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“जीना एक कला है,
जिसने इसको सीख लिया उसका सर्वत्र भला है।“
किसी की धीमी सी मुस्कान पर
ये दिल कभी हारा था,
किसी के इंतज़ार में मैं कितना बेसहारा था,
किसी के पुरसुकूनी फैसले का मुझे इसरार था,
कुछ तो अलहदा बात थी उसकी मीठी नज़रों में,
जो मुझे वर्षों तक उसका मासूम चेहरा याद था!
उसके नयनों की तीखी चितवन की कटार से,

मैं बता नहीं सकता,
वो नज़ारा कितना खुशगवार था,
उसका मुड़कर यूं धीमे से मुस्कुरा देना,
और मेरे दिल के तारों का यूँ झनझना जाना,
कह नहीं सकता वो नश्तर कितना असरदार था,

दिलोदिमाग में शहनाइओं की गूँज का आलम नामालूम कितने दिनों से बरकरार था,

नज़ारे इधर के, उधर के, आस के, पास के,
कभी भी इतने हसीं ना थे,
उनसे मिलने को ये दिल इस हद तक खुशगवार था,

फ़कत तन्हाइओ में ही घिरा रहा,
ये दिल आज से पहले कितना ही बेनूर और बेज़ार था,
जब उनसे तकल्लुफ़ हो गया, दीदार हो गया,
अब उनकी हसरतों पे ये दिल निसार था,
ये सफर कितना ही हसीं हो,
फूलों से गुलज़ार हो,
अनजानी राहों का तलबगार हो,
खुद को कितना ही शिद्दत से संभाले हुए था मैं,
पर आज ना जाने क्यूँ, कतरा-कतरा बिखरने को मैं तैयार था,
वो सुनहरा पल आज अचानक आ ही गया,
जिस पल का मुझे मुद्दतों से इंतज़ार था,
कल तक जो राहें सूनी थीं,

उन्हीं राहों पर फूल बिछाने को आज ये दिल फिर से हुआ बेकरार था,

दर-दर, गली दर गली भटकते-भटकते,
अब पुरानी यादों को मन में संजोने को जी चाहता था,
किसी की सांसों की डोर से मैं इस कदर जुड़ सा गया कि
जर्रे-जर्रे से जुड़ने को मैं अब बेताब था,
यूँ तो ज़िंदगी तमाम रुसवाइओं से,लबरेज़ होती है,

पर जीने की ललक में,
मृग-मरीचिका सा चंद पानी की बूंदों से

अपने होठों को भिगो पाने का इंतज़ार मुझे शिद्दत से आज था,
कभी किसी के लिए अपने हृदय की अथाह गहराइओं से
किसी को मन से चाहने को दिल फिर से बेकरार था,
ये ज़िन्दगी खुदा की अनमोल नेमत है,
गर कुछ गफलत हो जाए तो उसको संवारा जाए,

क्योंकि अपनी किस्मत अपने हाथों लिखने का सबको खुद पर इख़्तियार है,

भले ही जन्नत मिले या दोज़ख मिले,
ये अपना-अपना भाग्य ठहरा,

पर अपने हाथों अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार लेना,
ऐसा करने का किसी को नहीं अधिकार है,
ऐसा करने का किसी को नहीं अधिकार है।

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