जाने के लिए आया हूँ “। उपस्थित सभी लोगों का अभिवादन कर उसने सबको उपहार दिए और अपनी बहन को बेशकीमती चुनरी ओढ़ाई तभी मजदूरों ने आंगन में अनाज की बोरियों के ढ़ेर लगा दिए। भानजे को गोद में ले कर बहन को साथ ले उसने वहॉं से विदा ली और अपने घर पहुँचा। नाग माता कुछ समझती उस से पहले ही उसने बोला मैंने अपने भानजे को माफ कर दिया, इतना लाड़-प्यार करने वाली मेरी बहन सदा खुश रहे ।
हे नाग-देवता! जैसे छोटी बहू की लाज रखी, वैसे ही सब बहनो की लाज रखना! सब को अक्षय सुहाग और अक्षय पीहर-वासा देना!