ना कोई भूखा रहे, ना कोई हो प्यासा,
सब को मिले वही सब कुछ,
जो जिसकी जब भी करे अभिलाषा,
पर ना जाने कैसी अड़चन,
कैसी दुविधा और हताशा,
लाख यत्न करते हैं सब,
पर फिर भी कुछ भी समझ ना आता,
कोई पाक फरिश्ता आकर हम सबको हंसाता, गुदगुदाता,
कोई तो है छिपा-छिपा सा,
लुका-छिप्पी खेल-सा जाता,
प्रकट तो नहीं ही होता है,
पर सब कुछ दूर से देखा करता,
काश! कुछ ऐसा हो जाता,
कि घर जंजीरों से बंधा-सा, श्रापित-सा ना लगता,
खुले गगन तले, सोने का उन्मुक्त एहसास-सा ना हो पाता,
काश कि ऐसा हो पाता!
रिमझिम बारिश की बूंदों से घर-आँगन सराबोर हो जाता,
कभी हम बैठते किसी अपने के संग,
कभी कोई हमारे संग बैठा होता,
किस्सागोई, चर्चा होते,
कभी-कभी विवाद हो जाता,
उन यादों के धुंधलके में,
कभी-कभी कोई सिटपिटाता,
कभी-कभी कोई गुनगुनाता,
कभी कोई रूठता, कभी कोई मनाता,
ज़िन्दगी कदम-दर-कदम करवट लेती,
पहलू बदलती,
ऊबड़-खाबड़ राहों पर सरकती, मचलती,
कभी हंसी के ठहाकों से माहौल गुलज़ार हो जाता,
तो कभी आँखों को ग़मगीन होना भाता,
काश कुछ ऐसा हो पाता!
कभी काले बदल रह-रहकर गरजते-बरसते,
कभी घुप अन्धकार, तो कभी उजास फैल जाता,
कभी पानी गिरता रिमझिम-रिमझिम,
और कभी-कभी हवाओं का रुख चहुँ दिशाओं में घूम जाता,
कभी आंधी-तूफान, कभी चक्रवात,
कभी स्थिर शांति, कभी झंझावात,
और कभी-कभी सुदूर पार से एक दैदीप्यापन आलोक आलोकित हो जाता!
कभी अकुलाहट, कभी छटपटाहट,
कभी आतुर, कभी व्याकुल हो जाता,
काश कि ऐसा हो पाता!
कभी लहरों की खामोशी से बहते जाना देखने को जी मिचलाता,
कभी सजीले और रंगीले सावन की घटा बन जाऊं,
कभी-कभी ऐसे ही होती मेरे इस मन की अभिलाषा,
काश ऐसा हो पाता!
कभी कहीं भी जाने को मन ही नहीं होता,
यूँ ही मैले फटे-पुराने कपड़ों में ही दिन ढल जाता,
कभी मुस्कुराने को जी करता,
अगले पल ही रो देती हूँ,
कभी जिंदगी के शोर शराबे से विरक्त होने को व्याकुल होती हूं,
एक प्यास-सी ललक है मन में,
भरने की-सी तड़प है मन में,
काश कि ऐसा हो पाता!
कभी रंगीन ख्यालों में विचरने को दिल बेताब रहता है,
काश कि ऐसा हो पाता!
काश कि ऐसा हो पाता!