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“आइए! मनुष्यता की मनुष्यता से पहचान कराएं,
आइए! देश को महान से महानतम बनाएं।“
इंसान की इंसान से पहचान कराते हैं,
नकली मुखौटों को उतारकर असलियतों का दरबार लगाते हैं,
जीवन की आपाधापी है, दौड़-धूप है,
चारों ओर ज़रूरतों का प्रचंड शोर है,
आज उन सबको दरकिनार कर,
केवल और केवल स्वयं को स्वयं से मिलवाते हैं,
क्षणभंगुरता के जीवन में,
क्षण-क्षण व कण-कण को संजोना सिखाते हैं,
बैर, द्वेष, घृणा, क्रोध, अहं रुपी समस्याओं से निजात दिलाते हैं,
कर्मभूमि के रण में जीवन को कर्मस्थली बनाकर पूजा अर्चना कराते हैं,
प्रसन्नता, खुशी, उल्लास व उत्साहपूर्ण माहौल बनाते हैं,
अपने परिवेश को साफ़-सुथरा, हरीतिमा से पूर्ण और जीवंत बनाते हैं,
आइए, आज की युवा पीढ़ी को संस्कारवान बनाते हैं,
उन्हें जीवन मूल्यों और दर्शन के एहसास से ओत-प्रोत करवाते हैं,
आशा की किरणों से थोड़ी-सी लालिमा चुराते हैं,
अपने प्रियजनों, स्वजनों से तनिक आत्मीयता बढ़ाते हैं,
देशप्रेम की भावनाओं को और मज़बूत बनाते हैं,
अपने वातावरण और समाज की आँख, कान व नाक बनकर
सजग प्रहरी की भूमिका निभाते हैं,
ज्ञान,विवेक, बुद्धि, सदाशयता और धैर्यशीलता की जांच-परख कर आते हैं,
कबीर, नानक, भगत सिंह, बाल, लाल, पाल ,मीरा बाई, और लक्ष्मीबाई सरीखे
चरित्रों से साक्षात्कार कराते हैं,
स्नेह, विनय और मैत्रीभाव से परायों को भी अपना बनाते हैं,
धन-लोलुपता और कृत्रिमता की ओछी मानसिकता को कहीं दूर त्याग आते हैं,
हिंसा,लड़ाई-झगड़ों, वाद-विवादों की अनसुलझी गुत्थियों को आज सुलझाते हैं,
आड़ी-तिरछी, टेढ़ी-मेढ़ी, ऊँची-नीची, ऊबड़-खाबड़ राहों को आसान व सरल बनाते हैं,
आज के जनमानस के हृदय में आस की नई अलख जगाते हैं,
समाज की दूषित व संकीर्ण मानसिकता को धवल और उज्ज्वल बनाते हैं,
अपने देशप्रेमी होने का उत्तरदायित्व निभाते हैं,
अपनी मातृभूमि की रक्षा व अस्मिता हेतु प्राणों की बाज़ी लगाते हैं,
झूठ, प्रपंच, छल, कपट, व्यभिचार रुपी कंटकों से मुक्ति दिलाते हैं,
आपसी मेलजोल और वार्तालाप से माहौल को दुरुस्त बनाते हैं,
हज़ार मुश्किलें आएं, हज़ार तूफ़ान आ जाएं,
झंझावात भी राहों से भले ही टकरा जाएं,
अपने आत्मविश्वास और स्वाभिमान की रक्षा हेतु
नित-नवीन भविष्य का आगाज़ कराते हैं,
मायावी और अहंकारी दुनिया की अंधकार रुपी कालिमा से छुटकारा दिलाते हैं,
अपने व्यक्तित्व का निर्माण और विकास कला, कौशल व समृद्धि का संवर्धन कराते हैं,
चारों ओर सुरक्षा का कवच बनाकर, शिशुओं, युवाओं, महिलाओं व वृद्धों की
सुरक्षा को और बढ़ाते हैं,
देश में यत्र-तत्र-सर्वत्र शान्ति, व्यवस्था और खुशहाली का साम्राज्य स्थापित कराते हैं,
धर्म, जाति, संप्रदाय, रंग-भेद व भाषाओं का अंतर मिटाकर
अपनी सांस्कृतिक विरासत की गरिमा बढ़ाते हैं,
राष्ट्रहित सर्वोपरि, ‘वसुधैव कुटुम्ब्कम’ की गौरवशाली परंपरा को
प्रतिष्ठित और समृद्ध बनाते हैं,
भारत को पुनश्च: सोने की चिड़िआ और विश्वगुरु बनाने की दिशा में अग्रणी बनाते हैं,
आइए, भारत माँ के मस्तक को रत्नजड़ित आभूषणों से अलंकृत कर आते हैं,
भारत के वीर सपूतों को शत-शत नमन व श्रद्धांजलि अर्पित कर आते हैं,
भारत के वीर सपूतों को शत-शत नमन व श्रद्धांजलि अर्पित कर आते हैं।


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