“नारी की महिमा है अति गौरवशाली,
वह बली, विद्वान, वह है स्वाभिमानी।“
कभी-कभी मैं स्वयं से वार्तालाप करती हूँ,
आलाप करती हूँ, प्रलाप करती हूँ,
और कभी-कभी तो पश्चाताप करती हूँ,
आखिर बेटे और बेटी में इतना भेदभाव क्यों है?
इसका मूल कारण जानने का प्रयत्न सायास करती हूँ,
लड़कों के जन्म पर बधाइयां, बाजे, नाच-गाने और
लड़कियों के पैदा होने पर नीरव सन्नाटा, आखिर माजरा क्या है?
यह प्रश्न मैं स्वयं से बारम्बार करती हूँ,
लड़कों को खाने में दूध मलाई, 56 व्यंजनों का भोग,
और लड़कियों को अंत में बचा-खुचा, बेस्वाद,
रूखा-सूखा, बासी खाना,
उस परमपिता परमेश्वर के अनूठे प्रावधान का आगाज़ करती हूँ,
लड़कों को रात-रातभर घर से बाहर निकलने,
स्वछन्द विचरण करने की खुली छूट,
और लड़कियों को सूर्यास्त के साथ ही
घर की चार-दीवारी में कैद होने की आखिर हिदायत क्यों है?
यह अनसुलझा प्रश्न मैं स्वयं से ही नहीं,
अपने अभिभावकों से भी कई बार करती हूँ,
लड़के कमाऊ पूत है, नौकरी करें,
व्यवसाय करें, कमाएं, खाएं, घर चलाएं,
और लड़कियां उनके घर की चार दीवारी में घुट-घुटकर,
सिसक-सिसककर, उनके और उनके बच्चों के लिए
खाना पकाएं,घर सँवारे, बर्तन मांजें, कपड़ें धोएं,
इस परंपरा और परिपाटी का विपरीतार्थी हो पाना
संभव करने की कोशिशें मैं कई बार करती हूँ,
लड़के अपने माता-पिता की अर्थी को कंधा देंगे,
उनको मोक्ष दिलाएंगे, उनको स्वर्गलोक का मुंह दिखलाएंगे,
परन्तु लड़कियां तो निःसहाय और निरीह ठहरीं,
ये कैसी रस्में हैं?
ये कैसे रिवाज़ हैं?
शहरों की आबोहवा तो फिर भी कुछ बदली है,
परन्तु हमारे गाँवों की व्यवस्था तो आज भी वही है,
ये भेदभाव, ये दोगलापन, ये विचित्र आचरण,
ये विखंडित समाज, ये सामजिक विकृतियां,
इन सब पर कुठाराघात मैं हर बार करती हूँ,
काश! ये समाज, ये लोग, ये परिजन,
लड़का- लड़की को एक समान माने,
यदि गर्भधारण, गर्भाधान और प्रसूति की पीड़ा की कसक
एक समान है,
तो फिर लड़का-लड़की के पालन-पोषण में भिन्नता क्यों है?
इस भीषण समस्या से दो-चार मैं हर बार होती हूँ,
मात्र शारीरिक संचरना से पृथक होना कोई मायने नहीं रखता,
आखिर स्त्री ही तो पुरुष की जन्मदात्री ठहरी,
फिर उसकी गरिमा और सम्मान में असमानता क्यों है?
ये तीक्ष्ण, कटु और भीषण वाद-प्रतिवाद मैं आज आपसे करती हूँ,
आप ही इसका कोई हल बताएं,
लड़का-लड़की में भेदभाव कतई ना अपनाएं,
उनको आगामी भविष्य के स्वर्णिम कर्णधार बनाएं,
यही शुभाकांक्षा मैं बार-बार करती हूँ,
यही शुभाकांक्षा मैं बार-बार करती हूँ।