Image by marian anbu juwan from Pixabay 

मेरे राष्ट्रपिता बापू,
सत्य और अहिंसा के पुजारी बापू,
मेरे स्वप्निल भारत के प्रणेता बापू।‘
हे बापू, रह रहकर तुम्हारी याद आती है,
चहुँ ओर फैली बेकारी और यत्र-तत्र-सर्वत्र बिखरी समस्याएं,
यदि तुम देख पाते तो संभवत: मुंह फेर लेते,
यहां नारी बरसों बाद भी नितांत असहाय, अशक्त और बेचारी,
पुरुषों से प्रतिपल टकराती,
उनसे ही जाती ठुकराती,
गलत-सही के समीकरणों में पल-पल उलझी नारी,
यदि तुम देख पाते तो शायद आँखें मूँद लेते,
हे बापू, रह रहकर तुम्हारी याद आती है ।
आज के युग में भ्रष्टाचार की महिमा है अति भारी,
सभी लिप्त हैं धन-लिप्सा में,
स्वार्थ-सिद्धि ही सर्वोपरि है,
लोग सभी हैं व्यस्त यहां पर,
न्याय-व्यवस्था पस्त यहां पर,
सरेराह हैं धज्जियां उड़ती, कानूनों की सारी,
हे बापू, रह रहकर तुम्हारी याद आती है ।
अखबारों की ख़बरें पढ़कर ध्यान हमेशा भटक ही जाता,
मार-काट है, बलात्कार है,
संबंधों में पड़ी दरार है,
भ्रूण हत्याएं बढ़ती जा रहीं,
जात-पात का भेद अब भी है,
यदि आज देखते अपना भारत,
आठ-आठ आंसू रो देते,
हे बापू, रह रहकर तुम्हारी याद आती है ।
रोग-शोक चहुँ और व्याप्त है, बुनियादी ढांचा अक्षम है,
सत्य-अहिंसा कराह रहे हैं, चीख-चीखकर बुला रहे हैं,
हज़ारों बच्चे आज भी भूखे पेट ही सो जाते हैं,
बापू! यदि तुम देखते तो दुःख से रो ही पड़ते,
हे बापू, रह रहकर तुम्हारी याद आती है ।
रोटी-कपड़ा और मकान आज भी ज़द से बाहर ही है,
अर्धनग्न महिलाएं रहती, सब कुछ सहतीं, उफ़ ना करतीं,
यदि तुम देखते तो निश्चय ही आहत हो उठते,
हे बापू, रह रहकर तुम्हारी याद आती है।
मेरा मन भी अति व्यथित है, भयाक्रांत है, शोकाकुल है,
रह-रहकर विद्रोह है करता,
कभी उफनता, कभी उबलता,
यदि ये सब तुम देख भी पाते,
तुम तो लाज से गढ़ ही जाते,
हे बापू, रह रहकर तुम्हारी याद आती है।
हे बापू, रह रहकर तुम्हारी याद आती है।

.    .    .

Discus