“बच्चों की किलकारी गूंजी,
बच्चों की तुतली भाषा है,
बच्चों की नन्हीं अठखेलियां,
बच्चों की बालसुलभ भाषा है।“
बच्चों की छोटी-छोटी चाहतें पूरी करना मन को सहला जाता है,
उनके चंचल मुख की तृप्ति का एहसास ही सुधा बरसाता है,
देखते ही देखते मन अपूर्व सौहार्द से भर जाता है,
कभी उनके नन्हें पांवों की थाप सुनकर मन चिहुंक-चिहुंक सा उठता है,
नन्हा बालक जब तुतलाती भाषा में 'माँ' , 'माँ'- पुकारता है,
तब 'माँ' की ममता, दुलार और वात्सल्य भी फूट-फूटकर बाहर आता है,
बच्चों को सोते हुए कभी आपने देखा है?
उनके धवल, पावन मुख पर अपूर्व तेज की रेखा है,
उनका निश्छल, निष्पाप मन,
उनका दैदीप्यमान तन, सूक्ष्मकाय शरीर, उनकी कोमलता और चित्ताकर्षक छवि से अनूठा गौरव-सा अनुभव होता है,
बच्चों की बालसुलभ क्रीड़ाएं और अठखेलियां देखना,
दिल को सुकून पहुंचा जाता है,
बालक की लघु चेष्टाएँ अभिभावकों को संतुष्टि से भर जाती हैं,
साक्षात् राम व कृष्ण के बालरूप के दर्शन करा जाती हैं,
छोटे-छोटे हाथों से नन्हा-मुन्ना जब आपके हाथों को सहलाता है,
स्तनपान करते-करते ही माँ की गोदी में सो जाता है,
तब यूँ लगता है सम्पूर्ण दुनिया की साधन-संपन्नता व्यर्थ है, नि:सार है,
और त्रैलोक्य की यह लीला तो अपरम्पार है,
बच्चे के सलोने मुखड़े पर जब स्मित मुस्कान बिखरती है,
तो वही वह अमूल्य क्षण होता है,
जब माँ बलिहारी जाती है,
पुन:-पुन: बलैया लेती हैं,
मंद-मंद मुस्काती है,
माँ की ममता और उसका स्नेह तो सदा ही निश्छल होता है,
बच्चे के लिए तो माँ का 'अंक' सर्वोच्च सिंहासन होता है,
बच्चा जब नींद से उठ जाए, सिसक-सिसककर रोता है,
माँ का हृदय भी तो उस पल, आठ-आठ आंसू रोता है,
साम-दाम और दंड भेद से बच्चे को शांत कराती है,
तत्पश्चात ही माँ की अंतरात्मा को शान्ति मिल पाती है,
माँ त्याग दया की प्रतिमूर्ति, साहस और तेज की अनुकृति है,
माँ कल भी थी ओजस्वी, और माँ आज भी तेजस्वी है,
माँ कल भी थी यशस्वी, और आज भी है तपस्वी है,
माँ बच्चे के रिश्ते की अजब-गजब सी गाथा है,
इसमें तनिक भी शुबह नहीं,
माँ ही जननी जन्मदाता है, माँ ही जननी जन्मदाता है।