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“मां का कोई विकल्प नहीं है,
मां है तो सब कुछ है संभव,
मां के बिना यह जग भी नहीं है।“

संघर्षों से लोहा लेने को हर सबक सिखाती मां,
हर मार्ग की व्याकुल बाधा को पग-पग पर हरती मां,
आकुलता हो, व्याकुलता हो, या हो कोई भी मुश्किल,
तूफानों, झंझावातों से भिड़ने को हर क्षण तत्पर मां,
घर आँगन को प्रज्ज्वलित करती, सबसे प्यारी, न्यारी मां,
साहस और निडरता की ही प्रतिमूर्ति- सी लगती मां,
अपने बच्चों की खातिर प्राणों की बाजी लगाने से भी बाज़ न आती मां,
विश्वसनीयता की कसौटी पर सदा ही खरी उतरती मां,
यत्र-तत्र-सर्वत्र घर में, परिवार में, दिन में, रात में,
ख़ुशी में, गमी में,धूप में, बरसात में,
हफ्ते के सातों दिन और 24 घंटे एक पैर पर चकरघिन्नी-सी चक्कर खाती मां,
उदासी और गमी में खुशियों की बौछार उड़ाती मां,
अपने बच्चों को रातों में लोरी गाकर, मीठी नींद सुलाती मां,
चार दीवारों के मकान को अपनी ज़िंदादिली से घर बनाती मां,
खुद चाहे भूखी सो जाए, पर बच्चों को भरपेट खिलाती मां,
बच्चों की अंगुली थामे हरदम सहलाती मां,
अपनी परवरिश से अच्छे संस्कार सिखाती मां,
नैतिकता और दया धर्म का पाठ पढ़ाती मां,
आदर्शों, जीवन मूल्यों को यूँ घोंट-घोंटकर रोज़ पिलाती मां,
मेरे कहने से पहले ही मन पढ़ लेती मां,
हर ख्वाहिश पूरी कर देती, ऐसी जन्मदात्री मां,
हर गम में, हर वीराने में चिराग-सी रोशन मां,
हारी में, बीमारी में, खुद दवा बन जाती मां,
रात-रात भर जाग-जागकर सिरहाने बैठी रहती उनींदी मां,
हर गलती को, गुस्ताखी को, चुटकी बजाते हल कर देती मां,
नि:स्वार्थ भाव से सेवा करती,
हिरणी-सी वो फुदक-फुदककर, सुव्यवस्थित घर को रखती- मां,
मां की गाथा लिखना चाहूं,
पर किसी भी काल, देश की सीमाओं से परे ही रहती मां,
ईश्वर के दर्जे की पूरक सार्थकता है मां,
प्रथम पूजनीय, प्रात:वंदनीय होती है हर मां,
पायल की झंकार के जैसी बजती रहती मां,
घने वृक्ष की हरियाली-सी छायादार-सी मां,
तनिक चोट जो मुझे लगे, फौरन घबराती मां,
अपने दुःख को पी जाती, जब देखो, तब मंद-मंद मिलती मुस्काती मां,
बच्चों के संग बच्चा बन, यूँ ठुमक-ठुमक इठलाती मां,
बच्चों से गलती होने पर, प्यार से उन्हें समझाती मां,
सारी दुनिया से न्यारी लगती, आँगन की कच्ची धूप-सी मां,
दुआ और आशीर्वचनों की झड़ी लगाती मां,
सच्ची मित्र है, सच्ची हितैषी,
प्रेम, त्याग, बलिदान की जीती-जागती मिसाल है मां,
सच्ची दोस्त, सच्ची हमसफ़र, सच्ची पथप्रदर्शक,
त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्ति है मां,
‘हर मर्ज़ का इलाज’, हर पल, हर लम्हा,
अपने परिवार की खुशियों हेतु बेकरार-सी रहती मां,
अपने बच्चों के हर गम में सदा उपस्थित रहती मां,
कभी चोट हमको लग जाए,
तो भी अकेले में स्वयं को ही दोषी मान गुप-चुप सिसकती मां,
जीवन के उलझे ताने-बाने,
अपनी सूझ-बूझ और कौशल से हर पल सुलझाती मां,
प्रकृति के अनमोल तोहफों में
सबसे नायाब बेशकीमती कोहेनूर हीरे सरीखी मां,
चन्दन की पावन खुशबू-सी सदा गमकती मां,
दुग्ध-सी धवल और श्वेत-श्वेत सी- पवित्रता की सौम्य मूरत मां,
कभी सूरज-सी वो लाल-लाल, कभी चाँद-सी शीतल दिखती मां,
कभी हमउम्र सहेली-सी लगती, कभी हितैषी लगती मां,
कभी-कभी तो देवी दुर्गा की अवतारी लगती मां,
घर के कोने में जब देखो, तिलचट्टे-सी दुबकी मां,
कभी शून्य में तकती-तकती, यहाँ-वहां खो जाती मां,
जब हम सब हैं सो जाते, तो भी काफी देर रात तक,
गहन सोच में डूबी-डूबी रातों को रहती जगती मां,
सुबह सवेरे प्रात:काल ही झाड़ू-बुहारी करती मां,
स्याह अंधियारी रातों में दीये-सी रोशन होती मां,
हरदम चौकस-चाक चौबंद एक सजग पहरेदार-सी,
घर की रक्षा करती मां, तुम पर सौ-सौ जन्म न्यौछावर,
तुम पर तो हर स्वर्ग न्यौछावर,
कभी अन्नपूर्णा, कभी सरस्वती, कभी दुर्गा और कभी काली,
और कभी लक्ष्मी रूपा-सी,
और कभी-कभी तो अष्टभुजा-सी,अधिष्ठात्री-सी लगती मां
अधिष्ठात्री-सी लगती मां।

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