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“हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है,
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा ।“

जी हां, किसी ने क्या खूब कहा है! वस्तुतः जीवन एक सीधी सपाट रेल की पटरी के समान नहीं होता, बल्कि जीवन में कदम -कदम पर हमें मुसीबतों, कष्टों, समस्याओं व बाधाओं का सामना करना पड़ता है, उन से जूझना पड़ता है । सुख-दुख, धूप-छांव, हर्ष-विषाद, गम- खुशी, यह सभी तो हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं ।

स्वामी विवेकानंद जी ने तो कहा था कि हम स्वयं ही अपने भाग्य के रचयिता हैं । जैसी हमारी चिंतन मनन की प्रणाली होती है, हम ठीक वैसे ही व्यक्तित्व में ढल जाते हैं। यदि हम स्वयं को निरीह और असहाय महसूस करते हैं तो हम वैसे ही दिखने भी लगते हैं और यदि हम स्वयं को शक्तिशाली व मजबूत मानते हैं तो हमारी मन:स्थिति भी ठीक उसी दिशा में उद्यत हो जाती है । विवेकानंद जी युवा पीढ़ी के लिए एक आदर्श रूपी व्यक्तित्व व कृतित्व के धनी थे । हमें उनकी निम्नांकित उक्ति से प्रेरणा अवश्य लेनी चाहिए ।

“उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए ।“

कुछ व्यक्तियों की तो प्रवृत्ति ही अकर्मण्यतापूर्वक समय व्यतीत करने की होती है । वे ‘दैव-दैव आलसी पुकारा’, की भांति अपने सभी कर्मों को भगवान के भरोसे छोड़ कर निश्चिंत होकर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं । यह केवल और केवल हमारे दृष्टिकोण पर ही निर्भर करता है कि हम जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना किस प्रकार करते हैं। मात्र कुछ बाधाओं के राह रोकने पर टूट कर बिखर जाते हैं अथवा तपकर निखर जाते हैं। जीवन वृहद विस्तृत रूप में विविधता लिए हुए बाहें फैलाए हमारे स्वागत को तत्पर रहता है, परंतु हम अपनी निम्न मानसिकता, संकुचित दृष्टिकोण, हिम्मत तथा साहस के अभाव में आगे बढ़ने से ही इंकार कर देते हैं । वास्तव में बुद्धिमान व सचेष्ट व्यक्ति वही है जो स्वयं आत्मनिर्भर होकर दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करे। मेरा ऐसा मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति को निडरतापूर्वक व निर्भीकता से अपने समक्ष प्रस्तुत कठिनाइयों का मुकाबला करना चाहिए ।

हमारे व्यक्तित्व की ओजस्विता व तेजस्विता इतनी प्रखर व पैनी होनी चाहिए कि बाधाएं भी हमें हमारे लक्ष्य से भटका ना पाएं, हमारे लिए स्वयं मार्ग छोड़ने को विवश हो जाएं |

दशरथ मांझी जैसा एक साधारण -सा ग्रामीण यदि पहाड़ों का सीना चीर कर रास्ता बना सकता है तो जीवन में संभवत: ऐसा कोई कार्य नहीं जिसे हम अपनी अदम्य और दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर ना कर पाएं | मात्र चिंतन तो चिता समान ही होता है, हाथों की लकीरें हमारा भविष्य तय नहीं करतीं , इसके लिए तो हमें स्वयं प्रयासरत रहना पड़ता है | किसी ने सच ही कहा है :

“जब टूटने लगे हौसले तो यह याद रखना
बिना मेहनत के हासिल तख्तो ताज नहीं होते,
ढूंढ लेना अंधेरों में मंजिल अपनी,
जुगनू कभी भी रोशनी के मोहताज नहीं होते |”

हमें भी अपने हृदय में कर्मठता की लौ को प्रज्जवलित रखना होगा | राह में आंधी, तूफान या झंझावात भी आ जाए तो भी हमें अपने कर्तव्य पथ से डिगना नहीं है, वरन निरंतर चलते रहना है | हमारा भाग्य नहीं बल्कि हमें हमारा कर्म ही विजय रूपी शिखर तक ले जाता है | हमारी ऊर्जा, सकारात्मकता, आशा, उत्साह ही हमें निरंतर ओजस्वी बनाते हैं | यदि हमारी दृष्टि अपने लक्ष्य रूपी मछली की आंख पर केंद्रित है, तो कोई कारण नहीं कि हम अपने लक्ष्य को भेद ना पाए |

भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय श्री एपीजे अब्दुल कलाम जी ने तो क्या खूब कहा है:-

“अपने हौसलों से यह मत कहो कि मुश्किलें कितनी अधिक हैं,
बल्कि मुश्किलों को यह बताओ कि हमारे हौसले कितने बुलंद हैं |”

भाग्य व किस्मत पर वही लोग विश्वास करते हैं जिन्हें स्वयं की शक्ति व कर्मठता पर यकीन नहीं होता | दरअसल, संकटमय क्षण ही होते हैं जो हमें हमारी वास्तविक , योग्यता व शक्तियों से परिचित करवा जाते हैं | वह मुसीबत की घड़ियां ही होती हैं जो हमें हमारी सच्ची शक्ति से अवगत करवा जाती हैं |

“मुश्किलें इंसान के इरादे आजमाती हैं,
सपनों के परदे आंखों से हटाती हैं,
हौसला मत हार कभी गिरकर ऐ मुसाफिर,
ठोकरें ही इंसान को चलना सिखाती हैं |”

जीवन कभी भी समतल नहीं होता | यह तो मानव मात्र पर ही निर्भर करता है कि वह कठिनाइयों के ताने-बाने का जाल कितनी कुशलतापूर्वक काटकर मुक्त हो पाता है |

हमें अधिक दूर जाने की आवश्यकता नहीं | आज के परिप्रेक्ष्य का अवलोकन करने पर ही ज्ञात हो जाएगा कि कोरोनावायरस नामक कोविड-19 महामारी ने राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हाहाकार मचाया हुआ है | परंतु इतनी विषम परिस्थितियों के बावजूद भी हमारे चिकित्सकों और वैज्ञानिकों की जी तोड़ मेहनत व अथक प्रयासों का ही परिणाम है कि आज हमें वैक्सीन अर्थात टीकाकरण की सुविधा उपलब्ध हो पाई है | यह विज्ञान व तकनीकी कौशल का ही चमत्कार है कि आज हम कोरोनावायरस से अपनी सुरक्षा कर पाने में सफल हो पा रहे हैं | यदि वैज्ञानिक भी भाग्य के भरोसे मुंह ताकते अकर्मण्य और निश्चिंत होकर बैठ जाते तो यह दुनिया संभवत आज तबाही के कगार तक ही पहुंच जाती |

हाल ही में टोक्यो में आयोजित ओलंपिक गेम्स 2021 में भारतीय खिलाड़ियों द्वारा गोल्ड, सिल्वर, ब्रोंज मेडल हासिल करना देश के गौरव का प्रतीक है | यह इस बात का साक्षी है कि कोरोना का अंधकारमय, विषम व डरावना वातावरण भी उनके अभ्यास करने की प्रवृत्ति को डिगा नहीं सका | उनकी कर्मठता ही थी जो उन्होंने अपने देश को गौरवशाली बनाने में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया |

इतिहास गवाह है कि स्टीफेन हॉकिंग्स ने शारीरिक रूप से पूर्णत: स्वस्थ ना होते हुए भी, ब्लैक होल की संकल्पना को साकार रूप देकर विश्व को अचंभे में डाल दिया | दीपा मलिक, अरुणिमा सिन्हा सरीखी महान हस्तियां इसकी जीती जागती मिसाल हैं | शारीरिक अक्षमता या निर्बलता भी उनके विकास में कहीं बाधक सिद्ध नहीं हो पाई क्योंकि उनके हौसले बुलंद थे, उनके इरादे फौलादी थे | उनके सपनों में लोहे को भी पिघलाने की अभूतपूर्व क्षमता विद्यमान थी |

एक निर्धन मछुआरे से महामहिम राष्ट्रपति के पद को गौरवान्वित करने वाले डॉक्टर ए.पी.जे अब्दुल कलाम का नाम भला किसे स्मरण नहीं होगा?

स्ट्रीट लाइट की टिमटिमाती रोशनी में बैठकर बरसात में टपकती घर की छत के नीचे किताबें पढ़ने के शौकीन पूर्वांतर में अमेरिका के राष्ट्रपति बनने वाले अब्राहम लिंकन की तपस्या से भला कौन अनभिज्ञ है ?

नाविक को नाव की उतराई के पैसे देने के अभाव के चलते 10 किलोमीटर तैरकर शिक्षा प्राप्त करने हेतु विद्यालय जाने वाले ‘नन्हे’ से प्रधानमंत्री पद को गौरवान्वित करने वाले श्री लाल बहादुर शास्त्री की कर्मठता से भला कौन अपरिचित है ?

अंत में मैं अपनी लेखनी को विराम देते हुए इतना ही कहना चाहूंगी कि :-

“ऊंचे मनोबल से झुके, क्या धरती क्या आकाश,
जग का तम (अंधकार) ना रोक सके, जिनके हिय (हृदय) प्रकाश |”
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