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जीवन का सार बताने को,
सफलता का द्वार दिखाने को,
केशव ने यह समझाया था ,
परिणाम के आगे कर्म चुनो,
उससे भी ज़रूरी मर्म सुनो,
जो कर्म करो सहर्ष करो,
निष्कर्ष पे नहीं विमर्श करो।
सोचो जो प्राप्त हुआ अवसर है,
सबको तो नही ये मयस्सर है।
जो उभार सके अपनी प्रतिभा,
अभिव्यक्त कर सके आत्म-विधा,
उस यात्रा में मनोरंजन है,
कौशल का, ज्ञान का सर्जन है।
यदि सफर में हो उत्साह नहीं,
हो जाए भले ही हम विजयी,
अग्रिम दिवसों को जीने का,
गुर आएगा नही एक सही।
किसी लक्ष्य मात्र की अभिलाषा,
है नहीं यात्रा की परिभाषा।
अपितु मार्ग में जो प्रदर्शन हो,
जिस विधि कार्य-संपादन हो,
प्रतिभा, विवेक का स्पंदन हो,
करता है व्यक्ति को सुदृढ़ वही,
है जीवन-लक्ष्य का भेद यही।

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