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“दिल को सुकून है,
कि अभी इरादें कुछ और भी हैं,
दिल को सुकून है,
कि ज़िंदगी से किये वादे अभी और भी हैं,
सभी वादों को पूरा करना है,
ऐ मन,
ज़रा धीरे-धीरे चल, अभी तुझे बहुत दूर चलना है।“
दिल से दिल की राह का मिलना अभी बाकी है,
सुबह के रूठे हुए चंद अल्फ़ाज़ों का कविता की रौ में बहना
अभी बाक़ी है,
टूटे, बिखरे, अनमने, कुनमुने, यत्र-तत्र-सर्वत्र टुकड़ों में बिखरे हुए
जरूर पड़े हैं हम,
पर अपने अरमानों को एक लड़ी में पिरोना अभी बाकी है,
तन क्षणिक क्लांत है अभी,
पर सुनहरे ख़्वाबों का निरंतर बुना जाना अभी बाक़ी है,
दिल से दिल की बातें कुछ ख़ास अभी बाक़ी हैं,
श्वासों की लड़ियाँ कभी उठती, कभी गिरती हैं,
पर इस नश्वर जीवन को भरपूर जिया जाना अभी बाकी है,
दुनिया में कितने भी दुःख हों, कष्ट हों, तकलीफें हों, संघर्ष हों,
पर जीने की उत्कट लालसा का निस्तारण अभी बाकी है,
कई दुःखद मंजर देखे हैं मैंने अपने लघुतम जीवन में,
पर ना जाने क्यों आशावादी व उत्साहवादी होना अभी बाक़ी है,
तनिक-सी ठोकर मात्र से बिखर जाते हैं हम,
परन्तु फिर भी मन को पाल-पोसकर सहलाना, समझाना, दुलारना,
पुचकारना अभी बाकी है,
जाने कितनी अतल गहराइओं में डूबे हुए हैं हम,
पर फिर बड़ी कोशिश करके, जुझारू बनके, संघर्षशील रहते हुए,
शीर्ष से शीर्षतम तक आना अभी बाक़ी है,
यह माना कि कुछ क्षण हमारे वशीभूत नहीं होते,
पर फिर भी एहसासों को शिद्धत से निभाया जाना अभी बाक़ी है,
आदि से अनंत तक का यह अंतहीन सफर है,
इसे सुन्दर भ्रमित भुलावा देकर स्वर्णिम कलेवर में सजाया जाना अभी बाकी है,
बचपन की खट्टी-मीठी रसीली यादें तो
ज़ेहन में अक्सर आती रहती हैं,
उन्हें करीने से सहेजकर किसी शांत, निर्जन, एकांत नुक्कड़ में
छिपाया जाना अभी बाकी है,
इतने मनोयोग से संवारा है हमने सबकुछ,
जो कुछ भी इधर-उधर, छिट-पुट बिखरा हुआ अव्यवस्थित है,
उसे मनोयोगपूर्वक व्यवस्था में लाया जाना अभी बाक़ी है,
कभी धूप. कभी छाँव, कभी सर्द , कभी गर्म,
कभी ग़मी, कभी मुस्कान, कभी सुख, कभी दुःख,
कभी किसी के आने का बेसब्री से इंतज़ार,
दिखता तो सब ठीक ही है, पर एक खुशगवार और
रौनक भरे माहौल का आना अभी बाक़ी है,
पर एक खुशगवार और रौनक भरे माहौल का आना अभी बाक़ी है।