उन शब्दों की हँसी सुनने के लिए जो मेरी माँ कहा करती थी
कुछ समय बाद जिंदगी बदल गई
बीच वाले मशरूम के आने का इंतजार करना पड़ा...
पिता की देखभाल
कण
मन में उतर जाना
रात और दिन के रास्ते काटने पड़े...
अच्छाई के पेड़ के फूलने का मौसम जिसे पिता और माँ ने उंडेला
आज भी
मैं अपने मन में चित्र बना रहा हूँ..
इसमें पिता के त्याग के कई रंग
माँ के आंसुओं के अलग-अलग रंग थे...
पकरनाट्टम के उतार और प्रवाह में,
समय के उतार-चढ़ाव में,
केवल जीवन के अवशेष छोड़कर
परिवर्धन की युक्तियों में
गुणकों के सममित वलय पर
जब पिता और माँ ने पहले उड़ान भरी थी
पहली बार अलगाव का उपन्यास...
किसी और चीज़ के बजाय
नहीं डाल सकते
बहुत सारा ज्ञान
सबक,
पिता और माता के अलावा और कौन...?
उस प्यार और दोष का जो उन्होंने कल दिया था
देखभाल और चिंता की कोमल यादें
यह मेरे दिमाग में है...
हर चीज़ जीवन का प्रतीक है.
हालांकि देर हो चुकी है
अहसासों के अनुस्मारक दिए गए...
कर्मों के अवशेष के रूप में
आंखें भर आईं
तोरामहाजा उनके लिए सिर्फ प्यार की निशानी है..
जब शब्द और युद्ध मौन के गलियारों में मिलते हैं..
बिना किसी हिचकिचाहट के
जीभें कई बार फुसफुसा रही थीं...
जो पहले उड़ चुका था
चिड़ियां
के लिए दी
अनुभव के शब्दों के लिए
सच्चाई के कई खुलासे हुए.
कभी न ख़त्म होने वाले अनुस्मारक की एक झलक...
नाटक का
पर्दे के पीछे
समाचार कहानियों में
और कितने?
आंसुओं से भरे चेहरे..
माँ की वेदना..
पिता की ठोकरों की चिंता...