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कभी-कभी सोचा करती हूँ, ये जीवन ऐसा- सा क्यों है?
कभी-कभी सोचा करती हूँ, सब कुछ ऐसा-वैसा क्यों है?
सपना क्या है? ये जीवन की आशा ही है।
सपना क्या है? मन की चिरसंचित अभिलाषा ही है,
सपनों को हर रोज़ तो हम देखा करते हैं,
सबके सपने सच हो जाएँ, ऐसी हम आशा करते हैं,
ये जीवन ममता की गागर, सपनों का महासागर ही है,
गर सोचो तुम मन ही मन में, ठान लो गर कुछ अंतरमन में,
पूर्ण तो वो हो जाता ही है,
कभी-कभी सोचा करती हूँ, ये जीवन ऐसा- सा क्यों है?
अपना तो बस यही है सपना, कुछ अपना और कुछ हो सबका,
देश उच्च शिखरों पर जाए, युवा वर्ग संगठित हो जाए,
धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाए, ‘रोगमुक्त’ भारत हो जाए,
कभी-कभी सोचा करती हूँ, ये जीवन ऐसा- सा क्यों है?
कभी-कभी सोचा करती हूँ, क्यों होते हैं देश में दंगे,
सोने की चिड़िया है भारत, फिर बच्चे क्यों फिरते भूखे-नंगे,
मन में एक तूफ़ान भरा है, प्रतिपल प्रतिक्षण बदल रहा है,
महासागर सा उमड़ रहा है,
सपनों की सीमा तो ‘क्षितिज’ है, सपनों का महासागर 'मन' है,
हम देखें कुछ ऐसा सपना, छोड़ ‘पराया’, सब हो ‘अपना’,
कभी-कभी सोचा करती हूँ, सपनों को मैं सच कर लूंगी,
आशावादी स्वप्न देखकर, 'सच' में उनको 'सच' कर लूंगी,
कभी-कभी सोचा करती हूँ, हताश-निराश कोई ना यहां हो,
सभी रहें आशा से पूरित, मन में कोई मलाल ही ना हो,
कभी-कभी सोचा करती हूँ,
सपनों के महासागर की गहराई तक उतर के देखूँ,
महासागर में डुबकी लगाकर सच्चाई के मोती चुन लाऊँ,
सबको अपना मित्र बनाऊं, सबकी मैं मित्र बन जाऊं,
सभी बुराइयां दूर भगाऊं, खुशियों का बाजार सजाऊँ,
इन सपनों के महासागर में डुबकी बारम्बार लगाऊं,
डुबकी बारम्बार लगाऊं।

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