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“चलना जीवन, चलना जीवन,
रुकता पानी सड़ जाता है,
चलते रहना नाम है जीवन,
जड़ जीवन निष्क्रिय कहलाता है।“
राह में चलते हुए काँटों की चुभन महसूस तो होगी,
ऊँचे-नीचे, ऊबड़-खाबड़, पथरीले कंटीले रास्तों में थकान तो होगी,
मंज़िल तक पहुँचने की तड़प, कसक और क्षितिज छू लेने की ललक, आसान तो ना होगी,
अगर इरादा है अटल, तो आपदाएं, विपदाएं, दुविधाएं, समस्याएं, जटिलताएं दूब-सी मुलायम और रेशम-सी कोमल होगीं,
चलते-चलते पाँवों में भले ही फटे बिवाई,
भले ही कितने भी कंटकाकीर्ण हों सारे जग की राहें,
पर हे कर्मयोगी, कर्मठ, लौहपुरुष, सुदूर अंतरिक्ष में तेरे भविष्य की डगर इतनी आसान तो ना होगी,
रुकना नहीं तू, चल निरंतर,
तूफानों से घबराना मत,
चक्रवात तो आएंगे ही,
तुझको वे झुठलाएंगे ही,
पर तेरा तो काम है चलना,
इक दिन तो ऐसा आएगा,
सफलता तेरे पग चूमेगी,
धूप-छाँव, ऊंच-नीच, सुख-दुःख, आशा-निराशा के खेल हैं अलबेले,
तू यदि रहेगा निष्पक्ष और निरपेक्ष तो मनुष्यता की सच्ची पहचान यही होगी,
थक हार कर किस्मत को कोसना,
अपनी खुराफातों का ठीकरा दूसरों के माथे फोड़ना,
इन सब छल-प्रपंचों से तो तेरी हार ही होगी,
तू 'एकला चलो रे' को जीवनमंत्र मान,
अपनी आत्मा की पुकार पर विश्वास रख,
पुरातन रूढ़ियों, मान्यताओं को तिलांजलि देकर,
नित, नवीन, स्फूर्तिदायक, आशावादी, भविष्यगामी योजना की नींव रख,
फिर तनिक थम कर देख ज़रा,
जग में चहुँ ओर तेरी ही जय-जयकार होगी,
समय सदा बलवान था, बलवान ही रहेगा,
होनी को टाल पाना न संभव कभी था, ना ही कभी होगा,
पर तू मेरा यकीन मान,
कि ‘मनसा-वाचा-कर्मणा’ तेरे सत्कर्मों की उद्घोषणा स्वीकार ही होगी,
शनैः-शनैः चल, कर्मक्षेत्र में तत्पर हो कर,
तेरे जीवन की वैतरणी अवश्यंभावी पार ही होगी,
यूं ही नहीं कहा करते हैं, 'ज्ञानी ध्यानी अन्तर्यामी',
कर्म ही पूजा, जीवन कर्मक्षेत्र है दूजा,
यहीं से लेना, यहीं पे देना,
जीवन है सुख-दुःख का मेला,
कुछ भी हो, कैसा भी हो, जहां भी हो, जैसा भी हो,
शिलाखंड-सा अड़ जाए गर, चट्टानों से लड़ जाए गर,
कोई कठिनाई ना ऎसी, जो तेरे आड़े आएगी,
प्रतिपल, प्रतिक्षण, कर्मवीर बन और हठी बन, सतत निरन्तर चलते-चलते,
इस माया नगरी के भीतर,
पानी में सारस के जैसे निर्लिप्त भाव से धीमे-धीमे, बहते-बहते,
तेरे जीवन की हर कोशिश साकार यहीं होगी, साकार यहीं होगी।