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“लाखों मुश्किलें आएं तो भी तू चलता चल,
हज़ारों बाधाओं को पार कर,
तू निरंतर चलता चल,
तू निरंतर चलता चल।“

राह की मुश्किलों से डरना नहीं है,
कदम बढ़ाए हैं गर तो पीछे तो कदापि हटना नहीं है,
सपनों की दुनिया को आबाद करना,
अपना तो मात्र सपना यही है,
मंज़िलों की राहें कितनी भी दूरगामी हों,
बाधाओं को राह के कंटक मान, भटकना नहीं है,
सागर की तलहटी में हीरे-पन्नें भी मिलेंगे,
इसी उम्मीद को पकड़कर है रखना,
हमें अपने पथ से छिटकना नहीं है,
वृक्षों की घनी छाँव तले घरौंदा बनाना अवश्य,
पर धूप भरी दुपहरी की
तपती लपलपाती आग में झुलसना नहीं है,
चल निरंतर, चल निरंतर,
काफिले से भटके हुए मुसाफिर की भांति
छिटकना नहीं है,
लहरों की उन्मत्त उछालों सा तू ऊपर उठ,
तुझे लहरों से लड़ते-लड़ते बिखरना नहीं है,
चींटी से मामूली जीव से तू अनुभव ले,
तुझे भरे जग से बिछुड़ना नहीं है,
हिम्मती बन, साहसी बन,
तुझे अपने लक्ष्य से उचटना नहीं है,
मुट्ठी अपनी खोल तू,
अपनी किस्मत को अपनी श्रमशक्ति से तौल तू,
परन्तु अपने कर्त्तव्य से विमुख होना नहीं है,
अश्रुपूरित आँखों से विश्व की धुंधलकी तस्वीर से,
तुझे अपना स्वर्णिम भविष्य खोना नहीं है,
विधि का विधान तो सर माथे पर ले,
पर अपनी लगन और कटिबद्धता से
मुख मोड़ना नहीं है,
जीवन में सुख-दुःख, आशा-निराशा, धूप -छाँव,
ऊँच-नीच तो आते ही रहेंगे,
पर तुझे इन सबसे घबराकर टूटना नहीं है,
कोई तुझे प्यार करे या ना करे,
कोई तेरे संग चले या ना चल पाए,
तुझे अपने क़दमों को अनवरत चलने से रोकना नहीं है,
स्वयं पर आस्था और विश्वास की पकड़ मज़बूत रख,
तुझे विषम परिस्थितियों से मुख मोड़ना नहीं है,
जो विपदाओं से जूझ जाए,
वही सही मायने में मनुष्य है,
तुझे इस स्वीकारोक्ति पर संशय करना नहीं है,
आंधी हो, तूफ़ान हो, बर्फीली चट्टान हो,
रेतीले रेगिस्तान हों, राह पर भले ही कांटे हज़ार हों,
भूचाल हो, भूस्खलन हो, हिमपात की बौछार हो,
चाहे अट्टालिकाएं हज़ार हों,
तुझे अपने मूल उद्देश्य से छिटकना नहीं है,
राह की मुश्किलों से डरना नहीं है,
राह की मुश्किलों से डरना नहीं है।

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