यूं एकांत में बैठ अकेला, चुपके-चुपके क्यों रोता है?
नहीं जानता, अश्रु बहाने वालों का मूल्य शून्य होता है।
यूँ पस्त , निढाल पड़े रहने से अर्जित कुछ भी नहीं होता है,
स्वप्नों को बुन, गूँथ-गूँथकर लड़ी बना ले,
इक चींटी की जीवटता को तू अपना सर्वस्व बना ले,
क्यों है बैठा असहाय-सा, निर्बल और निरुपाय सा?
उठ-उठकर ही, गिर-गिरकर ही मानव जीवन चला करता है,
संघर्षों से क्यों डरता है?
आपातकाल सभी पर आता, कोई रोता, अश्रु बहाता,
कोई हँसते-हँसते झेलता,
कईओं को जीना ना भाता,
दीन -हीन बन, निःसहाय बन,
तकदीरों को रोता क्यों है?
साक्षी ये इतिहास रहा है;
जिसने भी संघर्ष किया है, रचा गया इतिहास नया है,
देख-परख ले, जान-बूझ ले,
मेहनतकश ही विजयी हुआ है,
भय के मकड़जाल में फंसकर, अंधकार से डरता क्यों है?
एक घोंसला टूट गया गर,
एक हौंसला टूट गया गर,
आशा का दामन झटक-झटककर, एकांतवास में रोता क्यों है?
नाव फंसी जो कभी भंवर में,
ढही पतवार कभी जो जल में,
दीवानों सा, पगलाया सा, घबराया सा, बौराया सा,
आठ-आठ आंसू रोता क्यों है?
कर्मशीलता तेरा गहना, तकलीफों से डरता क्यों है?
मौक़ा मिले तो गोताखोर भी असली माणिक चुन लेता है,
चुप मत बैठ, तू आगे बढ़कर, ले विपत्ति से छीन निवाला,
भाग्य-भाग्य का रोना रोकर,
मेहनत से तू डरता क्यों है?
यूं एकांत में बैठ अकेला, चुपके-चुपके रोता क्यों है?
हिम्मत का तू बिगुल बजा ले,
टूटी नैया खेता क्यों है?
भय त्यागकर साहस कर ले, मन में अब फौलाद तू भर ले,
बाधाएं तो आती ही हैं,
किस्मत तो आज़माती ही है,
यूं शून्य में बैठा-बैठा, व्यर्थ समय गँवाता क्यों है?
यूं एकांत में बैठ अकेला, चुपके-चुपके क्यों रोता है?

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