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“भ्रष्टाचार निवारण करके देश का पुनरुद्धार करो,
भ्रष्ट देश को तुम सुधार कर इसका पुनरुत्थान करो।“
मैं कभी- कभी स्वयं से यह प्रश्न पूछती हूँ
कि मेरा देश इतना भ्रष्ट क्यों हैं?
मेरे देश में हर छोटे-से बड़े काम के लिए रिश्वतखोरी की इतनी अनिवार्यता क्यों है?
हम स्वस्थ, प्रगतिशील देश के उज्ज्वल भविष्य के मार्ग में बाधक क्यों है?
हमारा प्रत्येक सरकारी व गैर-सरकारी काम बिना रिश्वत लिए-दिए हो पाना असंभव क्यों है?
हर शाख-शाख, हर डाल-डाल पर आखिर इतनी अकर्मण्यता क्यों है?
हम सभी अपना काम ईमानदारी से करें और करने दें, ऐसा नामुमकिन क्यों है?
न हम रिश्वत लें, न हम घूस दें,
फिर हर काम सुचारु रूप से संपन्न हो जाए, ऐसा असंभव क्यों है?
रिश्वत का पैसा, असंगत कार्यों में ही व्यय होता है, ऐसा ही तो प्रचलित है न,
फिर भी हमारी कथनी और करनी में इतना अंतर क्यों है?
प्रत्येक विभाग में सच्चाई हो, ईमानदारी हो, निरपेक्षता हो, पारदर्शिता हो, सहजता हो, सुगमता हो,
ऐसा हो पाना आखिरकार इतना मुश्किल क्यों है?
हमारा संपूर्ण शासन तंत्र ही स्वच्छ और निष्पक्ष हो पाए, प्रत्येक नागरिक शिक्षित और प्रबुद्ध हो जाए,
तो भला भ्रष्टाचार का पनप पाना मुमकिन ही क्यों है?
भ्रष्ट आचरण की नींव को हिलाकर उसको ध्वस्त करना एक सड़ान्ध जैसे माहौल को खुशनुमा बना पाना,
इसमें आम नागरिक को इतनी कशमकश क्यों हैं,
इतनी कशमकश क्यों है?
संतरी से मंत्री तक,
सड़क से संसद तक,
सर्वसाधारण से नेतागण तक,
भ्रष्टाचार की जड़ें आखिर इतनी गहरी क्यों है?
प्रण करके यदि ठान ले सब तो,
विषम से विषमतम समस्या का निवारण भी
असंभव नहीं है, असंभव नहीं है।