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कुछ खोया खोया हूँ खुद से या खुद में ही,
उम्मीद करता हूँ सबसे मुझे ढूंढ पाएंगे,
और जब मिल जाऊंगा उन्हें कहीं तो गले से लगाएंगे,
कहेंगे हम सब समझते हैं बस बताते नहीं।

अरे क्या खाक समझते हो,
और क्या है मुझे बता पाओगे,
मैं मरता हर दिन हूँ सामने तुम्हारे ही,
कई बार तो कदमों में गिर भीख माँग लिया करता हूँ,
अपने गिले शिकवे शिकायतें सब बता दिया करता हूँ।

बताता हूँ तुम्हारा ये करना मुझे पसंद नहीं,
समझता हूँ, समझाता हूँ,
मेरे जैसा बनना मुमकिन नहीं,
बदलने नहीं समझने की चेष्टा रखता हूँ,
और आखिर में थक हार कर,
कलम में लहू भर,
एक पन्ने में सब उतार कर,
अपना ही दिल रख लिया करता हूँ।
अंधे की लकड़ी और डूबते का सहारा बनना,
माँ ने तो बचपन से यही सिखाया है,
कब किसे किस हालत में और किस मोड़ पे छोड़ना है,
मैय्या क्या तूने ये भी बताया है?

खैर मुझे तो बता दिया पर इन सबको कौन समझाएगा,
मैय्या तू ये बताना भूल गई जब डूब तू रहा होगा तो कोई बचाने नहीं आएगा,
पुकारा हर सख्श को मैंने जिसने भी कहा था "मैं हमेशा तेरे साथ हूँ"
अरे सब झूठ है या तुम्हारा हमेशा कल ही खत्म हो गया,
आ पहुँचा जब साहिल पे तो खैर पूछने आते हो,
और पूछते हो मुझसे ही "जिंदा लाश की तरह अकड़ के काहे बातें बताते हो"

अरे क्यों न अकड़ूं मैं,
जब बंजर जमीन पर समंदर की बारिश सा बरसता हूँ,
हर बंजारे को शरण दिए फिरता हूँ,
लेकिन जब धरती मेरी वीरान हो जाया करती है,
तूफान मुझे बंजारा बना लिए करते हैं,
तरस एक बूंद और छांव को जाया करता हूँ,
और तुम फिर भी पूछते हो मैं क्यों अकड़ता हूँ?

तूफान के आने पे ये बंजारा इस दफा निकल लेगा,
ना मैय्या की सीख भूलेगा, और ना जिंदगी की,
ना समझे जाने की इच्छा रखेगा और ना किसी को समझाया करेगा,
ना किसी की बात सुनेगा और ना ही किसी को पुकारा करेगा,
मरेगा हर दिन लेकिन भीख माँगने से परहेज करेगा,
साहिल पे पहुँचने की इच्छा को दबा जाएगा,
फिर वापस सब ढूंढेंगे गले से लगाएंगे और कहेंगे
हम सब समझते हैं बस बताते नहीं
बंजारा फिर कहेगा अरे क्या खाक समझते हो।

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